मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 10:1-42

  • 12 प्रेषित (1-4)

  • प्रचार की हिदायतें (5-15)

  • चेले सताए जाएँगे (16-25)

  • परमेश्‍वर से डरो, इंसान से नहीं (26-31)

  • शांति लाने नहीं, तलवार चलाने (32-39)

  • यीशु के चेलों को स्वीकार करना (40-42)

10  फिर यीशु ने अपने 12 चेलों को पास बुलाया और उन्हें दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार दिया+ ताकि वे उन्हें लोगों में से निकालें और हर तरह की बीमारी और शरीर की कमज़ोरी दूर करें।  इन 12 प्रेषितों के नाम ये हैं:+ पहला, शमौन जो पतरस+ कहलाता है और उसका भाई अन्द्रियास,+ फिर याकूब और यूहन्‍ना जो जब्दी के बेटे थे,+  फिलिप्पुस और बरतुलमै,+ थोमा+ और कर-वसूलनेवाला मत्ती,+ हलफई का बेटा याकूब और तद्दी,  जोशीला* शमौन और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में उसके साथ गद्दारी की।+  इन बारहों को यीशु ने ये आदेश देकर भेजा,+ “तुम गैर-यहूदियों के इलाके में या सामरिया के किसी शहर में मत जाना।+  इसके बजाय, सिर्फ इसराएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास जाना।+  तुम जहाँ-जहाँ जाओ वहाँ यह प्रचार करना, ‘स्वर्ग का राज पास आ गया है।’+  बीमारों को ठीक करो,+ मुरदों को ज़िंदा करो, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालो। तुम्हें मुफ्त मिला है, मुफ्त में दो।  अपने कमरबंद में न तो सोने के, न चाँदी के और न ही ताँबे के पैसे लेना।+ 10  न ही सफर के लिए खाने की पोटली या दो जोड़ी कपड़े या जूतियाँ या लाठी लेना+ क्योंकि काम करनेवाला भोजन पाने का हकदार है।+ 11  तुम जिस किसी शहर या गाँव में जाओ, तो अच्छी तरह ढूँढ़ो कि वहाँ कौन योग्य है और तब तक उसके यहाँ रहो, जब तक कि तुम उस इलाके से न निकलो।+ 12  जब तुम किसी घर में जाओ, तो घर के लोगों को नमस्कार करो। 13  अगर वह घराना योग्य है, तो वह शांति जिसकी तुमने दुआ की थी, उस पर बनी रहेगी।+ लेकिन अगर वह योग्य नहीं है, तो शांति तुम्हारे पास लौट आए। 14  अगर किसी घर या शहर में कोई तुम्हें स्वीकार नहीं करे या तुम्हारी नहीं सुने, तो वहाँ से बाहर निकलते वक्‍त अपने पैरों की धूल झाड़ देना।+ 15  मैं तुमसे सच कहता हूँ कि न्याय के दिन सदोम और अमोरा+ का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा। 16  देखो! मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच भेज रहा हूँ। इसलिए साँपों की तरह सतर्क रहो और कबूतरों की तरह सीधे बने रहो।+ 17  लोगों से सावधान रहो क्योंकि वे तुम्हें निचली अदालतों के हवाले कर देंगे+ और अपने सभा-घरों में तुम्हें कोड़े लगवाएँगे।+ 18  मेरी वजह से तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने पेश किया जाएगा+ ताकि उन्हें और गैर-यहूदियों को गवाही मिले।+ 19  मगर जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे, तो यह चिंता न करना कि तुम क्या कहोगे और कैसे कहोगे। जो तुम्हें बोलना है वह उस वक्‍त तुम जान जाओगे।+ 20  इसलिए कि तुम अपने आप नहीं बल्कि अपने पिता की पवित्र शक्‍ति की मदद से बोलोगे।+ 21  भाई, भाई को मरवाने के लिए सौंप देगा और पिता अपने बच्चों को। बच्चे अपने माँ-बाप के खिलाफ खड़े होंगे और उन्हें मरवा डालेंगे।+ 22  मेरे नाम की वजह से सब लोग तुमसे नफरत करेंगे।+ मगर जो अंत तक धीरज धरेगा,* वही उद्धार पाएगा।