भजन 27:1-14

  • यहोवा, मेरे जीवन का मज़बूत गढ़

    • परमेश्‍वर के मंदिर के लिए कदर (4)

    • यहोवा परवाह करता है, फिर चाहे माता-पिता न करें (10)

    • “यहोवा पर आशा रख” (14)

दाविद की रचना। 27  यहोवा मेरा प्रकाश+ और मेरा उद्धारकर्ता है। फिर मुझे डर किसका?+ यहोवा मेरे जीवन का मज़बूत गढ़ है।+ फिर मैं किसी से क्यों खौफ खाऊँ?   दुष्ट मुझे फाड़ खाने के लिए मुझ पर टूट पड़े,+मगर मेरे बैरी और दुश्‍मन खुद लड़खड़ाकर गिर पड़े।   चाहे कोई सेना मेरे खिलाफ छावनी डाले,तब भी मेरा दिल नहीं डरेगा।+ चाहे मेरे खिलाफ युद्ध छिड़ जाए,तब भी मेरा भरोसा अटल रहेगा।   मैंने यहोवा से सिर्फ एक चीज़ माँगी है,यही मेरी दिली तमन्‍ना हैकि मैं सारी ज़िंदगी यहोवा के भवन में निवास करूँ+ताकि यहोवा की मनोहरता निहार सकूँऔर उसके मंदिर* को एहसान-भरे दिल से* देखता रहूँ।+   क्योंकि संकट के दिन वह मुझे अपने आसरे में छिपा लेगा,+अपनी गुप्त जगह में, अपने तंबू में छिपा लेगा,+वह मुझे ऊँची चट्टान पर चढ़ा देगा।+   अब मेरा सिर दुश्‍मनों से ऊँचा हो गया है जो मुझे घेरे हुए हैं,मैं परमेश्‍वर के तंबू में खुशी से जयजयकार करते हुए बलिदान चढ़ाऊँगा,यहोवा की तारीफ में गीत गाऊँगा।*   हे यहोवा, जब मैं पुकारूँ तो मेरी सुनना,+मुझ पर कृपा करना और मुझे जवाब देना।+   मेरे मन ने कहा है कि तूने यह आज्ञा दी है,“मेरी मंज़ूरी पाने के लिए मेहनत करता रह।” हे यहोवा, मैंने तेरी मंज़ूरी पाने की ठान ली है।+   मुझसे मुँह न फेर लेना,+न ही गुस्से में आकर अपने सेवक को ठुकरा देना। तू मेरा मददगार है,+मेरा उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर, मुझे त्याग न देना, मुझे छोड़ न देना। 10  चाहे मेरे माता-पिता मुझे छोड़ दें,+फिर भी यहोवा मुझे अपना लेगा।+ 11  हे यहोवा, मुझे अपनी राह सिखा,+दुश्‍मनों से बचाने के लिए मुझे सीधाई की राह पर ले चल। 12  मुझे मेरे बैरियों के हवाले न कर,+क्योंकि मेरे खिलाफ झूठे गवाह उठ खड़े हुए हैं,+वे मुझे मारने-पीटने की धमकी देते हैं। 13  अगर मुझे विश्‍वास न होता कि यहोवा मेरे जीते-जी* भलाई करेगा,तो न जाने मेरा क्या होता!*+ 14  यहोवा पर आशा रख,+हिम्मत से काम ले, अपना दिल मज़बूत रख।+ हाँ, यहोवा पर आशा रख।

कई फुटनोट

या “पवित्र-स्थान।”
या “ध्यान करते हुए।”
या “संगीत बजाऊँगा।”
शा., “जीवितों के देश में।”
या शायद, “बेशक, मुझे विश्‍वास है कि मैं जीते-जी यहोवा की भलाई देखूँगा।”