न्यायियों 9:1-57

  • अबीमेलेक शेकेम का राजा बना (1-6)

  • योताम की बतायी मिसाल (7-21)

  • अबीमेलेक की तानाशाही (22-33)

  • उसने शेकेम पर हमला किया (34-49)

  • एक औरत ने उसे घायल किया; उसकी मौत (50-57)

9  फिर ऐसा हुआ कि यरुब्बाल का बेटा अबीमेलेक,+ शेकेम में अपने मामाओं के पास आया। उसने उनसे और अपने नाना के घराने के सब लोगों से कहा,  “शेकेम के अगुवों* के पास जाकर पूछो कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, यरुब्बाल के सभी 70 बेटे+ तुम पर राज करें या सिर्फ एक आदमी? उन्हें यह भी याद दिलाना कि मैं कोई पराया नहीं, उनका अपना खून हूँ।”*  तब उसके मामाओं ने शेकेम के अगुवों को वे सारी बातें बतायीं जो अबीमेलेक ने उनसे कही थीं। शेकेम के अगुवे अबीमेलेक का साथ देने के लिए कायल हो गए* क्योंकि उनका कहना था, “आखिर वह हमारा भाई है।”  फिर उन्होंने बाल-बरीत के मंदिर+ से उसे चाँदी के 70 टुकड़े दिए। अबीमेलेक ने उस रकम से कुछ निठल्ले बदमाश रख लिए।  वह उनके साथ अपने पिता के घर ओप्रा गया+ और उसने अपने भाइयों यानी यरुब्बाल के 70 बेटों को एक ही पत्थर पर मार डाला।+ मगर यरुब्बाल का सबसे छोटा बेटा योताम छिप गया और ज़िंदा बच गया।  फिर शेकेम के सभी अगुवों और बेत-मिल्लो के लोगों ने अबीमेलेक को राजा बनाया।+ वे शेकेम में बड़े पेड़ के पास, खंभे के पास इकट्ठा हुए थे।  जब इस बात की खबर योताम को मिली तो वह तुरंत गरिज्जीम पहाड़+ पर चढ़ा और ज़ोरदार आवाज़ में कहने लगा, “हे शेकेम के अगुवो, मेरी बात सुनो तब परमेश्‍वर भी तुम्हारी सुनेगा।  एक बार पेड़ों ने सोचा कि वे अपने लिए एक राजा चुनें। उन्होंने जैतून के पेड़ से कहा, ‘हम पर राज कर।’+  लेकिन जैतून के पेड़ ने कहा, ‘मेरा काम तो तेल पैदा करना है जिससे परमेश्‍वर और इंसानों का आदर-सम्मान किया जाता है। भला अपना काम छोड़कर मैं दूसरे पेड़ों पर राज क्यों करूँ?’* 10  इसके बाद पेड़ों ने अंजीर के पेड़ से कहा, ‘आ, हम पर राज कर।’ 11  लेकिन अंजीर के पेड़ ने कहा, ‘मैं अपने मीठे-मीठे फलों और अपनी अच्छी पैदावार को छोड़कर तुम पर राज क्यों करूँ?’* 12  इसके बाद पेड़ों ने अंगूर की बेल से कहा, ‘आ, हम पर राज कर।’ 13  अंगूर की बेल ने कहा, ‘मुझसे नयी दाख-मदिरा बनती है जिससे परमेश्‍वर और इंसान खुश होते हैं। भला यह काम छोड़कर मैं तुम पर राज क्यों करूँ?’* 14  आखिरकार सब पेड़ों ने कँटीली झाड़ी से कहा, ‘आ, हम पर राज कर।’+ 15  तब कँटीली झाड़ी ने उन पेड़ों से कहा, ‘अगर तुम वाकई मेरा अभिषेक करके मुझे अपना राजा बनाना चाहते हो, तो मेरी छाँव में शरण लो। लेकिन अगर तुम मुझे राजा नहीं बनाओगे, तो मुझसे ऐसी आग निकलेगी जो लबानोन के देवदारों को भस्म कर देगी।’ 16  अब बताओ, क्या तुमने सच्चे मन से अबीमेलेक को राजा बनाया है?+ क्या तुमने ऐसा करके सही किया? क्या तुमने यरुब्बाल और उसके घराने के साथ भलाई की और उसके साथ जैसा व्यवहार किया क्या वह सही था? 17  मेरे पिता ने अपनी जान पर खेलकर तुम्हें मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाया।+ 18  लेकिन बदले में तुम लोगों ने क्या किया? तुम मेरे पिता के घराने के खिलाफ उठ खड़े हुए और उसके 70 बेटों को एक ही पत्थर पर मार डाला।