मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 14:1-36

  • यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर काट दिया गया (1-12)

  • यीशु ने 5,000 को खिलाया (13-21)

  • यीशु पानी पर चलता है (22-33)

  • गन्‍नेसरत में चंगा करता है (34-36)

14  उस वक्‍त ज़िला-शासक हेरोदेस* ने यीशु के बारे में खबर सुनी।+  उसने अपने सेवकों से कहा, “यह बपतिस्मा देनेवाला यूहन्‍ना ही है, जो मर गया था पर अब उसे ज़िंदा कर दिया गया है। इसी वजह से वह शक्‍तिशाली काम कर रहा है।”+  हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास की वजह से यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर लिया था और ज़ंजीरों में बाँधकर जेल में डलवा दिया था।+  क्योंकि यूहन्‍ना हेरोदेस से कहा करता था, “तूने हेरोदियास को अपनी पत्नी बनाकर कानून तोड़ा है।”+  हेरोदेस यूहन्‍ना को मार डालना चाहता था, मगर लोगों से डरता था क्योंकि वे यूहन्‍ना को एक भविष्यवक्‍ता मानते थे।+  मगर हेरोदेस के जन्मदिन+ पर जब हेरोदियास की बेटी नाची, तो हेरोदेस इतना खुश हुआ+  कि उसने कसम खाकर वादा किया कि वह उससे जो माँगेगी, वह उसे दे देगा।  तब उसने अपनी माँ के सिखाने पर कहा, “तू मुझे यहीं एक थाल में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।”+  यह सुनकर राजा दुखी तो हुआ, फिर भी उसने जो कसमें खायी थीं और उसके साथ जो लोग बैठे थे,* उनकी वजह से उसने हुक्म दिया कि यूहन्‍ना का सिर लाकर उसे दे दिया जाए। 10  उसने आदमी भेजा और जेल में यूहन्‍ना का सिर कटवा दिया। 11  उसका सिर एक थाल में रखकर लाया गया और उस लड़की को दे दिया गया और वह इसे अपनी माँ के पास ले गयी। 12  बाद में यूहन्‍ना के चेले आकर उसकी लाश ले गए और उसे दफना दिया और आकर यीशु को खबर दी। 13  यह सुनकर यीशु वहाँ से किसी सुनसान जगह में एकांत पाने के लिए नाव पर निकल पड़ा। मगर जब लोगों की भीड़ ने सुना, तो वे शहरों से पैदल ही उसके पीछे चले आए।+ 14  जब यीशु किनारे पर पहुँचा, तो उसने लोगों की एक बड़ी भीड़ देखी। उन्हें देखकर वह तड़प उठा+ और उसने बीमारों को ठीक किया।+ 15  मगर जब शाम हुई, तो चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह जगह सुनसान है और बहुत देर हो चुकी है। इसलिए भीड़ को विदा कर दे ताकि वे आस-पास के गाँवों में जाकर खाने के लिए कुछ खरीद लें।”+ 16  मगर यीशु ने उनसे कहा, “उन्हें जाने की ज़रूरत नहीं, तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” 17  चेलों ने उससे कहा, “यहाँ हमारे पास पाँच रोटियों और दो मछलियों के सिवा और कुछ नहीं है।” 18  उसने कहा, “रोटी और मछली मेरे पास लाओ।” 19  इसके बाद यीशु ने भीड़ को घास पर आराम से बैठ जाने के लिए कहा। फिर उसने पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया।+ उसने रोटियाँ तोड़कर चेलों को दीं और चेलों ने उन्हें भीड़ में बाँट दिया। 20  उन सबने जी-भरकर खाया और उन्होंने बचे हुए टुकड़े उठाए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं।+ 21  खानेवालों में करीब 5,000 आदमी थे, उनके अलावा औरतें और बच्चे भी थे।+ 22  फिर यीशु ने बिना देर किए अपने चेलों से कहा कि वे नाव पर चढ़ जाएँ और उससे पहले उस पार चले जाएँ, जबकि वह खुद भीड़ को विदा करने लगा।+ 23  भीड़ को भेजने के बाद वह प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर चला गया।+ शाम हो गयी और वह वहाँ अकेला ही था। 24  अब तक चेलों की नाव किनारे से कुछ किलोमीटर* दूर जा चुकी थी। नाव लहरों के थपेड़े खा रही थी क्योंकि हवा का रुख उनके खिलाफ था। 25  मगर रात के चौथे पहर* यीशु पानी पर चलता हुआ उनके पास आया। 26  जैसे ही चेलों ने देखा कि वह पानी पर चल रहा है, वे घबराकर कहने लगे, “यह ज़रूर हमारा वहम है!” और वे डर के मारे ज़ोर से चिल्लाने लगे। 27  मगर तभी यीशु ने उनसे कहा, “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।”+ 28  तब पतरस ने कहा, “प्रभु अगर यह तू है, तो मुझे आज्ञा दे कि मैं पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।” 29  यीशु ने कहा, “आ!” तब पतरस नाव से उतरा और पानी पर चलता हुआ यीशु की तरफ जाने लगा। 30  मगर तूफान को देखकर वह डर गया और डूबने लगा। तब वह चिल्ला उठा, “हे प्रभु, मुझे बचा!” 31  यीशु ने फौरन अपना हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया और उससे कहा, “अरे कम विश्‍वास रखनेवाले, तूने शक क्यों किया?”+ 32  जब वे दोनों नाव पर चढ़ गए, तो तूफान थम गया। 33  तब जो नाव में थे उन्होंने उसे झुककर प्रणाम* किया और कहा, “तू वाकई परमेश्‍वर का बेटा है।” 34  वे उस पार पहुँचकर गन्‍नेसरत आ गए।+ 35  वहाँ के लोग उसे पहचान गए और उन्होंने आस-पास के सारे इलाके में खबर भेजी और लोग सब बीमारों को उसके पास ले आए। 36  और वे उससे बिनती करने लगे कि वह उन्हें अपने कपड़े की झालर को ही छू लेने दे।+ जितनों ने उसे छुआ वे सब अच्छे हो गए।

कई फुटनोट

यानी हेरोदेस अन्तिपास। शब्दावली देखें।
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
शा., “कई स्तादियौन।” एक स्तादियौन 185 मी. (606.95 फुट) के बराबर था।
यानी सुबह करीब 3 बजे से करीब 6 बजे तक।
या “दंडवत।”