प्रेषितों के काम 7:1-60

  • महासभा के सामने स्तिफनुस का भाषण (1-53)

    • कुलपिताओं का दौर (2-16)

    • मूसा एक अगुवा; इसराएल ने मूर्तिपूजा की (17-43)

    • परमेश्‍वर इंसान के बनाए मंदिरों में नहीं रहता (44-50)

  • स्तिफनुस को पत्थरों से मार डाला गया (54-60)

7  फिर महायाजक ने उससे पूछा, “क्या ये बातें सच हैं?”  स्तिफनुस ने जवाब दिया, “भाइयो और पिता समान बुज़ुर्गो, सुनो। हमारा पुरखा अब्राहम, हारान में बसने से पहले जब मेसोपोटामिया में रहता था,+ तब महिमा से भरपूर परमेश्‍वर ने उसे दर्शन दिया  और उससे कहा, ‘तू अपने देश और नाते-रिश्‍तेदारों को छोड़कर एक ऐसे देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।’+  तब अब्राहम कसदियों के उस देश से निकलकर हारान में रहने लगा। फिर उसके पिता की मौत के बाद,+ परमेश्‍वर ने उसे वहाँ से निकालकर इस देश में बसाया, जहाँ अब तुम रहते हो।+  मगर फिर भी परमेश्‍वर ने उस वक्‍त अब्राहम को इस देश में कोई ज़मीन नहीं दी, पैर रखने तक की जगह भी नहीं दी। मगर परमेश्‍वर ने उससे वादा किया कि वह यह देश उसे और उसके बाद उसके वंशजों को विरासत में देगा,+ जबकि उस वक्‍त तक अब्राहम की कोई औलाद नहीं थी।  और परमेश्‍वर ने यह भी कहा कि अब्राहम का वंश पराए देश में परदेसी बनकर रहेगा और वहाँ के लोग उससे गुलामी करवाएँगे और 400 साल तक उसे सताते रहेंगे।*+  फिर परमेश्‍वर ने कहा, ‘जिस देश की वे गुलामी करेंगे उसे मैं सज़ा दूँगा+ और यह सब होने के बाद वे वहाँ से निकल आएँगे और इस जगह मेरी पवित्र सेवा करेंगे।’+  परमेश्‍वर ने अब्राहम के साथ खतने का करार भी किया।+ फिर अब्राहम, इसहाक का पिता बना+ और आठवें दिन उसका खतना किया।+ और इसहाक से याकूब पैदा हुआ* और याकूब के 12 बेटे हुए जो अपने घराने के मुखिया* बने।  वे अपने भाई यूसुफ से जलने लगे+ और उन्होंने उसे मिस्रियों को बेच दिया।+ मगर परमेश्‍वर यूसुफ के साथ था।+ 10  परमेश्‍वर ने उसे सारी मुसीबतों से छुड़ाया और इस काबिल बनाया कि उसने फिरौन का दिल जीत लिया और वह उसके सामने बुद्धिमान ठहरा। और फिरौन ने उसे मिस्र और अपने पूरे घराने का अधिकारी बनाया।+ 11  मगर फिर पूरे मिस्र और कनान देश पर एक बड़ी मुसीबत टूट पड़ी, वहाँ अकाल पड़ा और हमारे पुरखों को कहीं भी खाने की चीज़ें नहीं मिल पा रही थीं।+ 12  मगर जब याकूब ने सुना कि मिस्र में खाने-पीने की चीज़ें* हैं, तो उसने अपने बेटों यानी हमारे पुरखों को पहली बार वहाँ भेजा।+ 13  और जब वे दूसरी बार वहाँ गए, तब यूसुफ ने अपने भाइयों को बताया कि वह कौन है और फिरौन को उसके परिवार के बारे में मालूम हुआ।+ 14  तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को और अपने घराने के सभी लोगों को कनान से बुलवा लिया,+ जो कुल मिलाकर 75 लोग थे।+ 15  तब याकूब मिस्र में आकर रहने लगा।+ और वहीं उसकी मौत हुई+ और हमारे पुरखों की भी मौत हुई+ 16  और उनकी हड्डियाँ शेकेम लायी गयीं और उस कब्र में रखी गयीं जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शेकेम में हमोर के बेटों से खरीदा था।+ 17  और परमेश्‍वर ने अब्राहम से जो वादा किया था, जैसे-जैसे उसके पूरा होने का वक्‍त पास आ रहा था, वैसे-वैसे अब्राहम के वंशज मिस्र में बढ़ते गए और उनकी गिनती बहुत हो गयी। 18  फिर मिस्र में दूसरा राजा हुआ, जो यूसुफ को नहीं जानता था।+ 19  उसने हमारी जाति के खिलाफ एक चाल चली और हमारे पुरखों को मजबूर किया कि वे अपने बच्चों को पैदा होते ही मरने के लिए छोड़ दें।