जकरयाह 8:1-23

  • यहोवा सिय्योन में शांति और सच्चाई फैलाता है (1-23)

    • यरूशलेम “सच्चाई की नगरी” (3)

    • “एक-दूसरे से सच बोलना” (16)

    • उपवास जश्‍न में बदला (18, 19)

    • ‘आओ, यहोवा की खोज करें’ (21)

    • दस लोग, एक यहूदी के कपड़े का छोर पकड़ेंगे (23)

8  सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का संदेश एक बार फिर मेरे पास पहुँचा:  “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘मैं सिय्योन के लिए बेचैन हो उठा हूँ, अंदर-ही-अंदर तड़प रहा हूँ।+ मेरा क्रोध भड़क उठा है और मैं उसकी खातिर कदम उठाऊँगा।’”  “यहोवा कहता है, ‘मैं वापस सिय्योन आऊँगा+ और आकर यरूशलेम में रहूँगा।+ यरूशलेम सच्चाई की* नगरी कहलाएगी+ और सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का पहाड़, पवित्र पहाड़ कहलाएगा।’”+  “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘बूढ़े लोग फिर से यरूशलेम के चौक में बैठा करेंगे। वे हाथ में लाठी लिए रहेंगे क्योंकि उनकी उम्र बहुत लंबी होगी।+  शहर के चौक खेलते-कूदते बच्चों से भरे रहेंगे।’”+  “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘चाहे उन दिनों में यह बात इन बचे हुए लोगों को नामुमकिन लगे, पर क्या मेरे लिए यह बात नामुमकिन हो सकती है?’ सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने यह बात कही है।”  “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘मैं अपने लोगों को पूरब और पश्‍चिम के देशों से छुड़ाऊँगा।+  मैं उन्हें वापस लाऊँगा और वे यरूशलेम में रहेंगे।+ वे मेरे लोग ठहरेंगे और मैं उनका नेक और सच्चा* परमेश्‍वर ठहरूँगा।’”+  “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘हे भविष्यवक्‍ताओं की बातें सुननेवालो,+ हिम्मत से काम लो!*+ तुम उनके मुँह से जो बातें सुन रहे हो, वे तब भी कही गयी थीं जब सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के मंदिर की नींव डाली गयी। 10  उससे पहले न तो लोगों को उनकी मज़दूरी मिलती थी, न जानवरों का किराया।+ और दुश्‍मन के डर से कहीं आना-जाना खतरे से खाली नहीं था क्योंकि मैंने सब लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ कर दिया था।’ 11  सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का यह ऐलान है, ‘मगर अब मैं इन बचे हुए लोगों के साथ पहले जैसा व्यवहार नहीं करूँगा+ 12  क्योंकि शांति के बीज बोए जाएँगे। अंगूर की बेलें फलेंगी, धरती अपनी उपज देगी+ और आसमान से ओस गिरेगी। मैं बचे हुए लोगों को इन सब चीज़ों का वारिस बना दूँगा।+ 13  हे यहूदा के घराने, हे इसराएल के घराने, राष्ट्र तुम्हारी मिसाल देकर शाप देते थे,+ मगर अब मैं तुम्हें बचाऊँगा और तुम आशीष पाने की वजह बन जाओगे।+ डरो मत,+ हिम्मत से काम लो।’*+ 14  सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, “जैसे तुम्हारे पुरखों के क्रोध दिलाने पर मैंने तुम पर विपत्ति लाने की ठान ली थी और मैंने अपना इरादा नहीं बदला,*+ 15  वैसे ही अब मैंने यहूदा के घराने और यरूशलेम का भला करने की ठान ली है।+ इसलिए तुम मत डरो!”’+ 16  ‘तुम यह सब करना: एक-दूसरे से सच बोलना,+ शहर के फाटकों पर सच्चाई से न्याय करना और ऐसे फैसले सुनाना जिनसे शांति कायम हो।+ 17  मन-ही-मन किसी को बरबाद करने की साज़िश मत रचना+ और झूठी शपथ मत खाना+ क्योंकि मुझे इन बातों से नफरत है।’+ यह बात यहोवा ने कही है।” 18  सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का संदेश एक बार फिर मेरे पास पहुँचा: 19  “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘चौथे, पाँचवें, सातवें और दसवें महीने में जिस-जिस दिन यहूदा का घराना उपवास करता था,+ वह जश्‍न और खुशी के दिन में बदल जाएगा। हर कहीं खुशियों का त्योहार मनाया जाएगा।+ इसलिए सच्चाई और शांति से प्यार करो।’ 20  सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘ऐसा समय आनेवाला है जब देश-देश के लोग और कई शहरों के निवासी आएँगे। 21  और एक शहर के निवासी दूसरे शहर के निवासियों से जाकर कहेंगे, “आओ, यहोवा से दया की भीख माँगने चलें। आओ, सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करें। हम तो जा रहे हैं!”+ 22  तब कई देशों के लोग और बड़े-बड़े राष्ट्र, सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करने यरूशलेम आएँगे+ और यहोवा से दया की भीख माँगेंगे।’ 23  सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘उन दिनों अलग-अलग भाषा बोलनेवाले सब राष्ट्रों में से दस लोग,+ एक यहूदी* के कपड़े का छोर पकड़ लेंगे। हाँ, वे उसका छोर पकड़कर कहेंगे, “हम तुम्हारे साथ चलना चाहते हैं+ क्योंकि हमने सुना है, परमेश्‍वर तुम लोगों के साथ है।”’”+

कई फुटनोट

या “विश्‍वासयोग्य।”
या “विश्‍वासयोग्य।”
शा., “अपने हाथों को मज़बूत करो।”
शा., “अपने हाथों को मज़बूत करो।”
या “मैं नहीं पछताया।”
शा., “एक यहूदी आदमी।”