+ फिर तुमने उसकी दासी के बेटे अबीमेलेक+ को शेकेम के अगुवों पर राजा ठहराया, बस इसलिए कि वह तुम्हारा भाई है। 19  अगर तुमने यरुब्बाल और उसके घराने के साथ जो किया, वह सच्चे मन से किया है और अगर वह सही है, तो तुम अबीमेलेक से खुश रहोगे और वह भी तुमसे खुश रहेगा। 20  लेकिन अगर तुमने बुरे इरादे से ऐसा किया है, तो वह शेकेम और बेत-मिल्लो+ के अगुवों को आग से भस्म कर देगा और शेकेम और बेत-मिल्लो के अगुवे भी अबीमेलेक को आग से भस्म कर देंगे।”+ 21  फिर योताम+ वहाँ से भागकर बेर नाम की जगह चला गया और अपने भाई अबीमेलेक के डर से वहीं रहने लगा। 22  अबीमेलेक ने तीन साल तक इसराएल पर मनमाना राज किया। 23  फिर परमेश्‍वर ने उसके और शेकेम के अगुवों के बीच फूट पड़ने दी और वे अबीमेलेक के साथ विश्‍वासघात करने लगे। 24  यह इसलिए हुआ ताकि यरुब्बाल के 70 बेटों के खून का बदला लिया जा सके। और उनके खून का दोष उनके हत्यारे अबीमेलेक पर आए+ और शेकेम के अगुवों पर भी, जिन्होंने इस कत्लेआम में उसका साथ दिया था। 25  शेकेम के अगुवों ने अबीमेलेक के लिए पहाड़ों पर कुछ आदमियों को घात में बिठाया। और वे लोग आने-जानेवालों को लूटने लगे। इस बात की खबर अबीमेलेक को मिली। 26  फिर एबेद का बेटा गाल अपने भाइयों के साथ शेकेम आया और शेकेम+ के अगुवे उम्मीद करने लगे कि वह उनकी मदद करेगा। 27  उन्होंने अंगूरों के बाग में जाकर अंगूर इकट्ठे किए, उन्हें रौंदकर रस निकाला और जश्‍न मनाने लगे। वे अपने देवता के मंदिर में जाकर+ खाने-पीने लगे और अबीमेलेक को कोसने लगे। 28  एबेद के बेटे गाल ने कहा, “अबीमेलेक और शेकेम* कौन होते हैं जो हम उनके अधीन रहें? अबीमेलेक यरुब्बाल+ का बेटा है तो क्या हुआ? उसका अधिकारी जबूल है तो क्या हुआ? अबीमेलेक के अधीन रहने से अच्छा है कि हम शेकेम के पिता हमोर के बेटों की सेवा करें। 29  अगर यहाँ के निवासी मेरा हुक्म मानें, तो मैं अबीमेलेक का तख्ता पलट दूँगा।” फिर गाल ने अबीमेलेक को चुनौती दी, “तुझे अपनी सेना जितनी बढ़ानी है बढ़ा ले और युद्ध के मैदान में उतर आ।” 30  जब शेकेम के हाकिम जबूल को एबेद के बेटे गाल की बातों का पता चला तो उसका गुस्सा भड़क उठा। 31  उसने चुपके से* अपने दूतों के हाथ अबीमेलेक को यह संदेश भिजवाया, “देख, शेकेम में एबेद का बेटा गाल और उसके भाई आए हुए हैं और तेरे खिलाफ शहर के लोगों को भड़का रहे हैं। 32  इसलिए तू अपने आदमियों के साथ रात में ही यहाँ आ जा और बाहर घात लगाकर बैठ। 33  कल सूरज उगते ही शहर पर धावा बोल दे। जब गाल और उसके आदमी तुझसे लड़ने आएँ तो किसी भी तरह उसे हरा दे।” 34  इसलिए रात को अबीमेलेक और उसके आदमी शेकेम गए और शहर के पास चार दलों में घात लगाकर बैठ गए। 35  अगले दिन एबेद का बेटा गाल, शहर के फाटक पर आया। घात में बैठे अबीमेलेक और उसके आदमी उठकर शहर की तरफ बढ़ने लगे। 36  जब गाल ने लोगों को देखा तो जबूल से कहा, “ऐसा लगता है, लोग पहाड़ों से उतरकर हमारी तरफ आ रहे हैं।” मगर जबूल ने कहा, “यह तेरा वहम है, वे लोग नहीं पहाड़ों की परछाईं है।” 37  कुछ देर बाद गाल ने कहा, “देख तो सही, लोग सचमुच पहाड़ी इलाके के बीच से नीचे उतर रहे हैं और एक दल तो मोननीम के बड़े पेड़ के रास्ते आ रहा है।” 38  जबूल ने कहा, “क्या कहा था तूने, ‘अबीमेलेक कौन होता है जो हम उसके अधीन रहें?’