प्रेषितों के काम 17:1-34

  • पौलुस और सीलास थिस्सलुनीके में (1-9)

  • पौलुस और सीलास बिरीया में (10-15)

  • पौलुस एथेन्स में (16-22क)

  • अरियुपगुस में पौलुस का भाषण (22ख-34)

17  अब वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया शहरों से होते हुए थिस्सलुनीके शहर आए,+ जहाँ यहूदियों का एक सभा-घर था।  पौलुस अपने रिवाज़ के मुताबिक+ उस सभा-घर में गया और उसने तीन सब्त तक पवित्र शास्त्र से उन यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क किया+  और वह शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता रहा और साबित करता रहा कि मसीह के लिए दुख उठाना+ और मरे हुओं में से ज़िंदा होना ज़रूरी था।+ वह कहता था, “यही है वह मसीह, वह यीशु जिसके बारे में मैं तुम्हें बता रहा हूँ।”  नतीजा यह हुआ कि उनमें से कुछ विश्‍वासी बन गए और पौलुस और सीलास के साथ हो लिए।+ इनके अलावा, परमेश्‍वर की उपासना करनेवाले यूनानियों की एक बड़ी भीड़ ने भी विश्‍वास किया। इनमें कई जानी-मानी औरतें भी थीं।  मगर यह देखकर यहूदी जलन से भर गए+ और अपने साथ बाज़ार के कुछ आवारा बदमाशों को लेकर एक दल बना लिया और शहर भर में हंगामा करने लगे। उन्होंने यासोन के घर पर धावा बोल दिया ताकि पौलुस और सीलास को इस पागल भीड़ के हवाले कर दें।  मगर जब ढूँढ़ने पर उन्हें पौलुस और सीलास वहाँ नहीं मिले, तो उन्होंने यासोन और कुछ और भाइयों को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर नगर-अधिकारियों के पास ले गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “जिन आदमियों ने सारी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है, वे अब यहाँ भी आ पहुँचे हैं+  और इस यासोन ने उन्हें अपने घर में मेहमान ठहराया है। ये आदमी सम्राट* के आदेशों के खिलाफ बगावत करते हैं और कहते हैं कि कोई दूसरा राजा है, जिसका नाम यीशु है।”+  जब भीड़ ने और नगर-अधिकारियों ने यह सुना तो वे घबरा गए।  नगर-अधिकारियों ने यासोन और बाकियों से ज़मानत के तौर पर भारी रकम लेकर उन्हें छोड़ दिया। 10  तब भाइयों ने बिना देर किए रातों-रात पौलुस और सीलास, दोनों को बिरीया शहर भेज दिया। वहाँ पहुँचने पर वे यहूदियों के सभा-घर में गए। 11  बिरीया के लोग तो थिस्सलुनीके के लोगों से ज़्यादा भले और खुले विचारोंवाले थे क्योंकि उन्होंने बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन ध्यान से शास्त्र की जाँच करते थे कि जो बातें वे सुन रहे हैं वे सच हैं या नहीं। 12  इसलिए उनमें से कई लोग विश्‍वासी बन गए। और कई इज़्ज़तदार यूनानी आदमी-औरत भी विश्‍वासी बन गए। 13  मगर जब थिस्सलुनीके के यहूदियों को पता चला कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्‍वर का वचन सुना रहा है, तो वे वहाँ आ धमके ताकि जनता को भड़काएँ और हंगामा मचाएँ।+ 14  तब भाइयों ने फौरन पौलुस को समुंदर किनारे भेज दिया,+ मगर सीलास और तीमुथियुस वहीं बिरीया में रहे। 15  जो भाई पौलुस को छोड़ने उसके साथ गए वे उसे बहुत दूर एथेन्स तक ले गए। पौलुस ने उन्हें विदा करते वक्‍त सीलास और तीमुथियुस+ के लिए यह खबर दी कि वे जल्द-से-जल्द उसके पास एथेन्स चले आएँ। 16  जब पौलुस एथेन्स में उनका इंतज़ार कर रहा था, तब उसने देखा कि पूरा शहर मूरतों से भरा हुआ है। यह देखकर उसका जी जलने लगा। 17  इसलिए वह सभा-घर में यहूदियों के साथ और परमेश्‍वर का डर माननेवाले दूसरे लोगों के साथ शास्त्र से तर्क-वितर्क करने लगा। साथ ही, हर दिन बाज़ार में उसे जो भी मिलता था उसके साथ वह इसी तरह तर्क-वितर्क करता था। 