निर्गमन 16:1-36

  • लोग खाने के बारे में कुड़कुड़ाए (1-3)

  • यहोवा ने उनका कुड़कुड़ाना सुना (4-12)

  • बटेर और मन्‍ना दिया गया (13-21)

  • सब्त के दिन मन्‍ना नहीं मिलता (22-30)

  • मन्‍ना यादगार के तौर पर रखा गया (31-36)

16  इसराएलियों की पूरी मंडली एलीम से निकलने के बाद चलते-चलते सीन वीराने में पहुँची,+ जो एलीम और सीनै के बीच है। मिस्र छोड़ने के दूसरे महीने के 15वें दिन वे इस जगह पहुँचे।  वहाँ वीराने में इसराएलियों की पूरी मंडली मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगी।+  वे बार-बार उनसे कहते रहे, “तुम हमें वीराने में इसलिए लाए हो कि हमारी पूरी मंडली भूखी मर जाए।+ इससे तो अच्छा था कि हम यहोवा के हाथों मिस्र में ही मारे जाते, जहाँ हमें भरपेट रोटी मिलती थी और हम गोश्‍त की हाँडियों के पास बैठकर खाया करते थे।”+  तब यहोवा ने मूसा से कहा, “देख, मैं आकाश से तुम लोगों के लिए खाना बरसाऊँगा।+ तुममें से हरेक जन रोज़ बाहर जाए और दिन-भर की ज़रूरत के हिसाब से खाना इकट्ठा करे।+ इस इंतज़ाम से मैं लोगों को परखूँगा कि वे मेरे कानून पर चलेंगे या नहीं।+  छठे दिन+ उन्हें बाकी दिनों से दुगना खाना इकट्ठा करना है और उसे पहले से तैयार करके रखना है।”+  तब मूसा और हारून ने सभी इसराएलियों से कहा, “आज की शाम तुम सब बेशक जान जाओगे कि वह यहोवा ही है जो तुम्हें मिस्र से बाहर निकाल लाया है।+  कल सुबह तुम यहोवा की महिमा देखोगे क्योंकि तुमने यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाते हुए जो-जो कहा, वह सब उसने सुना है। हम कौन हैं जो तुम हमारे खिलाफ कुड़कुड़ाते हो?”  मूसा ने यह भी कहा, “आज शाम यहोवा तुम्हें खाने को गोश्‍त देगा और कल सुबह रोटी देगा ताकि तुम जी-भरकर खा सको। तब तुम जान लोगे कि तुमने यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाते हुए जो भी कहा वह उसने सुना है। मगर हम कौन हैं जो तुम हमारे खिलाफ कुड़कुड़ाते हो? तुम असल में हमारे खिलाफ नहीं, यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ा रहे हो।”+  इसके बाद मूसा ने हारून से कहा, “इसराएलियों की पूरी मंडली से कहना, ‘तुम सब यहोवा के पास आओ क्योंकि उसने तुम्हारा कुड़कुड़ाना सुना है।’”+ 10  फिर हारून ने जाकर इसराएलियों की पूरी मंडली से वह बात कही। तब उन सबने फौरन मुड़कर वीराने की तरफ मुँह किया और देखा कि यहोवा की महिमा का तेज बादल में प्रकट हुआ है!+ 11  यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 12  “मैंने इसराएलियों का कुड़कुड़ाना सुना है।+ उनसे कह, ‘आज शाम झुटपुटे के समय* तुम्हें खाने को गोश्‍त मिलेगा और कल सुबह तुम भरपेट रोटी खाओगे।+ तब तुम बेशक जान जाओगे कि मैं तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा हूँ।’”+ 13  फिर उस शाम बटेरों का एक बड़ा झुंड उड़ता हुआ आया और पूरी छावनी को ढक लिया।+ और सुबह हुई तो छावनी के चारों तरफ ज़मीन पर ओस पड़ी हुई थी। 14  फिर ओस सूख गयी और वीराने की ज़मीन पर पपड़ीदार चीज़ रह गयी+ जो पाले की तरह महीन थी। 15  जब इसराएलियों ने उसे देखा तो वे एक-दूसरे से कहने लगे, “यह क्या है?” क्योंकि वे नहीं जानते थे कि वह क्या था। मूसा ने उन्हें बताया, “यह तुम्हारे लिए खाना है, यहोवा ने दिया है।+ 16  यहोवा की यह आज्ञा है: ‘तुममें से हर कोई उतना खाना उठाए जितना वह खा सकता है। तुम्हारे तंबू में जितने लोग हैं उनमें से हरेक के लिए एक ओमेर*+ के हिसाब से तुम खाना लेना।’” 17  इसराएलियों ने ऐसा ही किया। वे जाकर खाना इकट्ठा करने लगे, किसी ने कम तो किसी ने ज़्यादा उठाया। 