प्रेषितों के काम 16:1-40

  • पौलुस तीमुथियुस को चुनता है (1-5)

  • दर्शन में मकिदुनिया का आदमी दिखा (6-10)

  • फिलिप्पी में लुदिया विश्‍वासी बनती है (11-15)

  • पौलुस और सीलास को जेल (16-24)

  • जेलर और उसका घराना बपतिस्मा लेता है (25-34)

  • पौलुस कहता है, अधिकारी माफी माँगें (35-40)

16  फिर पौलुस दिरबे और लुस्त्रा शहर भी पहुँचा।+ और देखो! वहाँ तीमुथियुस+ नाम का एक चेला था, जो एक विश्‍वासी यहूदी औरत का बेटा था मगर उसका पिता यूनानी था।  लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे।  इसलिए पौलुस ने यह इच्छा ज़ाहिर की कि वह तीमुथियुस को अपने साथ सफर पर ले जाना चाहता है। उसने तीमुथियुस को अपने साथ लिया और उसका खतना करवाया क्योंकि उन इलाकों के सभी यहूदी जानते थे कि तीमुथियुस का पिता यूनानी था।+  वे अपने सफर में जिन-जिन शहरों में गए, वहाँ उन्होंने बताया कि यरूशलेम के प्रेषितों और प्राचीनों ने क्या-क्या आदेश दिए हैं ताकि वे उन्हें मानें।+  नतीजा यह हुआ कि मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती गयी।  इसके बाद वे फ्रूगिया और गलातिया प्रांत से गुज़रे+ क्योंकि पवित्र शक्‍ति ने उन्हें एशिया प्रांत में वचन सुनाने से मना किया था।  फिर जब वे मूसिया पहुँचे तो उन्होंने बितूनिया+ प्रांत में जाने की कोशिश की, मगर यीशु ने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उन्हें वहाँ जाने की इजाज़त नहीं दी।  इसलिए वे मूसिया से* होकर त्रोआस शहर पहुँचे।  रात को पौलुस ने एक दर्शन में देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा हुआ उससे यह बिनती कर रहा है, “इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।” 10  जैसे ही उसने यह दर्शन देखा, हम यह समझकर मकिदुनिया के लिए निकल पड़े कि परमेश्‍वर ने हमें वहाँ के लोगों को खुशखबरी सुनाने का बुलावा दिया है। 11  इसलिए हम त्रोआस में जहाज़ पर चढ़े और समुंदर के रास्ते सीधे समोथ्राके द्वीप पहुँचे और अगले दिन नियापुलिस शहर गए। 12  वहाँ से हम फिलिप्पी+ गए जो मकिदुनिया के उस ज़िले का सबसे जाना-माना शहर और एक रोमी उपनिवेश बस्ती है। हम उस शहर में कुछ दिन रहे। 13  सब्त के दिन हम यह सोचकर शहर के फाटक के बाहर नदी किनारे गए कि वहाँ प्रार्थना करने की कोई जगह होगी। हम वहीं बैठकर उन औरतों को प्रचार करने लगे जो वहाँ जमा थीं। 14  वहाँ लुदिया नाम की एक औरत भी थी जो थुआतीरा+ शहर की रहनेवाली थी और बैंजनी कपड़े* बेचती थी। वह परमेश्‍वर की उपासक थी और जब वह पौलुस की बातें सुन रही थी, तो यहोवा* ने उसके दिल के दरवाज़े पूरी तरह खोल दिए ताकि वह उसकी बातों पर यकीन करे। 15  लुदिया और उसके घराने ने बपतिस्मा लिया,+ फिर उसने हमसे बिनती की, “अगर तुम वाकई मानते हो कि मैं यहोवा* की वफादार हूँ, तो मेरे घर आकर ठहरो।” वह हमें जैसे-तैसे मनाकर अपने घर ले ही गयी। 16  फिर जब हम प्रार्थना की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिसमें भविष्य बतानेवाला दुष्ट स्वर्गदूत समाया था।+ वह दासी भविष्य बताया करती थी जिससे उसके मालिकों की बहुत कमाई होती थी। 17  पौलुस और हम जहाँ कहीं जाते, वह लड़की हमारे पीछे-पीछे आती और चिल्लाकर कहती थी, “ये आदमी परम-प्रधान परमेश्‍वर के दास हैं,+ तुम्हें उद्धार की राह का संदेश सुना रहे हैं।” 18  वह बहुत दिनों तक ऐसा करती रही। आखिरकार, पौलुस उससे तंग आ गया और उसने मुड़कर उस दासी में समाए दुष्ट स्वर्गदूत से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ, उससे बाहर निकल जा।” उसी घड़ी वह बाहर निकल गया।