+ अब कहाँ गयी तेरी वे बड़ी-बड़ी बातें! उनकी सेवा करना तुझे गवारा नहीं था न! तो अब जा और लड़ उनसे।” 39  इसलिए गाल, शेकेम के अगुवों के आगे-आगे गया और उसने अबीमेलेक से लड़ाई की। 40  अबीमेलेक ने गाल को ऐसा खदेड़ा कि वह उसके सामने से भाग निकला। शहर के फाटक तक कई लोगों की लाशें बिछ गयीं। 41  फिर अबीमेलेक अरूमा में रहने लगा। जबूल+ ने गाल और उसके भाइयों को शेकेम से खदेड़ दिया। 42  अगले दिन अबीमेलेक को खबर दी गयी कि लोग शहर से बाहर जाने लगे हैं। 43  तब उसने अपने आदमियों को तीन दलों में बाँटा और शहर के बाहर घात लगाकर बैठ गया। लोगों को शहर से बाहर आते देख, उसने उन पर हमला बोल दिया और उन्हें मार डाला। 44  फिर वह और उसके दल आगे बढ़कर शहर के फाटक के सामने तैनात हो गए, जबकि दो दलों ने उन सब लोगों पर हमला किया जो शहर के बाहर थे और उन्हें मार गिराया। 45  अबीमेलेक ने दिन-भर उस शहर से युद्ध करके उस पर कब्ज़ा कर लिया और उसके निवासियों को मार डाला। उसने पूरे शहर की ईंट-से-ईंट बजा दी+ और वहाँ की ज़मीन पर नमक छिड़कवा दिया। 46  जब शेकेम के किले के सभी अगुवों ने यह सुना तो वे फौरन एलबरीत के मंदिर+ के अंदरवाले कमरे* में जा छिपे। 47  जैसे ही अबीमेलेक को पता चला कि शेकेम के किले के सभी अगुवे मंदिर में इकट्ठा हो गए हैं, 48  वह अपने सारे आदमियों के साथ ज़लमोन पहाड़ पर गया। उसने कुल्हाड़ी से पेड़ की डाल काटी और उसे अपने कंधों पर उठाकर ले जाने लगा। उसने अपने आदमियों से कहा, “जैसा मैंने किया वैसा ही करो। जल्दी!” 49  तब सभी आदमियों ने एक-एक डाल काटी और अबीमेलेक के पीछे-पीछे गए। उन्होंने ये डालियाँ मंदिर के उस कमरे के चारों तरफ रख दीं और उनमें आग लगा दी। शेकेम के किले के सभी लोग, करीब 1,000 आदमी-औरत जलकर मर गए। 50  फिर अबीमेलेक, तेबेस शहर गया और उस पर हमला करने के लिए उसने छावनी डाली। उसने शहर पर कब्ज़ा कर लिया। 51  शहर के बीचों-बीच एक मज़बूत मीनार थी। इसलिए शहर के सभी आदमी-औरत और सारे अगुवे वहाँ भाग गए। उन्होंने मीनार में घुसकर उसे अंदर से बंद कर लिया और ऊपर छत की तरफ गए। 52  इतने में अबीमेलेक वहाँ पहुँच गया और उसने मीनार पर हमला बोल दिया। जब वह मीनार में आग लगाने के लिए उसके द्वार पर आया 53  तो मीनार से एक औरत ने चक्की का ऊपरी पाट अबीमेलेक के सिर पर फेंका और अबीमेलेक की खोपड़ी फट गयी।+ 54  अबीमेलेक ने तुरंत अपने हथियार ढोनेवाले सेवक से कहा, “अपनी तलवार निकाल और मुझे मार डाल। कहीं लोग यह न कहें कि अबीमेलेक एक औरत के हाथों मारा गया।” तब उसके सेवक ने उसे तलवार भोंक दी और वह मर गया। 55  जब इसराएलियों ने देखा कि अबीमेलेक मर चुका है, तो वे सब अपने घर लौट आए। 56  इस तरह परमेश्‍वर ने अबीमेलेक को उसकी बुराई का सिला दिया, जो उसने अपने 70 भाइयों को मारकर अपने पिता से की थी।+ 57  परमेश्‍वर ने शेकेम के आदमियों को भी उनकी बुराई का सिला दिया। उस दिन यरुब्बाल+ के बेटे योताम का शाप+ पूरा हुआ।

कई फुटनोट

या शायद, “ज़मींदारों।”
शा., “तुम्हारा हाड़-माँस हूँ।”
शा., “उनका मन उसकी तरफ झुकने लगा।”
शा., “के ऊपर क्यों झूमूँ?”
शा., “तुम्हारे ऊपर क्यों झूमूँ?”
शा., “तुम्हारे ऊपर क्यों झूमूँ?”
शायद शेकेम के अधिकारी जबूल की बात की गयी है।
या “चालाकी से।”
या “गढ़।”