18  फिर उन्होंने उसे ओमेर से नापा। जिस किसी ने ज़्यादा उठाया था उसके पास ज़रूरत से ज़्यादा नहीं रहा और जिस किसी ने कम उठाया था उसके लिए कम नहीं पड़ा।+ हर किसी को उतना ही मिला था जितना वह खा सकता था। 19  फिर मूसा ने लोगों से कहा, “तुममें से कोई भी यह खाना अगली सुबह तक बचाकर न रखे।”+ 20  मगर उन्होंने मूसा की बात नहीं मानी। कुछ लोगों ने थोड़ा खाना सुबह के लिए बचाकर रखा, लेकिन उसमें कीड़े पड़ गए और बदबू आने लगी। तब मूसा उन पर भड़क उठा। 21  रोज़ सुबह हर कोई उतना खाना इकट्ठा करता था जितना वह खा सकता था। जब धूप तेज़ हो जाती तो ज़मीन पर बचा खाना पिघल जाता था। 22  छठे दिन लोगों ने दुगना खाना इकट्ठा किया,+ यानी हरेक के लिए दो ओमेर के हिसाब से। फिर इसराएलियों के सभी प्रधान मूसा के पास गए और उन्होंने उसे यह बात बतायी। 23  मूसा ने उनसे कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘कल का दिन पूरे विश्राम का दिन होगा,* यहोवा को समर्पित पवित्र सब्त का दिन।+ इसलिए तुम्हें जो भी खाना सेंकना हो या उबालना हो, आज ही कर लो+ और बचा हुआ खाना कल सुबह के लिए रख लो।’” 24  तब लोगों ने सुबह के लिए खाना बचाकर रखा, ठीक जैसे मूसा ने आज्ञा दी थी। अगले दिन उन्होंने देखा कि खाने में न तो कीड़े पड़े थे, न ही उससे बदबू आयी। 25  तब मूसा ने लोगों से कहा, “तुम्हारे पास जो खाना है, उसे तुम आज खा लेना। आज तुम्हें ज़मीन पर कोई खाना नहीं मिलेगा। क्योंकि आज का दिन यहोवा के लिए सब्त है। 26  तुम छ: दिन खाना इकट्ठा करोगे, मगर सातवें दिन ज़मीन पर कोई खाना नहीं मिलेगा क्योंकि वह सब्त का दिन होगा।”+ 27  फिर भी कुछ लोग सातवें दिन खाना इकट्ठा करने बाहर गए, मगर उन्हें कुछ नहीं मिला। 28  तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम लोग कब तक मेरी आज्ञाओं और मेरे कायदे-कानूनों को मानने से इनकार करते रहोगे?+ 29  इस बात का ध्यान रखो कि यहोवा ने तुम्हारे लिए सब्त का दिन ठहराया है।+ इसीलिए छठे दिन वह तुम्हें दो दिन का खाना दे रहा है। सातवें दिन हर कोई अपने इलाके में ही रहे, कोई बाहर न जाए।” 30  और सातवें दिन लोगों ने सब्त मनाया।*+ 31  इसराएलियों ने उस खाने का नाम “मन्‍ना”* रखा। वह दिखने में धनिए के बीज जैसा सफेद था और उसका स्वाद शहद से बने पुए जैसा था।+ 32  मूसा ने कहा, “यहोवा की यह आज्ञा है: ‘एक ओमेर-भर खाना अलग रखना ताकि यह पीढ़ी-पीढ़ी तक रहे और तुम्हारे वंशज देख सकें+ कि मैंने तुम्हें मिस्र से छुड़ा लाने के बाद वीराने में कैसा खाना दिया था।’” 33  तब मूसा ने हारून से कहा, “तू एक मर्तबान ले और उसमें ओमेर-भर मन्‍ना डाल और उसे यहोवा के सामने रख ताकि वह पीढ़ी-पीढ़ी तक रहे।”+ 34  हारून ने ठीक वैसा ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। उसने एक मर्तबान में मन्‍ना भरकर उसे एक खास संदूक*+ के सामने रखा ताकि वह सही-सलामत रहे। 35  इसराएलियों ने जब तक उस देश में कदम नहीं रखा+ जहाँ दूसरे लोग रहते थे, तब तक उन्होंने मन्‍ना ही खाया।+ कनान की सरहद पर पहुँचने तक 40 साल उन्होंने मन्‍ना खाया।+ 36  एक ओमेर, एपा* का दसवाँ भाग है।

कई फुटनोट

शा., “दो शामों के बीच।”
करीब 2.2 ली. अति. ख14 देखें।
या “सब्त मनाया जाएगा।”
या “विश्राम किया।”
मुमकिन है कि यह शब्द इन इब्रानी शब्दों से निकला था, “यह क्या है?”
शा., “गवाही।” ज़ाहिर है कि यह एक संदूक था जिसमें ज़रूरी दस्तावेज़ सँभालकर रखे जाते थे।
एक एपा 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।