यूहन्‍ना को दिया गया प्रकाशितवाक्य 9:1-21

  • पाँचवीं तुरही (1-11)

  • एक कहर बीत गया, दो और आनेवाले (12)

  • छठी तुरही (13-21)

9  पाँचवें स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी।+ और मैंने एक तारा देखा जो आकाश से धरती पर गिरा था और उसे अथाह-कुंड के गड्‌ढे* की चाबी दी गयी।+  और उसने अथाह-कुंड के गड्‌ढे को खोला और उसमें से ऐसा धुआँ निकला जैसे किसी बड़े भट्ठे से निकलता है और उसके धुएँ से सूरज पर और हवा में अंधकार छा गया।+  और उस धुएँ में से टिड्डियाँ निकलकर धरती पर आयीं+ और उन्हें वैसी ही शक्‍ति दी गयी जैसी शक्‍ति पृथ्वी के बिच्छुओं में होती है।  उनसे कहा गया कि वे न तो पृथ्वी की हरियाली को, न ही किसी पेड़-पौधे को नुकसान पहुँचाएँ बल्कि सिर्फ उन लोगों को नुकसान पहुँचाएँ जिनके माथे पर परमेश्‍वर की मुहर नहीं है।+  और टिड्डियों को यह अधिकार दिया गया कि वे लोगों को पाँच महीने तक दर्द से तड़पाती रहें मगर उन्हें जान से न मारें। और लोगों को ऐसा दर्द हो रहा था जैसे बिच्छू के डंक मारने से होता है।+  और उन दिनों में लोग मरना चाहेंगे मगर उन्हें मौत नहीं आएगी। वे मौत के लिए तरसेंगे मगर मौत उनसे दूर भागेगी।  और वे टिड्डियाँ, लड़ाई के लिए तैयार किए गए घोड़ों जैसी दिख रही थीं।+ उनके सिर पर सोने के ताज जैसा कुछ था और उनके चेहरे इंसानों के चेहरे जैसे थे,  मगर उनके बाल औरतों के बालों जैसे लंबे थे। और उनके दाँत शेरों के दाँतों जैसे थे,+  उनके कवच लोहे के कवच जैसे थे। और उनके पंखों की आवाज़ ऐसी थी जैसे रथ और घोड़े युद्ध के लिए दौड़े चले जा रहे हों।+ 10  और उनकी पूँछ पर बिच्छुओं जैसे डंक थे और उनकी पूँछ में लोगों को पाँच महीने तक तड़पाने की शक्‍ति थी।+ 11  अथाह-कुंड का स्वर्गदूत उनका राजा था।+ इब्रानी में उसका नाम अबद्दोन* है मगर यूनानी में उसका नाम अपुल्लयोन* है। 12  पहला कहर बीत चुका। देख! इसके बाद दो और कहर टूटनेवाले हैं।+ 13  छठे स्वर्गदूत ने+ अपनी तुरही फूँकी।+ और जो सोने की वेदी+ परमेश्‍वर के सामने थी, उसके सींगों से मैंने एक आवाज़ सुनी। 14  वह आवाज़ उस छठे स्वर्गदूत से जिसके पास तुरही थी, कह रही थी, “उन चार स्वर्गदूतों के बंधन खोल दे जो महानदी फरात के पास बँधे हुए हैं।”+ 15  और उन चार स्वर्गदूतों को जिन्हें इसी घड़ी, दिन, महीने और साल के लिए तैयार किया गया है, खोल दिया गया ताकि वे एक-तिहाई इंसानों को मार डालें। 16  सेना के घुड़सवारों की गिनती 20 करोड़ थी। मैंने उनकी गिनती सुनी। 17  और मुझे दर्शन में घोड़े और उनके सवार इस रूप में दिखायी दिए: उनके कवच धधकती आग जैसे लाल और गहरे नीले और गंधक जैसे पीले थे। घोड़ों के सिर शेरों के सिर जैसे थे+ और उनके मुँह से आग, धुआँ और गंधक निकल रही थी। 18  इन तीनों कहर से यानी उनके मुँह से निकली आग, धुएँ और गंधक से एक-तिहाई लोग मार डाले गए। 19  इसलिए कि घोड़ों की शक्‍ति उनके मुँह और उनकी पूँछ में है। उनकी पूँछ साँपों जैसी हैं जिनमें सिर हैं और इनसे वे नुकसान पहुँचाते हैं। 20  मगर बाकी लोग जो इन तीनों कहर से नहीं मारे गए थे, उन्होंने अपने कामों से पश्‍चाताप नहीं किया और दुष्ट स्वर्गदूतों और सोने-चाँदी, ताँबे, पत्थर और लकड़ी की मूरतों को पूजना नहीं छोड़ा जो न तो देख सकती हैं, न सुन सकती हैं और न चल सकती हैं।+ 21  और उन्होंने जो खून, जादू-टोना और चोरियाँ की थीं और नाजायज़ यौन-संबंध* रखे थे, उनसे पश्‍चाताप नहीं किया।

कई फुटनोट

या “सुरंग।”
मतलब “विनाश।”
मतलब “नाश करनेवाला।”
यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।