एज्रा 4:1-24

  • मंदिर का काम रोकने की कोशिश (1-6)

  • दुश्‍मनों ने राजा अर्तक्षत्र से शिकायत की (7-16)

  • अर्तक्षत्र का जवाब (17-22)

  • मंदिर का काम ठप्प (23, 24)

4  यहूदा और बिन्यामीन के दुश्‍मनों+ ने सुना कि बँधुआई से छूटकर आए लोग,+ इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के लिए मंदिर खड़ा कर रहे हैं।  वे फौरन जरुबाबेल और उन आदमियों के पास गए जो अपने-अपने पिता के कुल के मुखिया थे और कहने लगे, “इस काम में हम तुम्हारा हाथ बँटाना चाहते हैं क्योंकि हम भी उसी परमेश्‍वर की उपासना करते हैं* जिसकी तुम करते हो।+ हम उस ज़माने से तुम्हारे परमेश्‍वर को बलिदान चढ़ाते आए हैं, जब अश्‍शूर का राजा एसर-हद्दोन+ हमें यहाँ लाया था।”+  मगर जरुबाबेल, येशू और इसराएल के कुलों के मुखियाओं ने उनसे कहा, “तुम हमारे साथ हमारे परमेश्‍वर का भवन नहीं बनाओगे।+ फारस के राजा कुसरू ने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का भवन बनाने की जो आज्ञा दी है,+ उसे हम अकेले ही पूरा करेंगे।”  तब आस-पास के देशों के लोग यहूदा के लोगों की हिम्मत तोड़ने लगे* ताकि वे मायूस होकर मंदिर बनाने का काम छोड़ दें।+  उन्होंने राज्य के सलाहकारों को उनके खिलाफ काम करने के लिए पैसे दिए। ये दुश्‍मन फारस के राजा कुसरू के दिनों से लेकर फारस के राजा दारा के दिनों तक,+ यहूदियों की योजनाएँ नाकाम करने की कोशिश करते रहे।+  उन्होंने राजा अहश-वेरोश के राज की शुरूआत में यहूदा और यरूशलेम के निवासियों के खिलाफ राजा को एक खत लिखा।  और जब राजा अर्तक्षत्र फारस पर राज कर रहा था, तब बिशलाम, मिथ्रदात, ताबेल और उसके साथियों ने उसे भी एक चिट्ठी लिखी। उन्होंने उसका अनुवाद अरामी भाषा में करवाया+ और उसे अरामी अक्षरों में लिखवाया।*  * राज्य के मुख्य अधिकारी रहूम और शास्त्री शिमशै ने यरूशलेम के खिलाफ राजा अर्तक्षत्र को यह चिट्ठी लिखी:  (यह चिट्ठी इन लोगों की तरफ से थी: मुख्य अधिकारी रहूम, शास्त्री शिमशै और उनके बाकी साथी यानी न्यायी, उप-राज्यपाल, मंत्री, एरेख+ के लोग, बैबिलोन के लोग, सूसा+ के रहनेवाले एलामी लोग+ 10  और बाकी राष्ट्रों के लोग, जिन्हें महान और गौरवशाली ओसनप्पर* ने बंदी बनाकर सामरिया के शहरों में बसाया था+ और महानदी के इस पार* रहनेवाले बाकी लोग। 11  उस चिट्ठी की एक नकल यह है) “महानदी के इस पार रहनेवाले सेवकों की तरफ से राजा अर्तक्षत्र के नाम। 12  हम राजा को बताना चाहते हैं कि जो यहूदी तेरे यहाँ से यरूशलेम आए हैं, वे दोबारा उस बगावती और दुष्ट शहर को खड़ा कर रहे हैं। उसकी शहरपनाह बनायी जा रही है+ और नींव की मरम्मत चल रही है। 13  राजा जान ले कि अगर यह शहर खड़ा हो गया और उसकी शहरपनाह तैयार हो गयी, तो ये यहूदी न तो कर चुकाएँगे, न माल पर महसूल देंगे+ और न ही सड़क का महसूल चुकाएँगे। इससे शाही खज़ाने को भारी नुकसान होगा। 14  हम राजा का नमक खाते हैं और कोई उसे नुकसान पहुँचाए यह देखकर हम चुप नहीं रह सकते। इसलिए हमने यह खत लिखा है 15  ताकि तू अपने से पहले के राजाओं* के दस्तावेज़ों में छानबीन करे।+ तब तुझे खुद मालूम हो जाएगा कि यह एक बगावती शहर है और राजाओं और प्रांतों के लिए हमेशा से खतरा रहा है। पुराने ज़माने से ही इसके लोग बगावत की आग भड़काते आए हैं और इसी वजह से इस शहर का नाश हुआ था।+ 16  राजा जान ले कि अगर इसे दोबारा बनाया गया और इसकी शहरपनाह तैयार हो गयी, तो महानदी के इस पार का इलाका राजा के हाथ से निकल जाएगा।”+ 17  तब राजा ने मुख्य अधिकारी रहूम, शास्त्री शिमशै और सामरिया में उनके बाकी साथियों को और महानदी के उस पार रहनेवाले बाकी लोगों को यह पैगाम भेजा: “सलाम! 18  तुम लोगों ने जो खत भेजा था वह मुझे शब्द-ब-शब्द पढ़कर सुनाया गया।* 19  मेरे हुक्म पर दस्तावेज़ों में छानबीन की गयी और यह बात सामने आयी है कि पुराने ज़माने से यह शहर राजाओं के खिलाफ सिर उठाता आया है और विद्रोह और बगावत करता आया है।+ 20  ऐसे बहुत-से शक्‍तिशाली राजा भी थे जिन्होंने यरूशलेम और महानदी के उस पार के पूरे इलाके पर राज किया। और जिन्हें कर, माल पर महसूल और सड़क का महसूल अदा किया गया। 21  लेकिन अब इन आदमियों को हुक्म दो कि वे अपना काम रोक दें और जब तक मैं न कहूँ, इस शहर को दोबारा न बनाया जाए। 22  इस मामले पर जल्द-से-जल्द कार्रवाई की जाए ताकि राजा को और नुकसान न हो।”+ 23  जब राजा अर्तक्षत्र का खत रहूम, शास्त्री शिमशै और उनके साथियों के सामने पढ़ा गया, तो वे फौरन यरूशलेम गए और उन्होंने जबरन यहूदियों का काम बंद करवा दिया। 24  तब यरूशलेम में सच्चे परमेश्‍वर के भवन का काम रुक गया और फारस के राजा दारा के राज के दूसरे साल तक ठप्प पड़ा रहा।+

कई फुटनोट

शा., “की खोज करते हैं।”
शा., “के हाथ ढीले करने लगे।”
या शायद, “इसे अरामी भाषा में लिखा गया और फिर इसका अनुवाद किया गया।”
मूल पाठ में एज 4:8 से लेकर 6:18 तक का हिस्सा अरामी भाषा में लिखा गया था।
यानी अश्‍शूरबनीपाल।
यानी फरात नदी के पश्‍चिम में।
शा., “अपने पुरखों।”
या शायद, “वह अनुवाद करके पढ़ा गया।”