+ 20  उस दौरान मूसा पैदा हुआ और वह बहुत सुंदर* था। तीन महीने तक तो उसके माता-पिता ने उसे घर में पाला-पोसा।*+ 21  मगर जब उसे छोड़ दिया गया,+ तो फिरौन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपने बेटे की तरह उसकी परवरिश की।+ 22  और मूसा को मिस्रियों की हर तरह की शिक्षा दी गयी। यही नहीं, वह दमदार तरीके से बोलता था और बड़े-बड़े काम करता था।+ 23  जब वह 40 साल का हुआ, तो उसके दिल में यह बात आयी* कि वह जाकर अपने भाइयों को यानी दूसरे इसराएलियों को देख आए।*+ 24  जब उसने देखा कि एक मिस्री एक इसराएली के साथ अन्याय कर रहा है, तो उसने जाकर उसे बचाया और मिस्री को मारकर उस इसराएली की तरफ से बदला लिया। 25  उसने सोचा कि इसराएली यह समझ जाएँगे कि परमेश्‍वर उसके ज़रिए उन्हें छुड़ा रहा है, मगर उन्होंने ऐसा नहीं समझा। 26  अगले दिन जब दो इसराएली आपस में झगड़ रहे थे, तो वह उनके सामने गया और उसने उनके बीच सुलह करवाने के लिए कहा, ‘तुम तो भाई-भाई हो। फिर क्यों एक-दूसरे के साथ बुरा सलूक कर रहे हो?’ 27  मगर जो अपने साथी इसराएली के साथ बुरा सलूक कर रहा था, उसने मूसा को धक्का दिया और कहा, ‘तुझे किसने हमारा अधिकारी और न्यायी ठहराया है? 28  क्या तू मुझे भी मार डालना चाहता है, जैसे तूने कल उस मिस्री को मार डाला था?’ 29  यह सुनकर मूसा वहाँ से भाग गया और मिद्यान देश में परदेसी की तरह रहने लगा। वहाँ उसके दो बेटे पैदा हुए।+ 30  फिर 40 साल बाद, जब मूसा सीनै पहाड़ के पास वीराने में था, तो एक स्वर्गदूत उसके सामने एक जलती हुई कँटीली झाड़ी की लपटों में प्रकट हुआ।+ 31  जब मूसा ने यह देखा, तो वह दंग रह गया। जब वह उसे देखने के लिए पास जा रहा था तो उसे यहोवा* की यह आवाज़ सुनायी दी, 32  ‘मैं तेरे पुरखों का परमेश्‍वर हूँ, अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर।’+ यह सुनकर मूसा काँपने लगा और उसने और आगे जाकर देखने की हिम्मत नहीं की। 33  यहोवा* ने उससे कहा, ‘तू अपने पाँवों की जूतियाँ उतार दे क्योंकि जिस ज़मीन पर तू खड़ा है वह पवित्र है। 34  बेशक मैंने देखा है कि मिस्र में मेरे लोगों पर कितने ज़ुल्म किए जा रहे हैं और मैंने उनका कराहना सुना है।+ मैं उन्हें छुड़ाने के लिए नीचे आया हूँ। अब आ, मैं तुझे मिस्र भेजूँगा।’ 35  जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया था, ‘तुझे किसने हमारा अधिकारी और न्यायी ठहराया है?’+ उसी को परमेश्‍वर ने अधिकारी और छुड़ानेवाला ठहराकर उस स्वर्गदूत के ज़रिए भेजा,+ जो कँटीली झाड़ी में उसे दिखायी दिया था। 36  इसी मूसा ने उन्हें मिस्र और लाल सागर+ में चमत्कार और आश्‍चर्य के काम दिखाए+ और उन्हें वहाँ से निकाल लाया।+ उसने 40 साल वीराने में भी ऐसे आश्‍चर्य के काम किए।+ 37  यह वही मूसा है जिसने इसराएलियों से कहा था, ‘परमेश्‍वर तुम्हारे भाइयों के बीच में से तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यवक्‍ता खड़ा करेगा।’+ 38  यह वही मूसा है जो वीराने में इसराएल की मंडली के बीच था और उस स्वर्गदूत के साथ था,+ जिसने सीनै पहाड़ पर उससे बात की थी।+ मूसा ने ही हमारे पुरखों से बात की थी और जीवित और पवित्र वचन पाए थे ताकि हम तक पहुँचाए।+ 39  हमारे पुरखों ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया और उसे ठुकरा दिया+ और वे मन-ही-मन मिस्र लौटने के सपने देखने लगे।+ 40  और उन्होंने हारून से कहा, ‘पता नहीं उस मूसा का क्या हुआ, जो हमें मिस्र से निकालकर यहाँ ले आया था। इसलिए अब हमारे लिए देवता बना कि वे हमारी अगुवाई करें।’