गलातियों के नाम चिट्ठी 5:1-26
5 यही आज़ादी पाने के लिए मसीह ने हमें आज़ाद किया है। इसलिए मज़बूत खड़े रहो+ और खुद को फिर से गुलामी के जुए में न जुतने दो।+
2 देखो! मैं पौलुस, तुम्हें बता रहा हूँ कि अगर तुम खतना करवाते हो, तो मसीह तुम्हारे लिए किसी फायदे का नहीं होगा।+
3 मैं खतना करानेवाले हर आदमी से एक बार फिर कहता हूँ कि अगर वह खतना करवाता है तो उसे मूसा के बाकी सभी कानूनों को भी मानना होगा।+
4 तुम जो कानून को मानकर नेक ठहरने की कोशिश कर रहे हो, तुम मसीह से अलग हो गए हो।+ तुम उसकी महा-कृपा के दायरे से बाहर हो गए हो।
5 मगर हम पवित्र शक्ति के ज़रिए विश्वास से नेक ठहरने की आशा रखते हैं और उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।
6 क्योंकि जो मसीह यीशु के साथ एकता में हैं उनके लिए न तो खतना कराने की कोई अहमियत है, न ही खतना न कराने की+ बल्कि उस विश्वास की अहमियत है जो प्यार के ज़रिए दिखायी देता है।
7 तुम सच्चाई की राह पर अच्छे-खासे चल* रहे थे।+ फिर किसने तुम्हें सच्चाई को मानने से रोका?
8 इस तरह की दलीलें उस परमेश्वर की तरफ से नहीं हैं जिसने तुम्हें बुलाया है।
9 ज़रा-सा खमीर पूरे गुँधे हुए आटे को खमीरा कर देता है।+
10 तुम जो प्रभु के साथ एकता में हो,+ मुझे तुम पर यकीन है कि तुम कोई और विचार नहीं अपनाओगे। मगर जो तुम्हारे लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है+ वह चाहे जो भी हो, उसे वह सज़ा ज़रूर मिलेगी जिसके वह लायक है।
11 भाइयो, जहाँ तक मेरी बात है, अगर मैं अब भी खतना कराने का प्रचार कर रहा हूँ तो मुझ पर आज तक ज़ुल्म क्यों ढाए जा रहे हैं? अगर मैं ऐसा कर रहा होता, तो यातना के काठ* की वजह से लोगों को ठेस पहुँचने की गुंजाइश ही नहीं रहती।+
12 अच्छा होता कि जो आदमी तुम्हें उलझन में डालना चाहते हैं, वे अपना अंग कटवा डालते।*
13 भाइयो, तुम्हें आज़ाद होने के लिए बुलाया गया था। बस तुम यह मत समझो कि इस आज़ादी से तुम्हें शरीर की इच्छाएँ पूरी करने की छूट मिल जाती है,+ मगर दास बनकर प्यार से एक-दूसरे की सेवा करो।+
14 इसलिए कि पूरे कानून का निचोड़ इस एक आज्ञा में है:* “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।”+
15 लेकिन अगर तुम एक-दूसरे को काटने और फाड़ खाने में लगे हो,+ तो खबरदार रहो कि तुम एक-दूसरे का सर्वनाश न कर दो।+
16 मगर मैं कहता हूँ, पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलते रहो+ और तुम शरीर की इच्छाओं को हरगिज़ पूरा न करोगे।+
17 इसलिए कि पापी शरीर की इच्छाएँ, पवित्र शक्ति के खिलाफ होती हैं और पवित्र शक्ति, शरीर के खिलाफ है। ये दोनों एक-दूसरे के विरोध में हैं इसलिए जो तुम करना चाहते हो वही तुम नहीं करते।+
18 अगर तुम पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलते हो, तो तुम कानून के अधीन नहीं हो।
19 शरीर के काम तो साफ दिखायी देते हैं। वे हैं, नाजायज़ यौन-संबंध,*+ अशुद्धता, निर्लज्ज काम,*+
20 मूर्तिपूजा, जादू-टोना,*+ दुश्मनी, तकरार, जलन, गुस्से से भड़कना, झगड़े, फूट, गुटबंदी,
21 ईर्ष्या, पियक्कड़पन,+ रंगरलियाँ और ऐसी ही और बुराइयाँ।+ मैं इन बुराइयों के बारे में तुम्हें खबरदार कर रहा हूँ, जैसे मैंने पहले भी किया था कि जो लोग ऐसे कामों में लगे रहते हैं वे परमेश्वर के राज के वारिस नहीं होंगे।+
22 दूसरी तरफ पवित्र शक्ति का फल है: प्यार, खुशी, शांति, सब्र, कृपा, भलाई,+ विश्वास,
23 कोमलता, संयम।+ ऐसी बातों के खिलाफ कोई कानून नहीं है।
24 जो मसीह यीशु के हैं उन्होंने अपने शरीर को उसकी वासनाओं और इच्छाओं समेत काठ पर ठोंक दिया है।+
25 अगर हमारा जीने का तरीका पवित्र शक्ति के मुताबिक है, तो आओ हम इसी तरह पवित्र शक्ति के मुताबिक सीधी चाल चलते रहें।+
26 हम अहंकारी न बनें,+ एक-दूसरे को होड़ लगाने के लिए न उकसाएँ+ और एक-दूसरे से ईर्ष्या न करें।
कई फुटनोट
^ शा., “दौड़।”
^ या “अंडकोष निकलवा देते; नपुंसक बन जाते” ताकि वे उस कानून को मानने के अयोग्य ठहरें जिसे मानने का वे बढ़ावा दे रहे थे।
^ या “इस एक बात से पूरा होता है।”