निर्गमन 4:1-31

  • मूसा को 3 चमत्कार करने के लिए कहा गया (1-9)

  • मूसा ने नाकाबिल महसूस किया (10-17)

  • मूसा मिस्र लौटा (18-26)

  • मूसा, हारून से दोबारा मिला (27-31)

4  तब मूसा ने कहा, “लेकिन अगर वे मेरा यकीन न करें और यह कहकर मेरी बात मानने से इनकार कर दें+ कि यहोवा तेरे सामने प्रकट नहीं हुआ, तो मैं क्या करूँ?”  यहोवा ने उससे कहा, “वह तेरे हाथ में क्या है?” उसने कहा, “छड़ी है।”  परमेश्‍वर ने कहा, “उसे नीचे ज़मीन पर फेंक।” मूसा ने छड़ी ज़मीन पर फेंकी और वह साँप बन गयी।+ तब मूसा वहाँ से दूर भागा।  फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ बढ़ाकर उसे पूँछ से पकड़।” मूसा ने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लिया और वह उसके हाथ में फिर से छड़ी बन गया।  तब परमेश्‍वर ने कहा, “तू लोगों के सामने ऐसा ही करना ताकि वे यकीन करें कि यहोवा वाकई तेरे सामने प्रकट हुआ,+ जो उनके पुरखों का परमेश्‍वर है, अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्‍वर है।”+  यहोवा ने उससे यह भी कहा, “अब ज़रा अपना हाथ अपने बागे की ऊपरी तह के अंदर रख।” मूसा ने अपना हाथ बागे की ऊपरी तह के अंदर रखा। जब उसने हाथ बाहर निकाला, तो यह देखकर चौंक गया कि उसका हाथ कोढ़ से भर गया है और बर्फ जैसा सफेद हो गया है!+  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “अब अपना हाथ वापस बागे की ऊपरी तह के अंदर रख।” मूसा ने ऐसा ही किया। जब उसने बागे में से अपना हाथ बाहर निकाला, तो देखा कि उसका हाथ पहले की तरह अच्छा हो गया है!  तब परमेश्‍वर ने कहा, “अगर वे तेरा यकीन न करें और पहले चमत्कार पर ध्यान न दें तो वे दूसरा चमत्कार देखकर ज़रूर यकीन करेंगे।+  और अगर ये दोनों चमत्कार देखकर भी वे यकीन न करें और तेरी बात मानने से इनकार कर दें, तो तू नील नदी में से थोड़ा पानी लेना और सूखी ज़मीन पर उँडेलना। तब वह पानी जिसे तू ज़मीन पर उँडेलेगा खून में बदल जाएगा।”+ 10  मूसा ने यहोवा से कहा, “माफ करना यहोवा, मैं बोलने में निपुण नहीं हूँ, मैं साफ-साफ बोल नहीं पाता। न तो मैं पहले कभी बोलने में कुशल था और न ही जब से तूने मुझसे बात की तब से कुशल बना हूँ।”+ 11  यहोवा ने उससे कहा, “अच्छा, तू यह बता कि इंसान को बोलने के लिए मुँह किसने दिया, देखने के लिए आँखें किसने दीं और वह कौन है जो उसे गूँगा, बहरा या अंधा बनाता है?* क्या वह मैं यहोवा नहीं? 12  इसलिए अब तू जा और मेरे लोगों से बात कर, मैं तेरी मदद करूँगा* और तुझे सिखाता रहूँगा कि तुझे क्या कहना है।”+ 13  मगर फिर भी मूसा ने कहा, “माफ करना यहोवा, तू इस काम के लिए किसी और को चुनकर भेज।” 14  तब यहोवा का गुस्सा मूसा पर भड़क उठा। फिर उसने कहा, “देख, लेवी गोत्र का हारून जो तेरा भाई है,+ वह तुझसे मिलने आ रहा है। जब वह तुझसे मिलेगा तो खुशी से फूला नहीं समाएगा।+ मैं जानता हूँ कि वह अच्छी तरह बात कर सकता है। 