भजन 18:1-50

  • उद्धार के लिए परमेश्‍वर की तारीफ करना

    • “यहोवा मेरे लिए बड़ी चट्टान” है (2)

    • वफादार के साथ वफादारी निभाता है (25)

    • परमेश्‍वर का काम खरा है (30)

    • “तेरी नम्रता मुझे ऊँचा उठाती है” (35)

निर्देशक के लिए हिदायत। यहोवा के सेवक दाविद का गीत। यह गीत उसने यहोवा के लिए तब गाया जब यहोवा ने उसे सभी दुश्‍मनों और शाऊल के हाथ से छुड़ाया था:+ 18  हे यहोवा, मेरी ताकत,+ मैं तुझसे गहरा लगाव रखता हूँ।   यहोवा मेरे लिए बड़ी चट्टान और मज़बूत गढ़ है, वही मेरा छुड़ानेवाला है।+ मेरा परमेश्‍वर मेरी चट्टान है+ जिसकी मैं पनाह लेता हूँ,वह मेरी ढाल और मेरा उद्धार का सींग* है, मेरा ऊँचा गढ़ है।+   मैं यहोवा को पुकारता हूँ जो तारीफ के काबिल हैऔर मुझे दुश्‍मनों से बचाया जाएगा।+   मौत के रस्सों ने मुझे कस लिया,+निकम्मे आदमियों ने अचानक आनेवाली बाढ़ की तरह मुझे डरा दिया।+   कब्र के रस्सों ने मुझे घेर लिया,मेरे सामने मौत के फंदे बिछाए गए।+   मुसीबत में मैंने यहोवा को पुकारा,मदद के लिए मैं अपने परमेश्‍वर को पुकारता रहा। अपने मंदिर से उसने मेरी सुनी,+मेरी मदद की पुकार उसके कानों तक पहुँची।+   तब धरती काँपने लगी, बुरी तरह डोलने लगी,+पहाड़ों की नींव हिल गयी,उनमें भयानक हलचल हुई क्योंकि उसका क्रोध भड़क उठा था।+   उसके नथनों से धुआँ उठने लगा,मुँह से भस्म करनेवाली आग निकलने लगी,+उसके पास से दहकते अंगारे बरसने लगे।   नीचे उतरते वक्‍त उसने आसमान झुका दिया,+काली घटाएँ उसके पैरों तले आ गयीं।+ 10  वह एक करूब पर सवार होकर उड़ता हुआ आया।+ वह एक स्वर्गदूत* के पंखों पर सवार होकर तेज़ी से नीचे आया।+ 11  फिर उसने अंधकार को ओढ़ लिया,+काली घनघोर घटाओं को अपना मंडप बनाया।+ 12  उसके सामने ऐसा तेज था कि बादल फट गए,उनसे ओले और धधकते अंगारे बरसने लगे। 13  फिर स्वर्ग में यहोवा गरजने लगा,+परम-प्रधान ने अपनी बुलंद आवाज़ सुनायी,+तब ओले और धधकते अंगारे बरसने लगे। 14  उसने तीर चलाकर उन्हें तितर-बितर कर दिया,+बिजली गिराकर उनमें खलबली मचा दी।+ 15  हे यहोवा, जब तूने डाँट लगायी और तेरे नथनों से फुंकार निकली,तो नदियों के तल नज़र आने लगे,+धरती की बुनियाद तक दिखने लगी।+ 16  उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया,गहरे पानी से खींचकर बाहर निकाल लिया।+ 17  उसने मुझे ताकतवर दुश्‍मन से छुड़ाया,+उन लोगों से जो मुझसे नफरत करते थे, मुझसे ज़्यादा ताकतवर थे।+ 18  वे मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर टूट पड़े,+लेकिन यहोवा मेरा सहारा था। 19  वह मुझे निकालकर एक महफूज़* जगह ले आया,उसने मुझे दुश्‍मनों से छुड़ाया क्योंकि वह मुझसे खुश था।+ 20  यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल देता है,+मेरी बेगुनाही* के मुताबिक इनाम देता है।+ 21  क्योंकि मैं हमेशा यहोवा की राहों पर चलता रहा,मैंने अपने परमेश्‍वर से दूर जाने की दुष्टता नहीं की। 22  उसके सभी न्याय-सिद्धांत मेरे सामने हैं,मैं कभी उसकी विधियों को नज़रअंदाज़ नहीं करूँगा। 23  मैं उसकी नज़रों में निर्दोष बना रहूँगा,+मैं हमेशा खुद को बुराई से दूर रखूँगा।+ 24  यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल दे,+मेरी बेगुनाही के मुताबिक इनाम दे जो उसने अपनी आँखों से देखी है।