नीतिवचन 11:1-31

  • मर्यादा में रहनेवाला बुद्धिमान है (2)

  • भक्‍तिहीन दूसरों को तबाह करता है (9)

  • “बहुतों की सलाह से कामयाबी” (14)

  • दरियादिल फलता-फूलता है (25)

  • दौलत पर भरोसा रखनेवाला मिटेगा (28)

11  बेईमानी के तराज़ू से यहोवा घिन करता है,लेकिन वह सही* बाट-पत्थर से खुश होता है।+   जो गुस्ताखी करता है* उसे अपमान सहना पड़ता है,+लेकिन जो अपनी मर्यादा में रहता है वह बुद्धिमान है।+   सीधे-सच्चे इंसान का निर्दोष चालचलन उसे राह दिखाएगा,+मगर छल-कपट करनेवाले का कपट खुद उसका नाश कर देगा।+   क्रोध के दिन धन-दौलत किसी काम नहीं आएगी,+सिर्फ नेकी एक इंसान को मौत से बचाएगी।+   निर्दोष इंसान की नेकी उसकी राह को सीधा करती है,मगर दुष्ट की दुष्टता उसका नाश कर देती है।+   सीधे-सच्चे इंसान की नेकी उसे बचाएगी,+मगर धोखा देनेवाले की लालसा उसके लिए फंदा बन जाएगी।+   जब दुष्ट मरता है, तो उसकी आशाएँ मिट जाती हैं,अपनी ताकत पर उसे जो भरोसा था, वह भी टूट जाता है।+   नेक जन को मुसीबत से छुड़ाया जाता है,उसकी जगह दुष्ट मुसीबत में पड़ जाता है।+   भक्‍तिहीन* अपनी बातों से अपने पड़ोसी को तबाह कर देता है,लेकिन नेक इंसान ज्ञान की वजह से बच जाते हैं।+ 10  नेक जन की अच्छाई से पूरा शहर मगन होता हैऔर जब दुष्ट मरता है, तो खुशियों की गूँज सुनायी देती है।+ 11  सीधे-सच्चे इंसान की दुआएँ शहर को ऊँचा उठाती हैं,+लेकिन दुष्ट की बातें शहर को ढा देती हैं।+ 12  जिसमें समझ नहीं होती वह अपने पड़ोसी को नीचा दिखाता है,लेकिन जिसमें पैनी समझ होती है वह चुप रहता है।+ 13  दूसरों को बदनाम करनेवाला उनका राज़ बताता फिरता है,+लेकिन भरोसेमंद इंसान राज़ को राज़ ही रखता है।* 14  अगर सही मार्गदर्शन* न हो तो लोग दुख उठाते हैं,लेकिन बहुतों की सलाह से कामयाबी* मिलती है।+ 15  जो अजनबी का कर्ज़ चुकाने का ज़िम्मा लेता है,* वह मुसीबत में पड़ता है,+मगर जो हाथ मिलाकर वादा करने से दूर रहता है,* वह बच जाता है। 16  मन को भानेवाली औरत सम्मान पाती है,+लेकिन ज़ालिम आदमी धन-दौलत लूटते हैं। 17  कृपा* करनेवाला अपना ही भला करता है,+लेकिन बेरहम इंसान खुद पर आफत* लाता है।+ 18  दुष्ट की कमाई खोखली निकलती है,+मगर नेकी बोनेवाले को सच्चा फल मिलता है।+ 19  जो नेकी की राह पर बना रहता है उसे जीवन मिलेगा,+मगर जो बुराई के पीछे भागता है उसे मौत मिलेगी। 20  टेढ़े मनवालों से यहोवा घिन करता है,+मगर सीधी चाल चलनेवालों से वह खुश होता है।+ 21  यकीन रख, दुष्ट सज़ा से नहीं बचेगा,+मगर नेक जन की संतान बच निकलेगी। 22  जो औरत सुंदर है मगर समझ से काम नहीं लेती,वह ऐसी है जैसे सूअर की नाक में सोने की नथ। 23  नेक इंसान की चाहत का उसे अच्छा फल मिलता है,+मगर दुष्ट की आशा परमेश्‍वर का क्रोध भड़काती है। 24  जो दिल खोलकर देता* है, उसके पास और ज़्यादा आ जाता है+और जो उतना भी नहीं देता जितना उसे देना चाहिए, वह कंगाल हो जाता है।+ 25  दरियादिल इंसान फलता-फूलता है,+जो दूसरों को ताज़गी पहुँचाता है* उसे खुद ताज़गी मिलती है।+ 26  अनाज के जमाखोरों को लोग कोसते हैं,मगर इसे बेचनेवालों को दुआएँ देते हैं। 27  जो भलाई करने की ताक में रहता है वह मंज़ूरी पाना चाहता है,+लेकिन जो बुराई करने की ताक में रहता है, बुराई उसी पर आ पड़ती है।+ 28  अपनी दौलत पर भरोसा रखनेवाला मिट जाता है,+मगर नेक जन हरे-हरे पत्तों की तरह लहलहाता है।+ 29  जो अपने परिवार पर आफत* लाता है, उसके हाथ कुछ नहीं* लगेगा+और मूर्ख, बुद्धिमान का नौकर बनकर उसकी सेवा करेगा। 30  नेक इंसान का फल जीवन का पेड़ है+और दूसरों को सही काम के लिए कायल करनेवाला, बुद्धिमान है।+ 31  अगर नेक जन को धरती पर अपने कामों का फल मिलेगा,तो दुष्ट और पापियों को और भी बढ़कर अपने कामों का फल मिलेगा।+

कई फुटनोट

शा., “पूरे।”
या “अपनी हद भूल जाता है।”
या “परमेश्‍वर से बगावत करनेवाला।”
शा., “बात को छिपाए रखता है।”
या “बुद्धि-भरी सलाह।”
या “उद्धार।”
शा., “से नफरत करता है।”
या “का ज़ामिन बनता है।”
या “अटल प्यार।”
या “अपमान।”
शा., “जो छितराता।”
शा., “को खूब सींचता है।”
या “अपमान।”
शा., “हवा।”