+ 23  जब वे एक शहर में तुम्हें सताएँ, तो दूसरे शहर में भाग जाना+ क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि तुम इसराएल के शहरों का दौरा पूरा भी न कर पाओगे कि इंसान का बेटा आ जाएगा। 24  चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं होता, न ही दास अपने मालिक से।+ 25  एक चेले का अपने गुरु जैसा और दास का अपने मालिक जैसा बनना ही बहुत है।+ जब लोगों ने घर के मालिक को ही बाल-ज़बूल* कहा है,+ तो उसके घर के लोगों को क्यों न कहेंगे? 26  इसलिए उनसे मत डरो क्योंकि ऐसा कुछ नहीं जो ढका गया हो और खोला न जाए और जिसे राज़ रखा गया हो और जाना न जाए।+ 27  जो मैं तुम्हें अँधेरे में बताता हूँ उसे उजाले में कहो और जो मैं तुमसे फुसफुसाकर कहता हूँ, उसका घर की छतों पर चढ़कर ऐलान करो।+ 28  उनसे मत डरो जो शरीर को नष्ट कर सकते हैं मगर जीवन को नहीं,*+ इसके बजाय उससे डरो जो जीवन और शरीर दोनों को गेहन्‍ना* में मिटा सकता है।+ 29  क्या एक पैसे में* दो चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? मगर उनमें से एक भी तुम्हारे पिता के जाने बगैर ज़मीन पर नहीं गिरती।+ 30  मगर तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है। 31  इसलिए मत डरो, तुम बहुत-सी चिड़ियों से कहीं ज़्यादा अनमोल हो।+ 32  तो फिर, जो कोई लोगों के सामने मुझे स्वीकार करता है,+ मैं भी स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के सामने उसे स्वीकार करूँगा।+ 33  मगर जो कोई लोगों के सामने मेरा इनकार करता है, मैं भी स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के सामने उसका इनकार कर दूँगा।+ 34  यह मत सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ, मैं शांति लाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ।+ 35  मैं बेटे को पिता के, बेटी को माँ के और बहू को उसकी सास के खिलाफ करने आया हूँ।+ 36  वाकई, एक आदमी के दुश्‍मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे। 37  जो मुझसे ज़्यादा अपने पिता या अपनी माँ से लगाव रखता है, वह मेरे लायक नहीं और जो मुझसे ज़्यादा अपने बेटे या अपनी बेटी से लगाव रखता है, वह मेरे लायक नहीं।+ 38  जो कोई अपना यातना का काठ* नहीं उठाना चाहता और मेरे पीछे नहीं चलता, वह मेरा चेला बनने के लायक नहीं।+ 39  जो अपनी जान बचाता है वह उसे खोएगा और जो मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वह उसे पाएगा।+ 40  जो तुम्हें स्वीकार करता है, वह मुझे भी स्वीकार करता है और जो मुझे स्वीकार करता है, वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।+ 41  जो किसी भविष्यवक्‍ता को इसलिए स्वीकार करता है कि वह भविष्यवक्‍ता है, उसे वही इनाम मिलेगा जो एक भविष्यवक्‍ता को मिलता है।+ और जो किसी नेक इंसान को इसलिए स्वीकार करता है कि वह नेक है, उसे वही इनाम मिलेगा जो एक नेक इंसान को मिलता है। 42  मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई इन छोटों में से किसी एक को मेरा चेला जानकर एक प्याला ठंडा पानी भी पिलाता है, वह अपना इनाम ज़रूर पाएगा।”+

कई फुटनोट

शा., “कनानानी।”
या “धरता है।”
शैतान को दिया एक नाम जो दुष्ट स्वर्गदूतों का राजा या शासक है।
या “जीवन पाने की उम्मीद नहीं छीन सकते।”
शब्दावली देखें।
शा., “एक असारियन में।” अति. ख14 देखें।
शब्दावली देखें।