अय्यूब 9:1-35

  • अय्यूब का जवाब (1-35)

    • अदना इंसान परमेश्‍वर से नहीं लड़ सकता (2-4)

    • ‘परमेश्‍वर के काम समझ से परे’ (10)

    • उससे कोई बहस नहीं कर सकता (32)

9  अय्यूब ने जवाब दिया,   “मैं अच्छी तरह जानता हूँ, परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, तो भला अदना इंसान उसके सामने कैसे सही ठहर सकता है?+   अगर कोई परमेश्‍वर से बहस करना चाहे,*+तो उसके हज़ार सवालों में से एक का भी जवाब नहीं दे पाएगा।   परमेश्‍वर बुद्धिमान* और बहुत शक्‍तिशाली है।+ ऐसा कौन है जो उसके खिलाफ जाकर सही-सलामत बच जाए?+   वह पहाड़ों को सरकाता* है और किसी को पता भी नहीं चलता,अपने क्रोध में उन्हें उलट-पुलट देता है।   वह पृथ्वी को उसकी जगह से हिला देता है,उसके खंभे थर-थर काँप उठते हैं।+   वह सूरज को हुक्म देता है और वह बुझ जाता है,तारों को बंद कर देता है कि वे न चमकें।+   अपने हाथों से आसमान की चादर फैलाता है,+समुंदर की ऊँची-ऊँची लहरों+ पर डग भरता है।   उसने अश,* केसिल* और किमा नाम तारामंडल* बनाए,+दक्षिणी तारामंडल भी उसी की कारीगरी है। 10  वह ऐसे महान काम करता है, जो हमारी समझ से परे हैं,+उसके लाजवाब कामों की कोई गिनती नहीं।+ 11  वह मेरे पास से गुज़र जाता है और मैं उसे देख नहीं पाता,मेरे सामने से निकल जाता है और मैं उसे पहचान नहीं पाता। 12  अगर वह कुछ लेना चाहे, तो कौन उसे रोक सकता है? कौन उससे कह सकता है, ‘यह तू क्या कर रहा है?’+ 13  परमेश्‍वर अपने क्रोध को नहीं रोकेगा,+राहाब*+ के मददगारों को भी उसके सामने झुकना पड़ेगा। 14  अगर ऐसा है तो जब मुझे उसे जवाब देना होगा,दलीलें पेश करनी होंगी, तो सोच-समझकर बोलना होगा। 15  चाहे मैं सही भी क्यों न हूँ, तब भी उसे पलटकर जवाब न दूँगा।+ मैं अपने न्यायी* के आगे सिर्फ दया की भीख माँग सकता हूँ। 16  लेकिन अगर मैं उसे पुकारूँ तो क्या वह मुझे जवाब देगा? मुझे नहीं लगता वह मेरी सुनेगा भी। 17  वह तो मुसीबतों का तूफान लाकर मुझे तोड़ डालता है,बिना कुछ कहे-सुने ज़ख्म-पर-ज़ख्म देता है।+ 18  वह मुझे साँस भी नहीं लेने देता,पल-पल मुझ पर तकलीफें लाता है। 19  अगर सवाल ताकत का है, तो उसके जैसा शक्‍तिशाली कोई नहीं,+ अगर सवाल न्याय का है, तो वह खुद कहता है, ‘कौन मुझसे जवाब-तलब कर* सकता है?’ 20  चाहे मैं सही भी हूँ, तब भी मेरी बातें मुझे गुनहगार ठहराएँगी,चाहे मैं निर्दोष बना रहूँ, तो भी वह मुझे दोषी* ठहराएगा। 21  अब तो मुझे भी शक होने लगा है कि मैं निर्दोष हूँ या नहीं,लानत है ऐसी ज़िंदगी पर! 22  बात तो एक ही है। इसलिए मैं कहता हूँ,‘वह दुष्ट और निर्दोष दोनों का नाश कर देता है।’ 23  जब कोई सैलाब अचानक कई ज़िंदगियाँ बहा ले जाता है,तब वह मासूमों की बेबसी पर हँसता है। 24  धरती दुष्ट के हाथ में कर दी गयी है,+उसने इंसाफ करनेवालों की आँखों पर पट्टी बाँध दी है। अगर यह उसने नहीं किया, तो फिर किसने किया? 25  मेरे दिन खबर पहुँचानेवाले से भी तेज़ भाग रहे हैं,+ऐसा एक भी दिन नहीं जब मैंने खुशी देखी हो। 26  वे ऐसे उड़ जाते हैं मानो नरकट की नाव हवा से बातें कर रही हो,हाँ, उसी फुर्ती से, जिस फुर्ती से उकाब अपने शिकार पर झपटता है। 27  अगर मैं कहूँ, ‘मैं अपना गम भुला दूँगा,चेहरे की उदासी मिटाकर खुश रहूँगा,’ 28  तो भी अपने दुखों की वजह से मुझे डर सताएगा+और मैं जानता हूँ तब भी तू मुझे बेकसूर न मानेगा। 29  जब मुझे दोषी* ही ठहराया जाना है, तो खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश क्यों करूँ?+ 30  अगर मैं पिघलती बर्फ के साफ पानी से नहा लूँ,सज्जी* से अपने हाथ धो लूँ,+ 31  तब भी तू मुझे कीचड़ से भरे गड्‌ढे में डाल देगाऔर मेरे कपड़े तक मुझसे घिन करेंगे। 32  परमेश्‍वर कोई इंसान नहीं, जिससे मैं बहसबाज़ी करूँऔर जिसे कचहरी में घसीटकर ले जाऊँ।+ 33  ऐसा कोई नहीं* जो हमारा मामला सुलझा सके,न्यायी बनकर हमें फैसला सुना सके।* 34  काश! परमेश्‍वर मुझे अपनी छड़ी से मारना बंद कर दे,मुझे डराना छोड़ दे,+ 35  तब मैं बिना डरे उससे बात कर सकूँगा,वरना यूँ डरते-काँपते मेरे मुँह से कुछ नहीं निकलेगा।

कई फुटनोट

या “को कचहरी ले जाना चाहे।”
शा., “दिल में बुद्धिमान।”
शा., “हटाता।”
शायद सप्तर्षि तारामंडल। सात तारों का मंडल।
शायद मृगशिरा तारामंडल।
शायद वृष तारामंडल में तारों का समूह, कृत्तिका।
शायद एक बड़ा समुद्री जीव।
या शायद, “मुद्दई।”
शा., “मुझे अदालत का बुलावा दे।”
शा., “टेढ़ा।”
शा., “दुष्ट।”
एक तरह का साबुन।
या “कोई बिचवई नहीं।”
शा., “जो हम दोनों पर अपना हाथ रख सके।”