15  इसलिए मैंने तुझसे जो-जो बातें कही हैं, वे सब उसे बताना।+ जब तू बात करेगा, तो मैं तुम दोनों के साथ रहूँगा+ और तुम्हें सिखाऊँगा कि तुम्हें क्या-क्या करना है। 16  हारून तेरी तरफ से लोगों से बात करेगा, वह तेरी ज़बान बन जाएगा और तू उसके लिए परमेश्‍वर जैसा होगा।*+ 17  और तेरे हाथ में जो छड़ी है, उसे तू अपने साथ ले जाएगा और उससे चमत्कार करेगा।”+ 18  फिर मूसा अपने ससुर यित्रो+ के पास गया और उससे कहा, “मैं मिस्र जाने की इजाज़त चाहता हूँ ताकि जाकर देखूँ कि मेरे भाई खैरियत से हैं या नहीं।” यित्रो ने मूसा से कहा, “ठीक है, कुशल से जा।” 19  इसके बाद यहोवा ने मूसा से, जो मिद्यान में था, कहा, “तू अब मिस्र लौट जा क्योंकि जितने आदमी तेरी जान के पीछे पड़े थे, वे सब मर चुके हैं।”+ 20  तब मूसा ने अपनी पत्नी और अपने बेटों को एक गधे पर बिठाया और मिस्र लौटने के लिए निकल पड़ा। मूसा ने अपने हाथ में सच्चे परमेश्‍वर की छड़ी भी ली। 21  फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैंने तुझे जितने भी चमत्कार करने की शक्‍ति दी है, तू मिस्र लौटने पर फिरौन के सामने वे सारे चमत्कार ज़रूर करना।+ फिर भी फिरौन मेरे लोगों को जाने नहीं देगा,+ क्योंकि मैं उसके दिल को कठोर होने दूँगा।+ 22  तू फिरौन से कहना, ‘यहोवा कहता है, “इसराएल मेरा बेटा है, मेरा पहलौठा।+ 23  मैं तुझसे कहता हूँ, मेरे बेटे को जाने दे ताकि वह मेरी सेवा करे। अगर तूने उसे भेजने से इनकार कर दिया तो मैं तेरे बेटे को, तेरे पहलौठे को मार डालूँगा।”’”+ 24  फिर हुआ यह कि रास्ते में एक मुसाफिरखाने पर यहोवा+ उससे मिला और उसे मार डालने की कोशिश करने लगा।+ 25  तब सिप्पोरा+ ने एक तेज़ चकमक पत्थर लिया* और अपने बेटे का खतना किया और फिर उसकी खलड़ी से उसका पैर छुआ और कहा, “यह इसलिए है क्योंकि तू मेरे लिए खून का दूल्हा है।” 26  इसलिए परमेश्‍वर ने उसे जाने दिया। उस वक्‍त सिप्पोरा ने खतने की वजह से “खून का दूल्हा” कहा। 27  फिर यहोवा ने हारून से कहा, “तू वीराने में जा और मूसा से मिल।”+ हारून गया और सच्चे परमेश्‍वर के पहाड़+ के पास मूसा से मिला। उससे मिलने पर हारून ने उसे चूमा। 28  फिर मूसा ने हारून को बताया कि यहोवा ने उसे क्या-क्या बताकर भेजा है+ और क्या-क्या चमत्कार करने की आज्ञा दी है।+ 29  इसके बाद मूसा और हारून ने जाकर इसराएलियों के सभी मुखियाओं को इकट्ठा किया।+ 30  हारून ने उन्हें वे सारी बातें बतायीं जो यहोवा ने मूसा से कही थीं और मूसा ने लोगों के सामने चमत्कार किए।+ 31  यह देखकर लोगों ने मूसा का यकीन किया।+ और जब उन्होंने सुना कि यहोवा ने इसराएलियों की हालत पर ध्यान दिया है+ और उनकी दुख-तकलीफों पर गौर किया है,+ तो उन्होंने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया।

कई फुटनोट

या “होने देता है?”
शा., “तेरे मुँह के साथ रहूँगा।”
या “तू उसके लिए परमेश्‍वर का भेजा हुआ ठहरेगा।”
या “चकमक की छुरी ली।”