यूहन्‍ना को दिया गया प्रकाशितवाक्य 11:1-19

  • दो गवाह (1-13)

    • टाट ओढ़े हुए 1,260 दिन भविष्यवाणी करते हैं (3)

    • मार डाले जाते हैं पर दफनाए नहीं जाते (7-10)

    • साढ़े तीन दिन बाद ज़िंदा किए जाते हैं (11, 12)

  • दूसरा कहर बीता, तीसरा आनेवाला है (14)

  • सातवीं तुरही (15-19)

    • हमारे मालिक और उसके मसीह का राज (15)

    • पृथ्वी को तबाह करनेवाले खत्म होंगे (18)

11  और मुझे छड़* जैसा नरकट दिया गया+ और मुझसे कहा गया, “उठ और परमेश्‍वर के मंदिर के पवित्र-स्थान और उसकी वेदी और मंदिर में उपासना करनेवालों को नाप।  मगर मंदिर के पवित्र-स्थान के बाहर जो आँगन है उसे छोड़ दे, मत नाप क्योंकि यह आँगन दूसरे राष्ट्रों को दिया गया है और वे 42 महीने तक पवित्र नगरी+ को अपने पैरों तले रौंदेंगे।+  मैं अपने दो गवाहों को भेजूँगा ताकि वे टाट ओढ़कर 1,260 दिन तक भविष्यवाणी करें।”  जैतून के दो पेड़ और दो दीवटें उन दो गवाहों की निशानियाँ हैं+ और वे पूरी धरती के मालिक के सामने खड़े हैं।+  अगर कोई उन गवाहों को नुकसान पहुँचाना चाहे, तो उनके मुँह से आग निकलती है और उनके दुश्‍मनों को भस्म कर देती है। जो कोई उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहेगा वह इसी तरह मार डाला जाएगा।  उनके पास यह अधिकार है कि आकाश* को बंद कर दें+ ताकि उनके भविष्यवाणी करने के दिनों में बारिश न हो+ और पानी को खून में बदल दें+ और जब चाहें तब धरती पर हर तरह का कहर बरसाएँ।  और जब वे गवाही दे चुके होंगे, तो वह जंगली जानवर जो अथाह-कुंड से बाहर निकला था, उनसे लड़ेगा और उन पर जीत हासिल करेगा और उन्हें मार डालेगा।+  और उनकी लाशें उस बड़े शहर के चौराहे पर पड़ी रहेंगी, जो लाक्षणिक अर्थ में सदोम और मिस्र कहलाता है, जहाँ उनके प्रभु को भी काठ पर लटकाकर मार डाला गया था।  और जातियों और गोत्रों और भाषाओं* और राष्ट्रों के लोग साढ़े तीन दिन तक उनकी लाशें देखते रहेंगे+ और उन्हें कब्र में नहीं रखने देंगे। 10  और धरती के रहनेवाले उनकी मौत पर बहुत खुश होंगे और जश्‍न मनाएँगे और एक-दूसरे को तोहफे भेजेंगे क्योंकि उन दोनों भविष्यवक्‍ताओं ने धरती के रहनेवालों को अपने संदेश से तड़पाया था। 11  साढ़े तीन दिन के बाद परमेश्‍वर की तरफ से जीवन-शक्‍ति उनमें आयी+ और वे अपने पैरों पर उठ खड़े हुए और जिन्होंने उन्हें देखा था उन पर खौफ छा गया। 12  और उन्हें आकाश से एक ज़ोरदार आवाज़ सुनायी दी जो उनसे कह रही थी, “यहाँ ऊपर आओ।” और वे बादलों में ऊपर आकाश में गए और उनके दुश्‍मनों ने उन्हें देखा।* 13  उसी घड़ी एक बड़ा भूकंप हुआ और उस नगरी का दसवाँ हिस्सा ढह गया। उस भूकंप से 7,000 लोग मारे गए और बाकी लोगों पर डर छा गया और उन्होंने स्वर्ग के परमेश्‍वर की महिमा की। 14  दूसरा कहर बीत चुका।+ देख! तीसरा कहर बहुत जल्द टूटनेवाला है। 15  सातवें स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी।+ और स्वर्ग में ज़ोरदार आवाज़ें सुनायी दीं जो कह रही थीं, “दुनिया का राज अब हमारे मालिक+ और उसके मसीह का हो गया है+ और वह हमेशा-हमेशा तक राजा बनकर राज करेगा।”+ 16  और 24 प्राचीन+ जो परमेश्‍वर के सामने अपनी राजगद्दियों पर बैठे थे, मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए परमेश्‍वर की उपासना की, 17  “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा,* तू जो था और जो है,+ हम तेरा शुक्रिया अदा करते हैं क्योंकि तूने अपनी महाशक्‍ति से राजा के तौर पर राज करना शुरू कर दिया है।+ 18  मगर राष्ट्रों का गुस्सा भड़क उठा और तेरा क्रोध उन पर आ पड़ा और तय किया गया वक्‍त आ पहुँचा जब मरे हुओं का न्याय किया जाए और तेरे दासों यानी भविष्यवक्‍ताओं को+ और पवित्र जनों को और तेरे नाम का डर माननेवाले छोटे-बड़े सभी लोगों को इनाम दिया जाए+ और पृथ्वी को तबाह करनेवालों को खत्म कर दिया जाए।”*+ 19  और स्वर्ग में परमेश्‍वर के मंदिर का पवित्र-स्थान खोला गया और उसके करार का संदूक मंदिर के पवित्र-स्थान में देखा गया।+ और बिजलियाँ कौंधीं, ज़ोरदार आवाज़ें आयीं, गरजन और भूकंप हुआ और बड़े-बड़े ओले पड़े।

कई फुटनोट

या “माप-छड़।”
या “स्वर्ग।”
या “ज़बान।”
या “दुश्‍मन देख रहे थे।”
अति. क5 देखें।
या “नाश करनेवालों का नाश कर दिया जाए।”