भजन 32:1-11

  • सुखी हैं वे जो माफी पाते हैं

    • ‘मैंने अपना पाप मान लिया’ (5)

    • परमेश्‍वर तुझे अंदरूनी समझ देता है (8)

दाविद की रचना। मश्‍कील।* 32  सुखी है वह इंसान जिसका अपराध माफ किया गया है, जिसका पाप ढाँप दिया गया है।*+   सुखी है वह इंसान जिसे यहोवा दोषी नहीं ठहराता,+जिसके मन में कपट नहीं होता।   जब मैं चुप रहा तो मैं दिन-भर कराहता रहा जिससे मेरी हड्डियाँ गलने लगीं।+   क्योंकि दिन-रात तेरा हाथ* मुझ पर भारी था।+ मेरा दमखम ऐसे खत्म हो गया* जैसे गरमियों की कड़ी धूप से पानी सूख जाता है। (सेला )   आखिरकार, मैंने तेरे सामने अपना पाप मान लिया,मैंने अपना गुनाह और नहीं छिपाया।+ मैंने कहा, “मैं यहोवा के सामने अपने अपराध मान लूँगा।”+ तब तूने मेरे पाप, मेरे गुनाह माफ कर दिए।+ (सेला )   इसीलिए जब तक तुझे पाना मुमकिन है,तब तक हर वफादार जन तुझसे प्रार्थना करेगा।+ फिर सैलाब भी उस तक नहीं पहुँचेगा।   तू मेरे लिए छिपने की जगह है,तू मुसीबत से मेरी हिफाज़त करेगा।+ तू मुझे छुड़ाकर मेरे चारों ओर खुशियों का समाँ बाँध देगा।+ (सेला )   तूने कहा है, “मैं तुझे अंदरूनी समझ दूँगा,उस राह पर चलना सिखाऊँगा जिस पर तुझे चलना चाहिए।+ मैं तुझ पर हर पल नज़र रखकर तुझे सलाह दूँगा।+   तू घोड़े या खच्चर की तरह न बनना जिसमें समझ नहीं होती,+जिसकी उमंग को लगाम या रस्सी से काबू करना पड़ता है,तभी वह तेरे पास आएगा।” 10  दुष्ट की तकलीफें बेहिसाब होती हैं,मगर यहोवा पर भरोसा रखनेवाला उसके अटल प्यार से घिरा रहता है।+ 11  नेक लोगो, यहोवा के कारण मगन हो, आनंद मनाओ,सीधे-सच्चे मनवालो, सब खुशी से जयजयकार करो।

कई फुटनोट

शब्दावली देखें।
या “माफ किया गया है।”
या “तेरी नाराज़गी।”
या “मेरे जीवन की नमी ऐसे खत्म हो गयी।”