नीतिवचन 7:1-27

  • परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मान और जीवित रह (1-5)

  • नादान जवान का बहकना (6-27)

    • “जैसे बैल हलाल होने जा रहा हो” (22)

7  हे मेरे बेटे, मेरी बातों को मान,मेरी आज्ञाओं को अनमोल जानकर संजोए रख।+   मेरी आज्ञाओं पर चल और जीवित रह,+मेरी सिखायी बातों को आँख की पुतली की तरह सँभाल।   इन्हें अपनी उँगलियों में बाँध ले,अपने दिल की पटिया पर लिख ले।+   बुद्धि से कह, “तू मेरी बहन है,” समझ से कह, “तू मेरी सगी है”   ताकि नीच* औरत से तेरी हिफाज़त हो,+बदचलन* औरत और उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों से तू बचा रहे।+   एक बार मैं अपने घर की खिड़की पर खड़ा,जालीदार झरोखे से नीचे देख रहा था।   तब मैंने कई नादानों को देखा,उस भीड़ में मेरी नज़र एक जवान पर पड़ी,जिसमें बिलकुल समझ नहीं थी।+   वह उस सड़क पर चला जा रहा था,जिसके मोड़ पर वह औरत रहती थी,वह तेज़ कदमों से उसके घर की तरफ बढ़ने लगा।   यह कुछ शाम का वक्‍त था, दिन ढल चुका था,+अँधेरा घिरने लगा था और रात होने को थी। 10  तभी मैंने देखा, एक औरत उस नौजवान से मिली,वह वेश्‍या जैसे* कपड़े पहने थी,+ उसके दिल में कपट भरा था। 11  उसमें कोई शर्म-हया नहीं थी,वह अपने मन की करती थी।+ उसके पैर घर पर नहीं टिकते थे, 12  कभी घर के बाहर तो कभी चौक पर नज़र आती,हर नुक्कड़ पर शिकार की तलाश में रहती।+ 13  उसने उस जवान को पकड़कर चूमाऔर बेहयाई से कहने लगी, 14  “मैंने शांति-बलि चढ़ायी है,+ आज अपनी मन्‍नत पूरी की है, 15  इसलिए मैं तुझसे मिलने आयी हूँ,मैं तुझे ही ढूँढ़ रही थी और तू मुझे मिल गया। 16  मैंने अपना बिस्तर मलमल की चादर से,मिस्र की रंग-बिरंगी चादर से सजाया है,+ 17  उस पर गंधरस, अगर और दालचीनी छिड़की है।+ 18  आ! हम एक-दूसरे के प्यार में खो जाएँ,सुबह तक प्यार का जाम पीते रहें। 19  मेरा पति भी घर पर नहीं है,वह लंबे सफर पर गया है 20  और अपने साथ पैसों की थैली ले गया है,पूरे चाँद के निकलने तक वह नहीं लौटेगा।” 21  वह अपनी लच्छेदार बातों में उसे फँसा लेती है,+ मीठी-मीठी बातों से उसे फुसला लेती है। 22  फिर क्या, वह नौजवान फौरन उसके पीछे चल देता है,जैसे बैल हलाल होने जा रहा हो,जैसे मूर्ख अपने पैर काठ* में कसवाने जा रहा हो।+ 23  अंत में एक तीर उसके कलेजे को भेद देगा,उसका हाल उस पक्षी जैसा होगा,जो तेज़ी से जाल की तरफ उड़ता हैऔर नहीं जानता कि अपनी जान गँवा बैठेगा।+ 24  इसलिए मेरे बेटो, मेरी सुनो,मैं जो कह रहा हूँ, उस पर ध्यान दो। 25  तेरा दिल तुझे उस औरत के पीछे जाने के लिए बहका न दे, तू भटककर उसकी राहों पर मत जाना।+ 26  उसने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है,+उसके हाथों बेहिसाब लोग मारे गए।+ 27  उसका घर कब्र में ले जाता है,मौत की काल-कोठरी में पहुँचाता है।

कई फुटनोट

शा., “परायी।”
शा., “परदेसी।”
या “वेश्‍या के।”
या “बेड़ियों।”