+ 19  जब उस दासी के मालिकों ने देखा कि उनकी कमाई का ज़रिया बंद हो गया है,+ तो उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर चौक में अधिकारियों के सामने ले आए।+ 20  वे उन्हें नगर-अधिकारियों के पास ले गए और कहने लगे, “ये आदमी हमारे शहर में गड़बड़ी मचा रहे हैं।+ ये यहूदी हैं और 21  लोगों को ऐसे रिवाज़ सिखा रहे हैं जिन्हें अपनाने या मानने की हमें इजाज़त नहीं क्योंकि हम रोमी हैं।” 22  तब लोगों की भीड़ उनके खिलाफ जमा हो गयी और नगर-अधिकारियों ने पौलुस और सीलास के कपड़े फाड़ दिए और उन्हें बेंत लगाने का हुक्म दिया।+ 23  उन्हें बहुत मारने के बाद जेल में डाल दिया गया और जेलर को हुक्म दिया गया कि उन पर सख्त पहरा दे।+ 24  ऐसा कड़ा हुक्म पाने की वजह से जेलर ने उन्हें अंदर की कोठरी में डाल दिया और उनके पाँव काठ में कस दिए। 25  मगर आधी रात के वक्‍त, पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और गीत गाकर परमेश्‍वर का गुणगान कर रहे थे+ और बाकी कैदी सुन रहे थे। 26  तभी अचानक एक बड़ा भूकंप हुआ जिससे जेल की नींव तक हिल गयी। उसी घड़ी जेल के सारे दरवाज़े खुल गए और सबकी ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं।+ 27  तब जेलर जाग गया और जेल के दरवाज़े खुले देखकर उसने सोचा कि कैदी भाग गए हैं।+ उसने अपनी तलवार खींची और वह अपनी जान लेने ही वाला था, 28  तभी पौलुस ने ज़ोर से पुकारकर कहा, “अपनी जान मत ले क्योंकि हम सब यहीं हैं!” 29  तब जेलर ने दीपक मँगवाए और जल्दी से अंदर आया और थर-थर काँपता हुआ पौलुस और सीलास के पैरों पर गिर पड़ा। 30  वह उन्हें बाहर ले आया और उसने कहा, “मुझे बताओ, उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?” 31  उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु पर विश्‍वास कर, तब तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।”+ 32  पौलुस और सीलास ने उसे और उसके पूरे घराने को यहोवा* का वचन सुनाया। 33  जेलर ने रात को उसी घड़ी उन्हें अपने साथ ले जाकर उनके घाव धोए। फिर उसने और उसके घराने के सब लोगों ने बिना देर किए बपतिस्मा लिया।+ 34  वह उन्हें अपने घर ले आया और उनके सामने खाना परोसा। उसने अपने पूरे घराने के साथ इस बात पर खुशियाँ मनायीं कि अब वह परमेश्‍वर पर विश्‍वास करनेवाला बन गया है। 35  जब दिन निकला तो नगर-अधिकारियों ने पहरेदारों के हाथ यह संदेश भेजा: “उन आदमियों को रिहा कर दो।” 36  तब जेलर ने उनकी बात पौलुस को बतायी, “नगर-अधिकारियों ने कुछ आदमियों के हाथ यह संदेश भेजा है कि तुम दोनों को रिहा कर दिया जाए। इसलिए अब बाहर आ जाओ और सही-सलामत लौट जाओ।” 37  मगर पौलुस ने उनसे कहा, “हम रोमी नागरिक हैं,+ फिर भी उन्होंने यह साबित किए बगैर कि हमने कोई जुर्म किया है,* हमें सबके सामने पिटवाया और जेल में डाल दिया। और अब कह रहे हैं कि हम चुपचाप यहाँ से निकल जाएँ? नहीं, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा! उन्हें खुद आकर हमें यहाँ से बाहर ले जाना होगा।” 38  पहरेदारों ने जाकर ये बातें नगर-अधिकारियों को बतायीं। जब अधिकारियों ने सुना कि ये आदमी रोमी नागरिक हैं, तो वे बहुत डर गए।+ 39  इसलिए वे आए और उन्हें मनाने लगे और उन्हें बाहर लाकर उनसे गुज़ारिश की कि वे शहर छोड़कर चले जाएँ। 40  मगर वे जेल से निकलकर लुदिया के घर गए और जब वे भाइयों से मिले, तो उनकी हिम्मत बँधायी+ और फिर वहाँ से चले गए।

कई फुटनोट

या “के बीच से।”
या “बैंजनी रंग की डाई।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “उन्होंने बिना किसी मुकदमे के।”