भजन 106:1-48

  • इसराएल ने कदर नहीं की

    • जल्द ही परमेश्‍वर के काम भूल गए (13)

    • परमेश्‍वर के बजाय बैल की मूरत की महिमा की (19, 20)

    • उन्हें परमेश्‍वर के वादे पर विश्‍वास नहीं था (24)

    • वे बाल की उपासना करने लगे (28)

    • दुष्ट स्वर्गदूतों के लिए बच्चों की बलि की (37)

106  याह की तारीफ करो!* यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि वह भला है,+उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+   कौन यहोवा के शक्‍तिशाली कामों का पूरी तरह ऐलान कर सकता है?कौन उसके सभी कामों का बखान कर सकता है जो तारीफ के काबिल हैं?+   सुखी हैं वे जो सही काम करते हैं,+हमेशा नेक काम करते हैं।   हे यहोवा, जब तू अपने लोगों पर कृपा करे* तो मुझे याद करना।+ मेरा खयाल रखना और मुझे बचा लेना   ताकि तू अपने चुने हुओं+ के साथ जो भलाई करता है, उसका मैं आनंद उठाऊँ,तेरे राष्ट्र के साथ मिलकर खुशियाँ मनाऊँ,तेरी विरासत के साथ मिलकर गर्व से तेरी तारीफ करूँ।   हमने भी अपने पुरखों की तरह पाप किया है,+हमने गलत किया है, दुष्टता की है।+   मिस्र में हमारे पुरखों ने तेरे आश्‍चर्य के कामों की कदर नहीं की।* तेरा भरपूर अटल प्यार याद नहीं रखाऔर लाल सागर के पास बगावत की।+   मगर उसने अपने नाम की खातिर उन्हें बचाया+ताकि अपनी महाशक्‍ति दिखाए।+   उसने लाल सागर को डाँटा और वह सूख गया,वह उन्हें उसकी गहराइयों से ले गया मानो वह रेगिस्तान* हो,+ 10  उसने उन्हें दुश्‍मन के हाथ से बचाया,+बैरी के हाथ से छुड़ा लिया।+ 11  समुंदर ने उनके दुश्‍मनों को डुबा दिया,उनमें से एक भी ज़िंदा नहीं बचा।+ 12  तब उन्होंने उसके वादे पर विश्‍वास किया,+वे उसकी तारीफ में गीत गाने लगे।+ 13  मगर फिर वे जल्द ही उसके काम भूल गए,+उन्होंने उसके निर्देशों का इंतज़ार नहीं किया। 14  वीराने में वे अपनी स्वार्थी इच्छाओं के आगे झुक गए,+सूखे इलाके में उन्होंने परमेश्‍वर की परीक्षा ली।+ 15  उन्होंने जो माँगा, वह उसने दिया,मगर फिर उन्हें बीमारी से ऐसा मारा कि वे नाश हो गए।+ 16  छावनी में वे मूसा से जलने लगेऔर यहोवा के पवित्र जन+ हारून+ से जलने लगे। 17  फिर धरती ने मुँह खोला और दातान को निगल लियाऔर अबीराम के दल को अपने अंदर समेट लिया।+ 18  उनकी टोली में आग भड़क उठी,एक ज्वाला ने दुष्टों को भस्म कर दिया।+ 19  उन्होंने होरेब में एक बछड़ा बनाया,धातु की मूरत* के आगे दंडवत किया।+ 20  उन्होंने मेरी महिमा करने के बजाय,घास खानेवाले बैल की मूरत की महिमा की।+ 21  वे अपने उद्धारकर्ता परमेश्‍वर को भूल गए,+जिसने मिस्र में बड़े-बड़े काम किए थे,+ 22  हाम के देश में आश्‍चर्य के काम किए थे,+लाल सागर के पास विस्मयकारी काम किए थे।+ 23  वह उन्हें मिटाने की आज्ञा देने ही वाला थाकि तभी उसके चुने हुए जन मूसा ने उससे फरियाद की*कि वह अपनी जलजलाहट शांत करे जो उन्हें नाश कर सकती थी।+ 24  फिर उन्होंने मनभावने देश को तुच्छ समझा,+उन्हें उसके वादे पर बिलकुल विश्‍वास नहीं था।+ 25  वे अपने तंबुओं में कुड़कुड़ाते रहे,+उन्होंने यहोवा की बात नहीं मानी।