भजन 69:1-36

  • बचाव के लिए प्रार्थना

    • “तेरे भवन के लिए जोश की आग ने मुझे भस्म कर दिया है” (9)

    • “फौरन मेरी पुकार सुन ले” (17)

    • ‘उन्होंने मुझे सिरका दिया’ (21)

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “सोसन के फूलों” के मुताबिक। 69  हे परमेश्‍वर, मुझे बचा ले क्योंकि मैं पानी में डूबा जा रहा हूँ।+   मैं गहरे दलदल में धँस गया हूँ जहाँ ठोस ज़मीन नहीं है।+ मैं गहरे पानी में डूब रहा हूँ,तेज़ धारा मुझे बहा ले जा रही है।+   मदद की पुकार लगाते-लगाते मैं पस्त हो गया हूँ,+मेरा गला बैठ गया है। अपने परमेश्‍वर की राह देखते-देखते मेरी आँखें पथरा गयी हैं।+   जो मुझसे बेवजह नफरत करते हैं,+उनकी गिनती मेरे सिर के बालों से कहीं ज़्यादा है। मेरे कपटी दुश्‍मन* जो मुझे मिटाने पर तुले हैं,उनकी गिनती बेशुमार हो गयी है। मैंने जो चुराया नहीं वह भी मुझे देना पड़ा।   हे परमेश्‍वर, तू मेरी मूर्खता अच्छी तरह जानता है,मेरा दोष तुझसे छिपा नहीं है।   हे सारे जहान के मालिक, सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा,तुझ पर आशा रखनेवालों को मेरी वजह से शर्मिंदा न होना पड़े। हे इसराएल के परमेश्‍वर, तेरी खोज करनेवालों को मेरी वजह से बेइज़्ज़त न होना पड़े।   मैं तेरी खातिर बदनामी झेल रहा हूँ,+मुझे बुरी तरह शर्मिंदा किया गया है।+   मैं अपने भाइयों के लिए अजनबी हो गया हूँ,अपने सगे भाइयों के लिए पराया हो गया हूँ।+   तेरे भवन के लिए जोश की आग ने मुझे भस्म कर दिया है,+जो तेरी निंदा करते हैं, उनकी निंदा-भरी बातें मुझ पर आ पड़ी हैं।+ 10  जब मैंने उपवास करके खुद को दीन किया*तो मेरा अपमान किया गया। 11  जब मैंने टाट ओढ़ा,तो मेरी खिल्ली उड़ायी गयी।* 12  शहर के फाटक पर बैठनेवाले मेरे बारे में बात करते हैं,शराबी मेरे बारे में गीत बनाते हैं। 13  मगर हे यहोवा, तू सही वक्‍त पर मेरी प्रार्थना कबूल करना।+ हे परमेश्‍वर, तू अटल प्यार से भरपूर है और सच्चा उद्धारकर्ता है,इसलिए मेरी प्रार्थना का जवाब दे।+ 14  मुझे दलदल से निकाल लेताकि मैं अंदर धँस न जाऊँ। मुझसे नफरत करनेवालों से मुझे छुड़ा ले,गहरे पानी में डूबने से मुझे बचा ले।+ 15  तेज़ धाराओं को मुझे बहाकर ले जाने न दे,+गहरे पानी को मुझे निगलने न दे,कुएँ* को मुझे अपने अंदर खींचने न दे।+ 16  हे यहोवा, मुझे जवाब दे क्योंकि तेरा अटल प्यार बहुत गहरा है।+ तू बड़ा दयालु है, मुझ पर ध्यान दे,+ 17  अपने सेवक से मुँह न फेर।+ मैं बड़े संकट में हूँ, फौरन मेरी पुकार सुन ले।+ 18  मेरे पास आ, मुझे छुड़ा ले,दुश्‍मनों से मुझे बचा ले। 19  तू जानता है कि मुझे कैसे बदनाम किया गया है,मुझे शर्मिंदा और बेइज़्ज़त किया गया है।+ तू मेरे सब दुश्‍मनों को देखता है। 20  घोर अपमान सहते-सहते मेरा दिल टूट गया है, अब यह घाव भर नहीं सकता।* मैंने हमदर्दी की उम्मीद लगायी मगर कहीं न मिली,+दिलासा देनेवालों की आस लगायी पर कोई न मिला।+ 21  उन्होंने मुझे खाने के नाम पर ज़हर* दिया,+प्यास बुझाने के लिए सिरका दिया।+ 22  उनकी मेज़ उनके लिए फंदा बन जाए,उनकी खुशहाली उनके लिए जाल बन जाए।+ 23  उनकी आँखों के आगे अँधेरा छा जाए ताकि वे देख न सकें,उनके पैर* हमेशा कँपकँपाते रहें। 24  उन पर अपनी जलजलाहट* उँडेल दे,तेरे क्रोध की आग उन्हें भस्म कर दे।+ 25  उनकी छावनी* उजड़ जाए,उनके तंबू सुनसान हो जाएँ।+ 26  क्योंकि वे उसका पीछा करते हैं जिसे तूने मारा है,उनके दुखों के बारे में गपशप करते हैं जिन्हें तूने घायल किया है। 27  उनका दोष और बढ़ा देऔर वे तेरी नज़र में नेक न माने जाएँ। 28  जीवन की किताब से उनका नाम मिटा दिया जाए,+उनका नाम नेक लोगों के साथ न लिखा जाए।+ 29  मैं सताया जा रहा हूँ, दर्द से बेहाल हूँ।+ हे परमेश्‍वर, तुझमें उद्धार करने की शक्‍ति है, मेरी रक्षा कर। 30  मैं परमेश्‍वर के नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा,उसका शुक्रिया अदा करते हुए उसकी महिमा करूँगा। 31  यह यहोवा को बैल के बलिदान से ज़्यादा भाएगा,सींग और खुरवाले बैल के बलिदान से ज़्यादा।+ 32  दीन लोग इसे देखेंगे और आनंद मनाएँगे। परमेश्‍वर की खोज करनेवालो, तुम्हारे दिल फिर से मज़बूत हो जाएँ। 33  क्योंकि यहोवा गरीबों की सुनता है,+अपने लोगों को जो बंदी हैं, तुच्छ नहीं समझेगा।+ 34  धरती और अंबर उसकी तारीफ करें,+समुंदर और उसमें तैरती हर चीज़ उसकी तारीफ करे। 35  क्योंकि परमेश्‍वर सिय्योन को बचाएगा+और यहूदा के शहरों को फिर बसाएगा,वे वहाँ बसेंगे और उस पर* अधिकार पाएँगे। 36  उसके सेवकों के वंशज उसके वारिस होंगे,+उसके नाम से प्यार करनेवाले उसमें बसेंगे।+

कई फुटनोट

या “बेवजह मुझसे दुश्‍मनी करनेवाले।”
या शायद, “जब मैंने रो-रोकर उपवास किया।”
शा., “मैं उनके लिए एक कहावत बन गया।”
या “गड्‌ढे।”
या “अब मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं बची।”
या “एक ज़हरीला पौधा।”
या “कमर।”
या “अपना क्रोध।”
या “दीवारों से घिरी छावनी।”
यानी देश पर।