+ 25  जो वफादार रहता है उसके साथ तू वफादारी निभाता है,+जो सीधा है उसके साथ तू सीधाई से पेश आता है,+ 26  जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है,+मगर जो टेढ़ी चाल चलता है उसके साथ तू होशियारी से काम लेता है।+ 27  क्योंकि तू दीनों* को बचाता है,+लेकिन मगरूरों को नीचे गिराता है।*+ 28  हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक जलाता है,मेरा परमेश्‍वर, जो मेरे अँधेरे को उजाला करता है।+ 29  तेरी मदद से मैं लुटेरे-दल का मुकाबला कर सकता हूँ,+परमेश्‍वर की ताकत से मैं दीवार लाँघ सकता हूँ।+ 30  सच्चे परमेश्‍वर का काम खरा* है,+यहोवा का वचन पूरी तरह शुद्ध है।+ वह उसकी पनाह लेनेवालों के लिए एक ढाल है।+ 31  यहोवा को छोड़ और कौन परमेश्‍वर है?+ हमारे परमेश्‍वर के सिवा और कौन चट्टान है?+ 32  सच्चा परमेश्‍वर ही मुझे ताकत देता है,+वह मेरे लिए सीधी* राह निकालेगा।+ 33  वह मेरे पैरों को हिरन के पैरों जैसा बनाता है,मुझे ऊँची-ऊँची जगहों पर खड़ा करता है।+ 34  वह मेरे हाथों को युद्ध का कौशल सिखाता है,मेरे बाज़ू ताँबे की कमान मोड़ सकते हैं। 35  तू मुझे अपनी उद्धार की ढाल देता है,+तेरा दायाँ हाथ मुझे थाम लेता* हैऔर तेरी नम्रता मुझे ऊँचा उठाती है।+ 36  तू मेरे कदमों के लिए रास्ता चौड़ा करता है,मेरे पैर* नहीं फिसलेंगे।+ 37  मैं अपने दुश्‍मनों का पीछा करूँगा और उन्हें पकड़ लूँगा,मैं उन्हें मिटाकर ही लौटूँगा। 38  मैं उन्हें ऐसे कुचल दूँगा कि वे उठ नहीं पाएँगे,+वे मेरे पैरों तले गिर जाएँगे। 39  तू मुझे ताकत देकर युद्ध के काबिल बनाएगा,मेरे दुश्‍मनों को मेरे कदमों के नीचे कर देगा।+ 40  तू मेरे दुश्‍मनों को मुझसे दूर भागने पर मजबूर करेगा,*मुझसे नफरत करनेवालों का मैं अंत कर दूँगा।+ 41  वे मदद के लिए पुकारते हैं, मगर उन्हें बचानेवाला कोई नहीं,वे यहोवा को भी पुकारते हैं, मगर वह उन्हें जवाब नहीं देता। 42  मैं उन्हें कूटकर ऐसी धूल बना दूँगा जिसे हवा उड़ा ले जाती है,उन्हें गलियों के कीचड़ की तरह बाहर फेंक दूँगा। 43  तू मुझे मेरे अपने लोगों के विरोध से भी बचाएगा।+ मुझे राष्ट्रों का मुखिया बनाएगा।+ जिन लोगों को मैं जानता तक नहीं वे मेरी सेवा करेंगे।+ 44  परदेसी मेरे बारे में बस एक खबर सुनकर मेरी आज्ञा मानेंगे,डरते-काँपते मेरे सामने आएँगे।+ 45  परदेसी हिम्मत हार जाएँगे,*अपने किलों से थरथराते हुए बाहर निकलेंगे। 46  यहोवा जीवित परमेश्‍वर है! मेरी चट्टान की तारीफ हो!+ मेरे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की बड़ाई हो!+ 47  सच्चा परमेश्‍वर मेरी तरफ से बदला लेता है,+देश-देश के लोगों को मेरे अधीन कर देता है। 48  वह मुझे भड़के हुए दुश्‍मनों से छुड़ाता है।तू मुझे मेरे हमलावरों से ऊँचा उठाता है,+मुझे ज़ुल्मी के हाथ से बचाता है। 49  इसीलिए हे यहोवा, मैं राष्ट्रों के बीच तेरी महिमा करूँगा,+तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+ 50  परमेश्‍वर शानदार तरीके से अपने राजा का उद्धार करता है,*+वह अपने अभिषिक्‍त जन से,+दाविद और उसके वंश से सदा प्यार* करता है।+

कई फुटनोट

या “मेरा ताकतवर उद्धारकर्ता।” शब्दावली देखें।
या “हवा।”
या “खुली।”
शा., “मेरे हाथों की शुद्धता।”
शा., “घमंड भरी आँखों को नीची करता है।”
या “सताए हुओं।”
या “परिपूर्ण।”
या “परिपूर्ण।”
या “सँभालता।”
या “टखने।”
या “तू मुझे मेरे दुश्‍मनों की पीठ दे देगा।”
या “मुरझा जाएँगे।”
या “संगीत बजाऊँगा।”
या “परमेश्‍वर अपने राजा के लिए बड़ी-बड़ी जीत दिलाता है।”
या “अटल प्यार।”