+ 41  फिर उन्होंने बछड़े की एक मूरत बनायी और उस मूरत के आगे बलि चढ़ायी और अपने हाथों से बनायी उस मूरत के सामने मौज-मस्ती करने लगे।+ 42  इसलिए परमेश्‍वर ने उनसे मुँह फेर लिया और उन्हें आकाश की सेना को पूजने के लिए छोड़ दिया,+ ठीक जैसा भविष्यवक्‍ताओं की किताब में लिखा है, ‘हे इसराएल के घराने, वीराने में उन 40 सालों के दौरान क्या तूने बलिदान और चढ़ावे मुझे ही दिए थे? 43  नहीं, बल्कि तुम मोलोक के तंबू+ और रिफान देवता के तारे की मूरत लिए फिरते रहे, जिन्हें तुमने इसलिए बनाया था कि तुम उनकी पूजा करो। इसलिए मैं तुम्हें देश से निकालकर बैबिलोन के उस पार भेज दूँगा।’+ 44  हमारे पुरखों के पास वीराने में गवाही का तंबू था, जिसके बारे में परमेश्‍वर ने मूसा को आदेश दिए थे कि उसे जो नमूना दिखाया गया है, उसी के मुताबिक वह तंबू बनाए।+ 45  यह हमारे पुरखों को दिया गया और वे इसे यहोशू के साथ इस देश में ले आए, जिस पर दूसरी जातियों का कब्ज़ा था+ और जिन्हें परमेश्‍वर ने हमारे पुरखों के सामने से खदेड़ दिया था।+ गवाही का यह तंबू दाविद के दिनों तक यहीं रहा। 46  दाविद पर परमेश्‍वर की कृपा थी और उसने बिनती की कि उसे याकूब के परमेश्‍वर के निवास के लिए एक भवन बनाने का मौका दिया जाए।+ 47  मगर उसने नहीं बल्कि सुलैमान ने यह भवन बनाया।+ 48  फिर भी, परम-प्रधान परमेश्‍वर हाथ के बनाए भवनों में नहीं रहता,+ ठीक जैसे एक भविष्यवक्‍ता ने बताया था, 49  ‘यहोवा* कहता है, स्वर्ग मेरी राजगद्दी है+ और पृथ्वी मेरे पाँवों की चौकी।+ तो फिर तुम मेरे लिए कैसा भवन बनाओगे? मेरे रहने के लिए कहाँ जगह बनाओगे? 50  क्या मेरे ही हाथों ने इन सब चीज़ों को नहीं रचा?’+ 51  अरे ढीठ लोगो, तुमने अपने कान और अपने दिल के दरवाज़े बंद कर रखे हैं। तुम हमेशा से पवित्र शक्‍ति का विरोध करते आए हो। तुम वही करते हो जो तुम्हारे बाप-दादा करते थे।+ 52  ऐसा कौन-सा भविष्यवक्‍ता हुआ है जिस पर तुम्हारे पुरखों ने ज़ुल्म नहीं ढाए?+ हाँ, उन्होंने उन लोगों को मार डाला जिन्होंने पहले से उस नेक जन के आने का ऐलान किया था।+ और अब तुमने भी उसके साथ विश्‍वासघात किया और उसका खून कर दिया।+ 53  हाँ तुमने ही ऐसा किया। तुम्हें स्वर्गदूतों के ज़रिए पहुँचाया गया कानून मिला,+ मगर तुम उस पर नहीं चले।” 54  जब उन्होंने ये बातें सुनीं, तो वे तिलमिला उठे और उस पर दाँत पीसने लगे। 55  मगर उसने पवित्र शक्‍ति से भरकर स्वर्ग की तरफ एकटक देखा और उसे परमेश्‍वर की महिमा दिखायी दी और उसने यीशु को परमेश्‍वर के दाएँ हाथ खड़े देखा+ 56  और कहा, “देखो! मैं स्वर्ग को खुला हुआ और इंसान के बेटे+ को परमेश्‍वर के दाएँ हाथ+ खड़ा देख रहा हूँ।” 57  यह सुनते ही वे चीख उठे और हाथों से अपने कान बंद कर लिए और सब मिलकर उस पर लपक पड़े। 58  और उसे खदेड़कर शहर के बाहर ले गए और पत्थरों से मारने लगे।+ स्तिफनुस के खिलाफ झूठी गवाही देनेवालों+ ने अपने चोगे उतारकर शाऊल नाम के एक नौजवान के पाँवों के पास रख दिए।+ 59  जब वे स्तिफनुस को पत्थर मार रहे थे, तो उसने यह प्रार्थना की, “हे प्रभु यीशु, मैं अपनी जान* तेरे हवाले करता हूँ।” 60  फिर उसने घुटने टेककर बड़ी ज़ोर से पुकारा, “यहोवा,* यह पाप इनके सिर मत लगाना।”+ यह कहने के बाद वह मौत की नींद सो गया।

कई फुटनोट

या “बुरा सलूक करेंगे।”
या “कुलपिता।”
या शायद, “उसी तरह याकूब का खतना किया।”
या “अनाज।”
या “परमेश्‍वर की नज़र में सुंदर।”
या “दूध पिलाया।”
या “उसने फैसला किया।”
या “का हाल देख आए।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
अति. क5 देखें।