उत्पत्ति 45:1-28

  • यूसुफ ने अपनी पहचान बतायी (1-15)

  • उसके भाई याकूब को लाने लौटे (16-28)

45  यूसुफ से अब और रहा नहीं गया।+ उसने अपने सेवकों को हुक्म दिया, “सबसे कहो कि वे बाहर चले जाएँ!” अब जब यूसुफ के साथ सिर्फ उसके भाई रह गए तो उसने उन्हें बताया कि वह असल में कौन है।+  यूसुफ ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा और उसके रोने की आवाज़ आस-पास के मिस्रियों ने भी सुनी और इसकी खबर फिरौन के दरबार तक पहुँच गयी।  कुछ देर बाद यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मैं यूसुफ हूँ। मेरा पिता कैसा है? वह ठीक तो है न?” मगर उसके भाई हक्के-बक्के रह गए, उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था।  तब यूसुफ ने उनसे कहा, “आओ, मेरे पास आओ।” तब वे सब उसके पास गए। फिर उसने कहा, “मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूँ जिसे तुमने मिस्रियों को बेच दिया था।+  मगर अब तुम दुखी मत हो, न ही एक-दूसरे पर दोष लगाओ कि तुमने मुझे बेच दिया। परमेश्‍वर ने तुम सबकी जान बचाने के लिए मुझे तुमसे पहले यहाँ भेजा है।+  अकाल का यह दूसरा साल चल रहा है,+ अभी और पाँच साल तक यही हाल रहेगा, तब तक न कहीं हल चलेगा, न ही फसल उगेगी।  इसीलिए परमेश्‍वर ने मुझे तुमसे पहले यहाँ भेजा ताकि तुम्हें लाजवाब तरीके से बचाए और धरती* से तुम्हारा परिवार न मिटे।+  इसलिए तुमने नहीं बल्कि सच्चे परमेश्‍वर ने मुझे यहाँ भेजा है कि वह मुझे फिरौन का प्रधान सलाहकार* और उसके दरबार का सबसे बड़ा अधिकारी और पूरे मिस्र का शासक ठहराए।+  अब जल्दी से मेरे पिता के पास जाओ और उससे कहो, ‘तेरे बेटे यूसुफ ने कहा है, “परमेश्‍वर ने मुझे पूरे मिस्र का अधिकारी ठहराया है।+ तू मेरे पास आ जा, देर न कर।+ 10  तू यहाँ मेरे पास ही गोशेन नाम के इलाके में रहेगा,+ तू, तेरे बेटे, पोते, साथ ही तेरे गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ और तेरा सबकुछ, यहीं मेरे पास रहेगा। 11  यहाँ मैं तेरे लिए अनाज मुहैया करवाता रहूँगा ताकि तू और तेरा घराना और तेरा जो भी है, तंगी से मिट न जाए क्योंकि यह अकाल अभी और पाँच साल तक चलेगा।”’+ 12  तुम सब खुद अपनी आँखों से देख रहे हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी देख रहा है कि मैं जो तुमसे बात कर रहा हूँ, यूसुफ ही हूँ।+ 13  इसलिए तुम जाकर मेरे पिता को बताना कि मिस्र में मेरी कितनी शोहरत है और तुमने यहाँ जो कुछ देखा वह सब उसे बताना। और बिना देर किए मेरे पिता को यहाँ ले आना।” 14  इसके बाद यूसुफ अपने भाई बिन्यामीन को गले लगाकर रोने लगा और बिन्यामीन भी उससे लिपटकर रोया।+ 15  फिर उसने अपने बाकी सभी भाइयों को चूमा और उनसे गले मिलकर रोया। इसके बाद उसके भाइयों ने उससे बात की। 16  फिरौन के दरबार में यह खबर दी गयी, “यूसुफ के भाई आए हैं!” यह सुनकर फिरौन और उसके दरबारी खुश हुए। 17  फिरौन ने यूसुफ से कहा, “अपने भाइयों से कहना, ‘तुम अपने जानवरों पर अनाज लादकर कनान जाओ 18  और अपने पिता और अपने परिवारों को साथ लेकर यहाँ मेरे पास चले आओ। मैं तुम्हें मिस्र की बेहतरीन चीज़ें दूँगा और तुम इस देश की बढ़िया-से-बढ़िया उपज* में से खाओगे।’+ 19  तू उनसे यह भी कहना,+ ‘तुम मिस्र से कुछ बैल-गाड़ियाँ ले जाओ+ ताकि तुम्हारे छोटे बच्चे और तुम्हारी पत्नियाँ उन पर बैठकर यहाँ आ सकें और एक गाड़ी में तुम अपने पिता को बिठाकर ले आना।+ 20  तुम अपनी जायदाद की चिंता मत करना,+ क्योंकि मिस्र की अच्छी-से-अच्छी चीज़ें तुम्हें दी जाएँगी।’” 21  इसराएल के बेटों ने ऐसा ही किया। यूसुफ ने फिरौन के हुक्म पर उन्हें बैल-गाड़ियाँ दीं। उसने सफर के लिए उन्हें खाने-पीने की चीज़ें भी दीं। 22  और उसने हरेक को एक-एक जोड़ा नया कपड़ा दिया, मगर बिन्यामीन को पाँच जोड़े नए कपड़े+ और चाँदी के 300 टुकड़े दिए। 23  और अपने पिता याकूब के लिए उसने दस गधों पर मिस्र की अच्छी-अच्छी चीज़ें और उसके सफर के लिए दस गधियों पर अनाज, रोटियाँ और खाने की दूसरी चीज़ें भिजवायीं। 24  इस तरह उसने अपने भाइयों को विदा किया। जब वे जाने लगे तो उसने उनसे कहा, “देखो, तुम रास्ते में एक-दूसरे पर गुस्सा मत करना।”+ 25  फिर वे मिस्र से रवाना हुए और कनान देश में अपने पिता याकूब के पास पहुँचे। 26  उन्होंने उसे यह खबर सुनायी, “यूसुफ ज़िंदा है! और वही पूरे मिस्र का शासक है!”+ मगर यह सुनकर याकूब का दिल धक से रह गया क्योंकि उसने उनका यकीन नहीं किया।+ 27  लेकिन जब उन्होंने याकूब को वे सारी बातें बतायीं जो यूसुफ ने कही थीं और जब उसने खुद वे गाड़ियाँ देखीं जो यूसुफ ने उसके लिए भिजवायी थीं, तो उसके अंदर मानो नयी जान आ गयी। 28  इसराएल ने कहा, “अब मुझे यकीन हो गया है कि मेरा बेटा यूसुफ ज़िंदा है! मैं उसके पास जाऊँगा, ज़रूर जाऊँगा ताकि मरने से पहले उसे एक बार देख लूँ।”+

कई फुटनोट

या “देश।”
शा., “पिता-सा।”
या “चरबी।”