गलातियों के नाम चिट्ठी 1:1-24

  • नमस्कार (1-5)

  • कोई और खुशखबरी नहीं (6-9)

  • पौलुस की बतायी खुशखबरी परमेश्‍वर से थी (10-12)

  • पौलुस कैसे बदला और उसकी शुरू की सेवा (13-24)

1  यह चिट्ठी मुझ पौलुस की तरफ से है। मुझे न इंसानों की तरफ से और न किसी इंसान के ज़रिए प्रेषित ठहराया गया बल्कि परमेश्‍वर हमारे पिता+ ने मुझे यीशु मसीह के ज़रिए प्रेषित ठहराया,+ जिसे उसने मरे हुओं में से ज़िंदा किया था।  मैं और मेरे साथ के सभी भाई गलातिया प्रांत की मंडलियों को यह चिट्ठी लिख रहे हैं:  तुम्हें परमेश्‍वर हमारे पिता की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से महा-कृपा और शांति मिले।  हमारे परमेश्‍वर और पिता की मरज़ी+ के मुताबिक मसीह ने हमारे पापों के लिए खुद को दे दिया+ ताकि हमें इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था*+ से छुटकारा दिलाए।  परमेश्‍वर की महिमा हमेशा-हमेशा तक होती रहे। आमीन।  मुझे ताज्जुब होता है कि तुम इतनी जल्दी उस परमेश्‍वर से मुँह मोड़ रहे हो जिसने तुम्हें मसीह की महा-कृपा दिखाकर बुलाया था और अब तुम किसी और तरह की खुशखबरी की तरफ जा रहे हो।+  मगर कोई और खुशखबरी है ही नहीं। सच तो यह है कि वहाँ कुछ ऐसे लोग हैं जो तुम्हारे लिए मुश्‍किल पैदा कर रहे हैं+ और मसीह के बारे में खुशखबरी को बिगाड़ना चाहते हैं।  लेकिन चाहे हम या स्वर्ग का कोई दूत भी, उस खुशखबरी के नाम पर जो हमने तुम्हें सुनायी थी, कोई और खुशखबरी सुनाए तो वह शापित ठहरे।  मैं एक बार फिर वही बात कहता हूँ जो हमने अभी-अभी कही है, तुमने जो खुशखबरी स्वीकार की थी उसके नाम पर अगर कोई कुछ और सिखाता है तो वह शापित ठहरे। 10  अब मैं इंसानों को कायल करने की कोशिश कर रहा हूँ या परमेश्‍वर को? या क्या मैं इंसानों को खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ? अगर मैं अब भी इंसानों को खुश करने में लगा हूँ, तो मैं मसीह का दास नहीं। 11  मेरे भाइयो, यह जान लो कि मैंने तुम्हें जो खुशखबरी सुनायी थी वह इंसानों की तरफ से नहीं है।+ 12  क्योंकि मैंने इसे न तो किसी इंसान से पाया है, न ही किसी इंसान से सीखा है, बल्कि खुद यीशु मसीह ने इसे मुझ पर प्रकट किया था। 13  बेशक तुमने सुना है कि जब मैं पहले यहूदी धर्म मानता था तो मेरा बरताव कैसा था।+ मैं परमेश्‍वर की मंडली को बुरी तरह सताता था और उसे तबाह करता था।+ 14  और मैं यहूदी धर्म में अपने राष्ट्र और अपनी उम्र के कई लोगों से ज़्यादा तरक्की कर रहा था, क्योंकि मैं अपने पुरखों की परंपराओं को मानने में सबसे जोशीला था।+ 15  लेकिन परमेश्‍वर, जिसने मुझे इस दुनिया में पैदा किया और मुझ पर महा-कृपा करके मुझे बुलाया,+ उसे यह अच्छा लगा 16  कि वह मेरे ज़रिए अपने बेटे को प्रकट करे ताकि मैं गैर-यहूदियों को उसके बेटे की खुशखबरी सुनाऊँ।+ तब मैं फौरन किसी इंसान के पास इस बारे में सलाह-मशविरा करने नहीं गया, 17  न ही मैं यरूशलेम में उनके पास गया जो मुझसे पहले से प्रेषित थे, मगर मैं अरब देश चला गया और बाद में दमिश्‍क+ लौट आया। 18  फिर तीन साल बाद मैं कैफा*+ से मिलने यरूशलेम गया+ और 15 दिन तक उसके साथ रहा। 19  वहाँ मैं प्रभु के भाई याकूब+ से भी मिला। उनके अलावा मैं किसी और प्रेषित से नहीं मिला। 20  परमेश्‍वर इस बात का गवाह है कि जो बातें मैं तुम्हें लिख रहा हूँ वे झूठी नहीं हैं। 21  इसके बाद, मैं सीरिया और किलिकिया+ के इलाकों में गया। 22  मगर यहूदिया की मसीही मंडलियों ने मुझे पहले कभी नहीं देखा था। 23  वे मंडलियाँ सिर्फ मेरे बारे में सुना करती थीं, “जो आदमी पहले हम पर ज़ुल्म ढाता था,+ वह अब इसी विश्‍वास के बारे में खुशखबरी सुना रहा है जिसे वह पहले तबाह करता था।”+ 24  इसलिए वे मेरी वजह से परमेश्‍वर की महिमा करने लगे।

कई फुटनोट

या “ज़माने।” शब्दावली देखें।
पतरस भी कहलाता था।