न्यायियों 17:1-13

  • मीका की मूरतें और उसका याजक (1-13)

17  एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ में मीका नाम का एक आदमी रहता था।  उसने अपनी माँ से कहा, “तुझे याद है, तेरे चाँदी के 1,100 टुकड़े चोरी हो गए थे और तू उस चुरानेवाले को मेरे सामने कोस रही थी। वह चाँदी मैंने ली थी।” इस पर उसकी माँ ने कहा, “यहोवा तुझे आशीष दे मेरे बेटे!”  तब उसने चाँदी के 1,100 टुकड़े अपनी माँ को लौटा दिए। उसकी माँ ने कहा, “यह चाँदी मैं यहोवा के लिए अलग ठहराती हूँ। मैं चाहती हूँ कि तू इससे अपने लिए एक तराशी हुई और एक ढली हुई मूरत बनाए।+ और यह चाँदी तेरी हो जाएगी।”  चाँदी मिलने पर, मीका की माँ ने उसमें से 200 टुकड़े सुनार को दिए। उसने उससे एक तराशी हुई और एक ढली हुई मूरत बना दी। फिर उन मूरतों को मीका के घर में स्थापित किया गया।  मीका के यहाँ देवताओं के लिए एक मंदिर था। उसने कुल देवताओं की मूरतें+ और एक एपोद बनवाया+ और अपने एक बेटे को याजक ठहराया।*+  उन दिनों इसराएल राष्ट्र में कोई राजा नहीं था।+ हर कोई वही कर रहा था जो उसकी नज़र में सही था।+  यहूदा के बेतलेहेम शहर+ में एक जवान आदमी, कुछ समय से यहूदा के लोगों के साथ रह रहा था। वह एक लेवी था।+  एक दिन उसने बेतलेहेम छोड़ दिया और रहने के लिए दूसरी जगह ढूँढ़ने लगा। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में मीका के घर आया।+  मीका ने उससे पूछा, “तू कहाँ से आया है?” उसने कहा, “मैं यहूदा के बेतलेहेम से आया हूँ। मैं एक लेवी हूँ और रहने के लिए एक जगह ढूँढ़ रहा हूँ।” 10  तब मीका ने उससे कहा, “तू यहीं मेरे साथ रह और मेरा सलाहकार* और याजक बन जा। मैं तुझे खाना, एक जोड़ी कपड़े और हर साल चाँदी के दस टुकड़े दिया करूँगा।” यह सुनकर लेवी घर के अंदर आया। 11  वह मीका के साथ रहने को तैयार हो गया और मीका उसे अपना बेटा मानने लगा। 12  मीका ने उस लेवी को अपना याजक ठहराया*+ और वह मीका के घर रहने लगा। 13  मीका ने कहा, “अब यहोवा ज़रूर मेरा भला करेगा क्योंकि एक लेवी मेरा याजक बना है।”

कई फुटनोट

शा., “का हाथ भर दिया।”
शा., “पिता।”
शा., “का हाथ भर दिया।”