एस्तेर 1:1-22

  • शूशन में राजा अहश-वेरोश की दावत (1-9)

  • रानी वशती ने आने से इनकार किया (10-12)

  • राजा ने अपने ज्ञानियों से सलाह की (13-20)

  • राजा ने फरमान निकाला (21, 22)

1  यह उन दिनों की बात है जब राजा अहश-वेरोश* हिन्दुस्तान से लेकर इथियोपिया* तक, 127 ज़िलों पर राज कर रहा था।+  उस वक्‍त वह शूशन*+ नाम के किले* से राज कर रहा था।  अपने राज के तीसरे साल में उसने अपने सभी हाकिमों और सेवकों के लिए एक शाही दावत रखी। फारस+ और मादै+ के सेनापति, बड़े-बड़े अधिकारी और सभी ज़िलों के राज्यपाल उसके सामने आए।  राजा उन्हें 180 दिन तक अपने राज्य की सारी दौलत, ताकत और शानो-शौकत दिखाता रहा।  इन दिनों के पूरे होने पर, शूशन* नाम के किले* में छोटे-बड़े जितने भी लोग हाज़िर थे, उन सबके लिए राजा ने एक दावत रखी* जो सात दिन तक चली। यह दावत राजा के महल के आँगन में रखी गयी।  पूरा आँगन मलमल के कपड़े, बढ़िया सूत और नीले रंग के परदों से सजा था। परदों पर सूती फीते लगे थे और इन फीतों को बैंजनी रंग की ऊनी रस्सी में पिरोया गया था। यह रस्सी संगमरमर के खंभों पर जड़े चाँदी के छल्लों से बँधी थी। फर्श नीललोहित पत्थरों, सफेद और काले संगमरमर और मोतियों से जड़ा था और उस पर सोने-चाँदी के दीवान रखे थे।  मेहमानों को सोने के प्यालों में दाख-मदिरा पेश की गयी, हर प्याला अपने आप में अनोखा था। दाख-मदिरा पानी की तरह बह रही थी, इतनी दाख-मदिरा सिर्फ राजा ही दे सकता था।  दस्तूर के मुताबिक शराब पी जा रही थी लेकिन कोई किसी को पीने के लिए मजबूर नहीं कर रहा था,* क्योंकि राजा ने महल के अधिकारियों को हुक्म दिया था कि हर मेहमान को यह छूट दी जाए कि वह अपने हिसाब से पीए।  रानी वशती+ ने भी राजा अहश-वेरोश के शाही भवन* में औरतों के लिए एक दावत रखी थी। 10  सातवें दिन जब राजा दाख-मदिरा पीकर बहुत खुश था, तो उसने अपने सात दरबारियों को यानी महूमान, बिजता, हरबोना,+ बिगता, अबगता, जेतेर और करकस को एक हुक्म दिया। ये दरबारी राजा की सेवा के लिए हर वक्‍त उसके सामने हाज़िर रहते थे। 11  राजा ने उन्हें यह कहकर रानी वशती के पास भेजा कि रानी अपनी शाही ओढ़नी पहनकर राजा के सामने आए ताकि सब लोग और हाकिम उसकी खूबसूरती निहार सकें। रानी सचमुच बहुत खूबसूरत थी। 12  लेकिन वह राजा के सामने आने से इनकार करती रही और उसने राजा का हुक्म नहीं माना जो दरबारी लाए थे। इस पर राजा को बहुत गुस्सा आया और उसका खून खौल उठा। 13  राजा ने अपने बड़े-बड़े ज्ञानियों से सलाह-मशविरा किया, जो बीते समय में हुई इस तरह की घटनाओं की अच्छी समझ रखते थे। (इस तरह राजा अपने मसले उन लोगों के सामने रखता था जो कानून और मुकदमों के अच्छे जानकार थे। 14  इनमें से राजा के सबसे करीबी सलाहकार थे करशना, शेतार, अदमाता, तरशीश, मेरेस, मर्सना और ममूकान। फारस और मादै के ये सात हाकिम+ सबसे ऊँचे ओहदे पर थे और हर वक्‍त राजा के सामने हाज़िर रहते थे)। 15  राजा ने उनसे कहा, “रानी वशती ने राजा अहश-वेरोश का हुक्म नहीं माना जो उसके दरबारी उसके पास ले गए थे। अब बताओ, कानून के मुताबिक उसके साथ क्या किया जाए?” 16  तब ममूकान ने राजा और हाकिमों के सामने कहा, “रानी वशती ने सिर्फ राजा अहश-वेरोश के खिलाफ अपराध नहीं किया+ बल्कि सभी ज़िलों के हाकिमों और लोगों के खिलाफ अपराध किया है। 17  क्योंकि कल जब यह बात सब औरतों में फैलेगी तो वे भी अपने-अपने पति को तुच्छ समझेंगी और कहेंगी, ‘रानी वशती ने भी तो राजा अहश-वेरोश का हुक्म नहीं माना था और उसके सामने हाज़िर नहीं हुई थी।’ 18  जब फारस और मादै के हाकिमों की पत्नियों को पता चलेगा कि रानी ने क्या किया है, तो वे भी अपने पतियों से वैसे ही बात करेंगी। और इस तरह वे अपने पतियों को नीचा दिखाएँगी और पतियों का क्रोध उन पर भड़क उठेगा। 19  इसलिए अगर हुज़ूर को यह मंज़ूर हो तो वह एक शाही फरमान निकाले कि रानी वशती फिर कभी राजा अहश-वेरोश के सामने न आए। और यह बात फारस और मादै के कानून में लिखी जाए ताकि उसे रद्द न किया जा सके।+ और वशती की जगह राजा एक नयी रानी चुन ले जो वशती से कहीं अच्छी हो। 20  जब राजा का फरमान पूरे राज्य में सुनाया जाएगा, तो सभी औरतें अपने-अपने पति की इज़्ज़त करेंगी, फिर चाहे उनके पति किसी भी ओहदे पर क्यों न हों।” 21  ममूकान की यह सलाह राजा और उसके हाकिमों को पसंद आयी और राजा ने वैसा ही किया। 22  उसने अपने सभी ज़िलों में उनकी भाषा और लिपि में खत भिजवाए।+ उसमें लिखा था कि हर आदमी जो अपने-अपने घर का मुखिया है, वह अपने परिवार पर अधिकार जताए और उसके घर में वही भाषा बोली जाए जो उसके अपने लोगों की भाषा है।

कई फुटनोट

माना जाता है कि यह क्षयर्ष प्रथम था, जो दारा महान (या दारा हिस्तासपिस) का बेटा था।
या “कूश।”
या “सूसा।”
या “महल।”
या “महल।”
आय. 3 और 5 में शायद एक ही दावत की बात की जा रही है।
या “सूसा।”
या “कोई रोक-टोक नहीं थी।”
या “महल।”