जकरयाह 7:1-14
7 राजा दारा के राज के चौथे साल में, किसलेव* नाम के नौवें महीने के चौथे दिन, यहोवा का संदेश जकरयाह के पास पहुँचा।+
2 बेतेल के लोगों ने शरेसेर, रेगेम-मेलेक और उसके आदमियों को भेजा कि वे यहोवा से दया की भीख माँगें।
3 उन्होंने सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के भवन* के याजकों और उसके भविष्यवक्ताओं से पूछा, “क्या हम* पाँचवें महीने में विलाप+ और उपवास करें, जैसा हम इतने सालों से करते आए हैं?”
4 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का संदेश एक बार फिर मेरे पास पहुँचा:
5 “देश के सब लोगों और याजकों से कह, ‘तुमने 70 सालों+ में हर पाँचवें और सातवें महीने शोक मनाकर जो उपवास किया,+ क्या वह सचमुच मेरे लिए था?
6 जब तुम खा रहे थे और पी रहे थे, तो क्या अपने लिए नहीं खा-पी रहे थे?
7 जब यरूशलेम और उसके आस-पास के शहर चैन से बसे थे, जब नेगेब और शफेलाह आबाद थे, तब तुम्हें यहोवा की बात माननी चाहिए थी जो उसने पहले के भविष्यवक्ताओं से कहलवायी थी।’”+
8 यहोवा का संदेश एक बार फिर जकरयाह के पास पहुँचा:
9 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘सच्चाई से न्याय करो,+ एक-दूसरे पर दया करो और अटल प्यार रखो।+
10 विधवाओं और अनाथों* को मत ठगो,+ परदेसियों और गरीबों को मत लूटो।+ अपने दिलों में एक-दूसरे के खिलाफ साज़िश मत रचो।’+
11 मगर लोगों ने ध्यान देने से इनकार कर दिया।+ ढीठ होकर उन्होंने उससे मुँह फेर लिया+ और अपने कान बंद कर लिए कि उसकी न सुनें।+
12 उन्होंने अपना दिल हीरे* जैसा सख्त कर लिया।+ उन्होंने सेनाओं के परमेश्वर यहोवा की उन बातों और आज्ञाओं* को नहीं माना, जिन्हें सुनाने के लिए उसने पहले के भविष्यवक्ताओं को पवित्र शक्ति दी थी।+ इसलिए सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा।”+
13 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मेरे* बुलाने पर उन्होंने मेरी नहीं सुनी,+ इसलिए उनके बुलाने पर मैं भी उनकी नहीं सुनूँगा।+
14 मैंने आँधी लाकर उन्हें सब अनजान राष्ट्रों में बिखेर दिया।+ उनके चले जाने के बाद उनका देश उजाड़ पड़ा रहा, वहाँ कोई लौटकर नहीं आया, कोई उसमें से होकर नहीं गुज़रा।+ क्योंकि दुश्मनों ने उस खूबसूरत देश का वह हाल कर दिया कि देखनेवालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।’”
कई फुटनोट
^ या “मंदिर।”
^ शा., “मैं।”
^ या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”
^ या शायद, “कोई और सख्त पत्थर।”
^ या “शिक्षाओं।”
^ शा., “उसके।”