+ 26  इसलिए उसने अपना हाथ उठाकर शपथ खायीकि वह उन्हें वीराने में ढेर कर देगा,+ 27  उनके वंशजों को दूसरी जातियों के बीच ढेर कर देगा,अलग-अलग देशों में तितर-बितर कर देगा।+ 28  फिर वे पोर के बाल की उपासना में शामिल हो गए*+और मुरदों को अर्पित बलिदान* खाने लगे। 29  उन्होंने अपने कामों से उसका क्रोध भड़काया+और उनके बीच एक महामारी फैल गयी।+ 30  मगर जब फिनेहास ने आगे बढ़कर कदम उठाया,तो महामारी थम गयी।+ 31  इस वजह से उसे नेक समझा गया,पीढ़ी-पीढ़ी के लिए उसे नेक समझा गया।+ 32  उन्होंने मरीबा* के सोते के पास परमेश्‍वर का क्रोध भड़काया,उनकी वजह से मूसा के साथ बहुत बुरा हुआ।+ 33  उन्होंने मूसा के मन में कड़वाहट भर दीऔर वह बिना सोचे-समझे बोल पड़ा।+ 34  उन्होंने दूसरी जातियों को नहीं मिटाया,+जबकि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी।+ 35  इसके बजाय, वे उन जातियों से घुल-मिल गए+और उनके तौर-तरीके अपना लिए।*+ 36  वे उनकी मूरतों की सेवा करते रहे+और ये उनके लिए फंदा बन गयीं।+ 37  वे दुष्ट स्वर्गदूतों के लिए अपने बेटे-बेटियों का बलिदान चढ़ाते थे।+ 38  वे मासूमों का खून बहाते रहे,+अपने ही बेटे-बेटियों का खून बहाते रहे,जिन्हें वे कनान की मूरतों को बलिदान चढ़ाते थे+और सारा देश उनके बहाए खून से दूषित हो गया। 39  वे अपने कामों की वजह से अशुद्ध हो गए,ऐसे काम करके उन्होंने परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात किया।*+ 40  तब यहोवा का क्रोध अपने लोगों पर भड़क उठा,उसे अपनी विरासत से घिन होने लगी। 41  वह बार-बार उन्हें दूसरे राष्ट्रों के हवाले करता रहा+ताकि उनसे नफरत करनेवाले उन पर राज करें।+ 42  उनके दुश्‍मनों ने उन पर ज़ुल्म किया,उनकी ताकत के आगे उन्हें झुकना पड़ा।* 43  कितनी ही बार उसने उन्हें छुड़ाया था,+मगर हर बार वे उससे बगावत करते, उसकी आज्ञा तोड़ते,+उनके गुनाहों की वजह से उन्हें नीचा किया जाता।+ 44  मगर वह उन्हें संकट में पड़ा देखता+और उनकी मदद की पुकार सुनता।+ 45  उनकी खातिर वह अपना करार याद करता,उसका महान* अटल प्यार उसे उभारता और वह उन पर तरस खाता।*+ 46  जो उन्हें बंदी बना लेते थे,उन्हें वह उभारता कि वे उन पर तरस खाएँ।+ 47  हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, हमें बचा ले+और राष्ट्रों के बीच से हमें इकट्ठा कर ले+ताकि हम तेरे पवित्र नाम की तारीफ करेंऔर तेरी तारीफ करने में बहुत खुशी पाएँ।+ 48  इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की युग-युग तक* तारीफ होती रहे।+ और सब लोग कहें, “आमीन!”* याह की तारीफ करो!*

कई फुटनोट

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।
या “को मंज़ूरी दे।”
या “के मायने नहीं समझे।”
या “वीराना।”
या “ढली हुई मूरत।”
शा., “उसके सामने दरार में खड़ा हुआ।”
यानी ऐसे बलिदान जो मरे हुओं को या फिर बेजान मूरतों को चढ़ाए गए थे।
या “से खुद को जोड़ लिया।”
मतलब “झगड़ा करना।”
या “सीख लिए।”
या “उन्होंने वेश्‍याओं जैसी बदचलनी की।”
शा., “वे उनके हाथ तले दब गए।”
या “भरपूर।”
या “पछतावा महसूस करता।”
या “हमेशा से हमेशा तक।”
या “ऐसा ही हो!”
या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।