भजन 95:1-11

  • सच्ची उपासना के साथ आज्ञा मानना

    • “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो” (7)

    • “अपना दिल कठोर मत करना” (8)

    • “ये मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे” (11)

95  आओ, हम खुशी से यहोवा की जयजयकार करें! अपने उद्धार की चट्टान के लिए जीत के नारे लगाएँ।+   आओ, हम उसकी मौजूदगी में* जाएँ, उसका धन्यवाद करें,+उसके लिए गीत गाएँ, जीत के नारे लगाएँ।   क्योंकि यहोवा महान परमेश्‍वर है,सभी देवताओं से भी बड़ा महान राजा है।+   पृथ्वी की गहराइयाँ उसके हाथ में हैं,पहाड़ों की चोटियाँ उसी की हैं।+   उसका बनाया सागर उसी का है,+सूखी ज़मीन उसने अपने हाथों से बनायी।+   आओ हम उसकी उपासना करें, उसे दंडवत करें,अपने बनानेवाले यहोवा के सामने घुटने टेकें।+   क्योंकि वह हमारा परमेश्‍वर हैऔर हम उसके लोग हैं जिनकी वह चरवाही करता है,हम उसकी भेड़ें हैं जिनकी वह देखभाल करता है।*+ आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो,+   तो अपना दिल कठोर मत करना,जैसे तुम्हारे पुरखों ने मरीबा* में किया था,+वीराने में मस्सा* के दिन किया था।+   उन्होंने मेरी परीक्षा ली थी,+मुझे चुनौती दी थी, इसके बावजूद कि उन्होंने मेरे काम देखे थे।+ 10  मैं 40 साल उस पीढ़ी से घिन करता रहा और मैंने कहा, “ये ऐसे लोग हैं जिनका दिल हमेशा भटक जाता है,इन्होंने मेरी राहों को नहीं जाना।” 11  इसलिए मैंने क्रोध में आकर शपथ खायी, “ये मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।”+

कई फुटनोट

शा., “उसके मुख के सामने।”
शा., “हम उसके हाथ की भेड़ें हैं।”
मतलब “झगड़ा करना।”
मतलब “परीक्षा लेना; आज़माइश।”