यूहन्‍ना को दिया गया प्रकाशितवाक्य 22:1-21

  • जीवन देनेवाले पानी की नदी (1-5)

  • समाप्ति (6-21)

    • ‘आ! जीवन देनेवाला पानी मुफ्त में ले ले’ (17)

    • “प्रभु यीशु, आ” (20)

22  और उसने मुझे जीवन देनेवाले पानी की नदी दिखायी+ जो बिल्लौर की तरह साफ थी और परमेश्‍वर और मेम्ने की राजगद्दी से निकलकर बह रही थी।+  यह नदी उस नगरी की मुख्य सड़क के बीचों-बीच बह रही थी। नदी के दोनों तरफ जीवन के पेड़ लगे थे जिनमें साल में 12 बार यानी हर महीने फल लगते थे। उनकी पत्तियाँ राष्ट्रों के लोगों के रोग दूर करने के लिए थीं।+  और वहाँ फिर कभी किसी तरह का शाप नहीं पड़ेगा। मगर उस नगरी में परमेश्‍वर और मेम्ने की राजगद्दी होगी+ और परमेश्‍वर के दास उसकी पवित्र सेवा करेंगे।  वे उसका चेहरा देखेंगे+ और उसका नाम उनके माथों पर लिखा होगा।+  फिर कभी रात नहीं होगी+ और उन्हें दीपक या सूरज की रौशनी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि यहोवा* परमेश्‍वर उन पर रौशनी चमकाएगा+ और वे हमेशा-हमेशा तक राजा बनकर राज करेंगे।+  स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “ये वचन भरोसे के लायक* और सच्चे हैं।+ हाँ, यहोवा* परमेश्‍वर जो भविष्यवक्‍ताओं को प्रेरित करता है,+ उसने अपना स्वर्गदूत भेजा ताकि अपने दासों को वह बातें दिखाए जो बहुत जल्द होनेवाली हैं।  देख! मैं बहुत जल्द आ रहा हूँ।+ सुखी है वह जो इस खर्रे की भविष्यवाणी के वचनों को मानता है।”+  मैं यूहन्‍ना, ये बातें देख और सुन रहा था। और जब मैं देख और सुन चुका, तो जो स्वर्गदूत मुझे ये सारी बातें दिखा रहा था, मैं उसकी उपासना करने के लिए उसके पैरों पर गिर पड़ा।  मगर उसने मुझसे कहा, “नहीं, नहीं, ऐसा मत कर! मैं तो सिर्फ तेरे और तेरे भाइयों यानी भविष्यवक्‍ताओं की तरह एक दास हूँ, जो इस खर्रे में लिखे वचनों पर चलते हैं। परमेश्‍वर की उपासना कर।”+ 10  उसने मुझसे यह भी कहा, “इस खर्रे में लिखी भविष्यवाणी के वचनों पर मुहर मत लगा, क्योंकि तय किया गया वक्‍त पास आ गया है। 11  जो बुरे काम करता है वह बुराई में लगा रहे। जिसका चालचलन गंदा है वह गंदे कामों में लगा रहे। मगर जो नेक है वह नेक कामों में लगा रहे और जो पवित्र है वह पवित्र होता जाए। 12  ‘देख! मैं बहुत जल्द आ रहा हूँ और मेरे पास वह इनाम है जो मैं हरेक को उसके काम के हिसाब से देता हूँ।+ 13  मैं ही अल्फा और ओमेगा* हूँ,+ मैं ही पहला और आखिरी, शुरूआत और अंत हूँ। 14  सुखी हैं वे जिन्होंने अपने चोगे धोए हैं+ ताकि उन्हें जीवन के पेड़ों का फल खाने का अधिकार मिले+ और वे उस नगरी में उसके फाटकों से दाखिल हो सकें।+ 15  मगर कुत्ते,* जादू-टोना करनेवाले, नाजायज़ यौन-संबंध* रखनेवाले, कातिल, मूर्तिपूजा करनेवाले, झूठ बोलनेवाले और झूठ को पसंद करनेवाले उस नगरी के बाहर होंगे।’+ 16  ‘मुझ यीशु ने ही अपना स्वर्गदूत भेजकर तुम्हें ये बातें बतायीं ताकि मंडलियों का भला हो। मैं दाविद की जड़ और उसका वंश हूँ+ और सुबह का चमकता तारा हूँ।’”+ 17  और पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन+ कहती रहती हैं, “आ!” और सुननेवाला हर कोई कहे, “आ!” और हर कोई जो प्यासा हो वह आए।+ जो कोई चाहे वह जीवन देनेवाला पानी मुफ्त में ले ले।+ 18  “मैं इस खर्रे की भविष्यवाणी के वचनों को सुननेवाले हर किसी को यह गवाही देता हूँ: अगर कोई इन बातों में कुछ जोड़ता है,+ तो परमेश्‍वर इस खर्रे में लिखे कहर उस पर ले आएगा।+ 19  और अगर कोई भविष्यवाणी के इस खर्रे के वचनों में से कुछ निकालेगा, तो परमेश्‍वर उसे इस खर्रे में लिखी अच्छी बातें नहीं देगा यानी उसे जीवन के पेड़ों+ में से खाने नहीं देगा और पवित्र नगरी+ में दाखिल नहीं होने देगा। 20  जो इन बातों की गवाही देता है, वह कहता है, ‘हाँ, मैं बहुत जल्द आ रहा हूँ।’”+ “आमीन! प्रभु यीशु, आ।” 21  प्रभु यीशु की महा-कृपा पवित्र जनों पर होती रहे।

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
या “विश्‍वास के योग्य।”
अति. क5 देखें।
ये यूनानी वर्णमाला के पहले और आखिरी अक्षर हैं।
यानी वे लोग जिनके काम परमेश्‍वर की नज़र में घिनौने हैं।
शब्दावली देखें।