नहेमायाह 2:1-20

  • नहेमायाह को यरूशलेम भेजा गया (1-10)

  • वह शहरपनाह का मुआयना करता है (11-20)

2  अब राजा अर्तक्षत्र के राज+ के 20वें साल में+ नीसान* नाम का महीना आया। राजा के लिए दाख-मदिरा लायी गयी और हमेशा की तरह मैंने वह दाख-मदिरा उसे पेश की।+ मैं राजा के सामने पहले कभी इतना उदास नहीं रहा।  इसलिए राजा ने मुझसे पूछा, “तू बीमार नहीं, फिर तेरे चेहरे पर उदासी क्यों छायी है? ज़रूर कोई बात तुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रही है।” यह सुनकर मैं बहुत घबरा गया।  मैंने राजा से कहा, “राजा की जय हो! जिस शहर में मेरे पुरखों को दफनाया गया था, जब वही उजाड़ पड़ा हो और उसके फाटक जलकर राख हो गए हों, तो भला मैं खुश कैसे रह सकता हूँ?”+  राजा ने मुझसे पूछा, “बता, तू क्या चाहता है?” उसी वक्‍त मैंने स्वर्ग के परमेश्‍वर से प्रार्थना की।+  फिर मैंने राजा से कहा, “अगर राजा को यह मंज़ूर हो और अगर वह अपने इस सेवक से खुश है, तो वह मुझे यहूदा जाने दे। मुझे उस शहर जाने दे, जहाँ मेरे पुरखों को दफनाया गया था ताकि मैं उसे दोबारा बना सकूँ।”+  तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी हुई थी मुझसे कहा, “तेरा यह सफर कितने दिनों का होगा? और तू कब लौटेगा?” राजा मुझे भेजने के लिए तैयार हो गया+ और मैंने उसे बताया कि मुझे लौटने में कितने दिन लगेंगे।+  मैंने राजा से एक और गुज़ारिश की, “हुज़ूर, मुझे महानदी के उस पार* के राज्यपालों के नाम खत दे+ कि वे मुझे अपने इलाके से होकर जाने दें और मैं सही-सलामत यहूदा पहुँच सकूँ।  मुझे शाही बाग के रखवाले आसाप के नाम भी एक खत दे ताकि वह मुझे लकड़ियाँ ले जाने दे और मैं ‘मंदिर के किले’+ के फाटक, शहरपनाह+ और अपने रहने के लिए घर बना सकूँ।” मेरा परमेश्‍वर मेरे साथ था इसलिए राजा ने मुझे वे खत दे दिए।+  जब मैं महानदी के उस पार पहुँचा, तो मैंने वहाँ के राज्यपालों को राजा के खत दिए। राजा ने मेरे साथ अपने सेनापतियों और घुड़सवारों को भी भेजा था। 10  बेत-होरोन के रहनेवाले सनबल्लत+ और अम्मोनी+ अधिकारी* तोब्याह+ ने जब सुना कि इसराएल के लोगों की मदद करने कोई आया है, तो वे गुस्से से भर गए। 11  एक लंबा सफर तय करने के बाद, मैं यरूशलेम पहुँचा और तीन दिन तक वहीं रहा। 12  मैं रात में कुछ आदमियों को लेकर निकल पड़ा। मैंने किसी को कुछ नहीं बताया कि मेरे परमेश्‍वर ने यरूशलेम के बारे में मेरे मन में क्या बात डाली है। सवारी के लिए हमारे पास एक ही गधा था और उस पर मैं सवार था। 13  मैं रात को ‘घाटी के फाटक’+ से शहर के बाहर निकला और अजगर सोते* के सामने से होते हुए ‘राख के ढेर के फाटक’+ पर पहुँचा। मैंने यरूशलेम की टूटी दीवारों का और राख हो चुके उसके फाटकों का मुआयना किया।+ 14  फिर मैं उस फाटक से होते हुए गया जो सोता फाटक कहलाता है+ और ‘राजा के तालाब’ की तरफ बढ़ा। वहाँ मेरे गधे के निकलने के लिए जगह काफी नहीं थी। 15  फिर भी मैं घाटी+ के रास्ते से ऊपर की तरफ बढ़ता गया और रात-भर शहरपनाह का मुआयना करता रहा। इसके बाद मैं वापस लौट आया और ‘घाटी के फाटक’ से शहर के अंदर आ गया। 16  अधिकारी*+ नहीं जानते थे कि मैं कहाँ गया था और क्या कर रहा था। क्योंकि मैंने अब तक अधिकारियों,* यहूदियों, याजकों, बड़े-बड़े लोगों और मरम्मत का काम करनेवालों को कुछ नहीं बताया था। 17  मुआयना करने के बाद मैंने उन सबसे कहा, “तुम देख सकते हो कि हमारी हालत कितनी बुरी है। यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जलकर राख हो चुके हैं। आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को दोबारा खड़ा करें ताकि लोग हमारा मज़ाक उड़ाना बंद कर दें।” 18  फिर मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरा परमेश्‍वर मेरे साथ था+ और राजा ने मुझसे क्या-क्या कहा।+ यह सुनकर वे बोल उठे, “आओ, हम काम शुरू करें।” इस बढ़िया काम के लिए उन्होंने एक-दूसरे की हिम्मत बँधायी।+ 19  जब इस बात की खबर बेत-होरोन के रहनेवाले सनबल्लत, अम्मोनी+ अधिकारी* तोब्याह+ और अरब के रहनेवाले गेशेम+ को मिली, तो वे हमारी खिल्ली उड़ाने लगे+ और हमें नीचा दिखाने लगे। वे कहने लगे, “यह क्या हो रहा है? क्या तुम लोग राजा से बगावत कर रहे हो?”+ 20  लेकिन मैंने कहा, “स्वर्ग का परमेश्‍वर हमारे साथ है और वही हमें कामयाबी देगा।+ हम उसके सेवक हैं और हम यह शहरपनाह बनाएँगे। लेकिन यरूशलेम में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं, कोई हक नहीं! न ही तुमने यरूशलेम के लिए कुछ किया है कि तुम्हें याद किया जाए।”+

कई फुटनोट

अति. ख15 देखें।
यानी फरात नदी के पश्‍चिम में।
शा., “कर्मचारी।”
मुमकिन है कि यह एन-रोगेल का कुआँ था।
या “मातहत अधिकारी।”
या “मातहत अधिकारियों।”
शा., “कर्मचारी।”