अय्यूब 41:1-34

  • परमेश्‍वर ने अद्‌भुत लिव्यातान के बारे में बताया (1-34)

41  क्या तू मछली पकड़नेवाले काँटे से लिव्यातान*+ को पकड़ सकता है?या उसकी जीभ को रस्सी से कस सकता है?   क्या तू उसकी नाक में नकेल* डाल सकता है?या उसके जबड़ों को काँटे से छेद सकता है?   क्या वह तुझसे रहम की भीख माँगेगा?तुझसे मीठी-मीठी बातें करेगा?   उम्र-भर तेरी गुलामी करने के लिएतुझसे करार करेगा?   क्या तू उसके साथ ऐसे खेलेगा, जैसे चिड़िया से खेलता है?या उसे बाँधकर रखेगा कि वह तेरी बच्चियों का मन बहलाए?   क्या उसे पकड़नेवाले मछुवारे उसका सौदा करेंगे? उसे काटकर व्यापारियों में बाँटेंगे?   क्या तू मछली मारनेवाले भालों से उसकी खाल छलनी कर सकता है?+या उसके सिर के आर-पार भाला घुसा सकता है?   ज़रा उसे हाथ लगाकर तो देख!ऐसी मुठभेड़ होगी कि ज़िंदगी-भर याद रहेगीऔर दोबारा तू यह गलती नहीं करेगा।   उसे पकड़ने की आस रखना बेकार है, उसे देखते ही तेरे हाथ-पैर फूल जाएँगे। 10  जब किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि उसे छेड़ सके, तो मेरे खिलाफ खड़े होने की जुर्रत कौन करेगा?+ 11  कौन है जिसने मुझे कुछ दिया है, जो मुझे लौटाना पड़े?+ आकाश के नीचे जो कुछ है, सब मेरा है!+ 12  मैं बताता हूँ उसके हाथ-पैरों की बनावट कैसी है,उसमें कितनी ताकत है, उसे किस खूबसूरती से तराशा गया है। 13  कौन उसकी खाल निकाल सकता है? उसके मज़बूत जबड़ों के पास फटक सकता है? 14  कौन उन्हें* खोलने का साहस कर सकता है? उसके दाँत देखकर कोई भी काँप उठे। 15  उसकी पीठ ऐसी नज़र आती है,मानो ढालें कतार में एक-दूसरे से सटी हों।* 16  वे इस कदर आपस में जुड़ी होती हैंकि उनके बीच हवा तक नहीं जा सकती। 17  उनका जोड़ इतना मज़बूत होता हैकि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। 18  उसकी नाक से तेज़ फुहार रौशनी की तरह दमकती है,उसकी आँखें, सुबह की किरणों जैसी चमकती हैं। 19  उसके मुँह से बिजली कौंधती है,चिंगारियाँ छूटती हैं। 20  उसके नथनों से ऐसा धुआँ निकलता है,जैसे आग की भट्ठी में घास जल रही हो। 21  उसकी फूँक से मानो कोयले सुलग उठते हैं,उसके मुँह से आग की लपटें उठती हैं। 22  उसकी गरदन में ज़बरदस्त ताकत है,डर उसके सामने से भाग खड़ा होता है। 23  उसके पेट की परतें लोहे जितनी सख्त होती हैं,उन्हें हिलाना नामुमकिन है। 24  उसका दिल पत्थर की तरह मज़बूत होता है,हाँ, चक्की के निचले पाट जितना मज़बूत। 25  जब वह हरकत में आता है, तो अच्छे-अच्छे घबरा जाते हैं,डर के मारे सुध-बुध खो बैठते हैं। 26  उस पर तलवार, भाले,बरछी या तीर का कोई असर नहीं होता।+ 27  वह लोहे को भूसाऔर ताँबे को गली हुई लकड़ी समझता है। 28  वह तीर से डरकर भागता नहींगोफन के पत्थरों का वार, उस पर घास-फूस की बौछार है। 29  वह डंडे को घास-फूस समझता है,बरछी से ललकारे जाने पर हँसता है। 30  उसका पेट ठीकरे जैसा पैना होता है,कीचड़ पर वह ऐसे निशान छोड़ जाता है,मानो दाँवने की पटिया चलायी गयी हो।+ 31  वह गहरे सागर में ऐसी हलचल मचाता है, मानो हाँडी उबल रही हो,समुंदर में ऐसा उफान लाता है, मानो हाँडी में खुशबूदार तेल उफन रहा हो। 32  वह पानी में अपने पीछे एक चमकीली लकीर छोड़ जाता है, ऐसा लगता है कि सागर का सफेद बाल निकल आया हो। 33  उसके जैसा पूरी धरती पर कोई नहीं,उसे इस तरह बनाया गया है कि वह किसी से नहीं डरता। 34  वह बड़े-बड़े जानवरों को घूरता है, जंगली जानवरों का वह बादशाह है।”

कई फुटनोट

शायद मगरमच्छ।
जल-बेंत से बनी रस्सी।
शा., “मुँह के दरवाज़े।”
या शायद, “उसे अपनी ढालों की कतार पर घमंड है।”