18  मगर इपिकूरी और स्तोइकी दार्शनिकों में से कुछ लोग पौलुस से बहस करने लगे। उनमें से कुछ कहते थे, “यह बकबक करनेवाला आखिर कहना क्या चाहता है?” दूसरे कहते थे, “यह तो कोई विदेशी देवताओं का प्रचारक लगता है।” क्योंकि पौलुस, यीशु के बारे में खुशखबरी सुना रहा था और यह सिखा रहा था कि मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे।+ 19  तब ये लोग उसे अपने साथ अरियुपगुस ले गए और कहने लगे, “क्या हम जान सकते हैं कि तू यह जो नयी शिक्षा सिखा रहा है यह क्या है? 20  क्योंकि तू ऐसी नयी बातें बता रहा है जो हमारे कानों को अजीब लगती हैं। हम जानना चाहते हैं कि इन सब बातों का क्या मतलब है।” 21  दरअसल एथेन्स के सभी लोग और वहाँ रहनेवाले* विदेशी लोग अपना फुरसत का समय किसी और काम में नहीं बल्कि कुछ-न-कुछ नया सुनने या सुनाने में बिताते थे। 22  तब पौलुस अरियुपगुस+ के बीच खड़ा हुआ और उनसे कहने लगा, “एथेन्स के लोगो, मैं देख सकता हूँ कि तुम हर बात में दूसरों से बढ़कर देवताओं के भक्‍त* हो।+ 23  मिसाल के लिए, जब मैं यहाँ से गुज़र रहा था और उन चीज़ों पर गौर कर रहा था जिनकी तुम पूजा करते हो, तो मैंने एक वेदी देखी जिस पर लिखा था, ‘अनजाने परमेश्‍वर के लिए।’ इसलिए तुम अनजाने में जिस परमेश्‍वर की उपासना कर रहे हो, मैं उसी के बारे में तुम्हें बता रहा हूँ। 24  जिस परमेश्‍वर ने पूरी दुनिया और उसकी सब चीज़ें बनायीं, वह आकाश और धरती का मालिक है+ इसलिए वह हाथ के बनाए मंदिरों में नहीं रहता,+ 25  न ही वह इंसान के हाथों अपनी सेवा करवाता है, मानो उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो+ क्योंकि वह खुद सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है।+ 26  उसने एक ही इंसान से+ सारे राष्ट्र बनाए कि वे पूरी धरती पर रहें+ और उनका वक्‍त ठहराया और उनके रहने की हदें तय कीं+ 27  ताकि वे परमेश्‍वर को ढूँढ़ें और उसकी खोज करें और वाकई उसे पा लें।+ सच तो यह है कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है। 28  क्योंकि उसी से हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं, जैसा तुम्हारे कुछ कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी के बच्चे हैं।’ 29  हम परमेश्‍वर के बच्चे हैं+ इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्‍वर सोने या चाँदी या पत्थर जैसा है, या इंसान की कल्पना और कला से गढ़ी गयी किसी चीज़ जैसा है।+ 30  सच है कि परमेश्‍वर ने उस वक्‍त को नज़रअंदाज़ किया जब लोगों ने अनजाने में ऐसा किया था।+ मगर अब वह हर जगह ऐलान कर रहा है कि सब लोग पश्‍चाताप करें। 31  क्योंकि उसने एक दिन तय किया है जब वह सच्चाई से सारी दुनिया का न्याय करेगा+ और इसके लिए उसने एक आदमी को ठहराया है। और सब इंसानों को इस बात का पक्का यकीन दिलाने* के लिए परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया है।”+ 32  जब उन्होंने मरे हुओं के ज़िंदा होने की बात सुनी, तो कुछ लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगे+ जबकि दूसरों ने कहा, “हम इस बारे में तुझसे फिर कभी सुनेंगे।” 33  तब पौलुस वहाँ से निकल गया। 34  मगर कुछ आदमी उसके साथ हो लिए और विश्‍वासी बन गए। इनमें अरियुपगुस की अदालत का एक न्यायी दियोनिसियुस और दमरिस नाम की एक औरत और इनके अलावा और भी लोग थे।

कई फुटनोट

यूनानी में “कैसर।”
या “आनेवाले।”
या “धार्मिक।”
या “गारंटी देने।”