नहेमायाह 4:1-23

  • विरोध के बावजूद काम आगे बढ़ा (1-14)

  • हथियार लिए कारीगर काम जारी रखते हैं (15-23)

4  जब सनबल्लत+ ने सुना कि हम लोग शहरपनाह की मरम्मत कर रहे हैं, तो यह बात उसे रास नहीं आयी और वह बहुत गुस्सा हुआ। वह हम यहूदियों का मज़ाक भी उड़ाने लगा।  वह अपने भाइयों और सामरिया की सेना के सामने कहने लगा, “ये कमज़ोर यहूदी क्या कर रहे हैं? क्या वे अपने दम पर शहरपनाह खड़ी कर लेंगे? और बलिदान चढ़ाएँगे? क्या उनका काम एक ही दिन में पूरा हो जाएगा? कहाँ से लाएँगे पत्थर, क्या मलबे में पड़े जले पत्थर लगाएँगे दीवारों में?”+  उसके पास खड़े अम्मोनी+ तोब्याह+ ने कहा, “ये जो दीवार बना रहे हैं, उस पर अगर एक लोमड़ी भी चढ़ जाए तो यह आसानी से गिर जाएगी।”  तब मैंने प्रार्थना की, “हे हमारे परमेश्‍वर, देख! ये लोग कैसे हमें नीचा दिखा रहे हैं।+ ऐसा हो कि जिस तरह ये हमारा अपमान कर रहे हैं, उसी तरह इनका भी अपमान हो।+ और इन्हें बंदी बनाकर पराए देश में ले जाया जाए, जैसे लूट का माल ले जाया जाता है।  तू इनके दोष को अनदेखा मत करना और इनके पापों को मत मिटाना।+ क्योंकि इन्होंने शहरपनाह बनानेवालों का अपमान किया है।”  हम शहरपनाह की मरम्मत करते रहे। वह जहाँ-जहाँ से टूटी थी, उसे हमने फिर से बनाया। और बनाते-बनाते हमने उसे आधी ऊँचाई तक खड़ा कर दिया। लोग दिल लगाकर काम करते रहे।  जब सनबल्लत, तोब्याह,+ अरबी लोगों,+ अम्मोनियों और अशदोदियों+ ने सुना कि यरूशलेम की शहरपनाह का काम ज़ोर-शोर से चल रहा है और उसके टूटे हुए हिस्से दोबारा बनाए जा रहे हैं, तो वे बौखला उठे।  उन्होंने मिलकर साज़िश की कि वे यरूशलेम पर हमला बोलेंगे और चारों तरफ खलबली मचा देंगे।  तब हमने अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना की और दुश्‍मनों से बचने के लिए दिन-रात पहरा बिठा दिया। 10  अब यहूदा के लोग कहने लगे, “शहरपनाह का काम करनेवाले* पस्त हो चुके हैं और अभी-भी बहुत सारा मलबा हटाना बाकी है। इन लोगों के बिना हम शहरपनाह का काम कभी पूरा नहीं कर पाएँगे।” 11  हमारे दुश्‍मन आपस में कह रहे थे, “इससे पहले कि वे हमें आते देख लें या समझ जाएँ कि हम क्या करनेवाले हैं, आओ हम उनके बीच घुसकर उन्हें मार डालें और उनका काम रोक दें।” 12  उनके आस-पास रहनेवाले यहूदी जब भी मरम्मत करने यरूशलेम आते, तो हमसे बार-बार* कहते, “दुश्‍मन चारों तरफ से हम पर हमला कर देंगे।” 13  इसलिए मैंने खुली जगहों पर और जहाँ शहरपनाह की दीवारें नीची थीं, वहाँ आदमी तैनात कर दिए। मैंने उनके परिवार के हिसाब से उन्हें खड़ा किया और उनके हाथ में तलवारें, बरछियाँ और तीर-कमान दिए। 14  जब मैंने देखा कि लोग डर रहे हैं, तो मैंने फौरन वहाँ के बड़े-बड़े लोगों, अधिकारियों* और बाकी लोगों से कहा,+ “दुश्‍मनों से मत डरो।+ अपने महान और विस्मयकारी परमेश्‍वर यहोवा+ को याद रखो और अपने भाइयों, बेटे-बेटियों, पत्नियों और अपने घरों के लिए लड़ो।” 15  उधर दुश्‍मनों ने सुना कि हमें उनकी साज़िश का पता चल गया है और उन्होंने जान लिया कि सच्चे परमेश्‍वर ने उनकी चाल नाकाम कर दी है। इधर हम फिर से शहरपनाह बनाने में लग गए। 16  मगर उस दिन से मेरे आधे आदमी मरम्मत का काम करने लगे+ और आधे आदमी बख्तर पहने और बरछी, ढाल और तीर-कमान लिए पहरा देने लगे। और हाकिम+ मदद करने के लिए यहूदा के उन लोगों के पीछे खड़े रहे 17  जो शहरपनाह की मरम्मत कर रहे थे। बोझ ढोनेवाले एक हाथ से काम कर रहे थे और दूसरे हाथ में हथियार* पकड़े हुए थे। 18  शहरपनाह बनानेवाला हर आदमी कमर में तलवार बाँधे काम कर रहा था। और नरसिंगा फूँकनेवाला+ आदमी मेरे साथ खड़ा था। 19  तब मैंने बड़े-बड़े लोगों, अधिकारियों* और बाकी लोगों से कहा, “अब भी बहुत काम बाकी है। हम शहरपनाह के अलग-अलग हिस्सों पर काम कर रहे हैं और इस वजह से एक-दूसरे से काफी दूर हैं। 20  इसलिए जब तुम नरसिंगे की आवाज़ सुनो, तो हमारे पास आकर इकट्ठा हो जाना। हमारी तरफ से हमारा परमेश्‍वर लड़ेगा।”+ 21  हम हर दिन पौ फटने से लेकर रात को तारे निकलने तक काम करते रहे। हममें से आधे लोग शहरपनाह बना रहे थे और आधे लोग बरछी पकड़े पहरा दे रहे थे। 22  तब मैंने लोगों से कहा, “हर आदमी अपने सेवक के साथ यरूशलेम में ही रात गुज़ारे। वे रात-भर पहरा देंगे और दिन में काम करेंगे।” 23  इसलिए मैं, मेरे भाई, मेरे सेवक+ और मेरे साथ रहनेवाले पहरेदार दिन-रात अपने कपड़े पहने रहे। हममें से हरेक अपने दाएँ हाथ में हथियार लिए तैयार रहता था।

कई फुटनोट

या “बोझ ढोनेवाले।”
शा., “दस बार।”
या “मातहत अधिकारियों।”
या “भाला।”
या “मातहत अधिकारियों।”