मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 17:1-27

  • यीशु का रूप बदला (1-13)

  • राई के दाने के बराबर विश्‍वास (14-21)

  • यीशु फिर से अपनी मौत की भविष्यवाणी करता है (22, 23)

  • मछली के मुँह से मिले सिक्के से कर अदा किया (24-27)

17  छ: दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना को अपने साथ लिया। वह उनको एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया, जहाँ उनके सिवा कोई नहीं था।+  उनके सामने यीशु का रूप बदल गया। उसका चेहरा सूरज की तरह दमक उठा और उसके कपड़े रौशनी की तरह चमकने लगे।+  तभी अचानक उन्हें वहाँ मूसा और एलियाह दिखायी दिए, जो यीशु से बात कर रहे थे।  तब पतरस ने यीशु से कहा, “प्रभु, हम बहुत खुश हैं कि हम यहाँ आए। अगर तू चाहे तो मैं यहाँ तीन तंबू खड़े करता हूँ, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।”  वह बोल ही रहा था कि तभी एक उजला बादल उन पर छा गया और देखो! उस बादल में से यह आवाज़ आयी, “यह मेरा प्यारा बेटा है जिसे मैंने मंज़ूर किया है।+ इसकी सुनो।”+  यह सुनते ही चेले औंधे मुँह गिर पड़े और बहुत डर गए।  तब यीशु उनके नज़दीक आया और उन्हें छूकर कहा, “उठो, डरो मत।”  जब उन्होंने नज़रें उठायीं तो देखा कि वहाँ यीशु के सिवा कोई नहीं था।  इसके बाद जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें हुक्म दिया, “जब तक इंसान के बेटे को मरे हुओं में से ज़िंदा न किया जाए, तब तक इस दर्शन के बारे में किसी को मत बताना।”+ 10  मगर चेलों ने उससे पूछा, “तो फिर, शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले एलियाह का आना ज़रूरी है?”+ 11  जवाब में उसने कहा, “एलियाह वाकई आ रहा है और वह सबकुछ पहले जैसा कर देगा।+ 12  बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ कि एलियाह आ चुका है और उन्होंने उसे नहीं पहचाना, मगर उसके साथ वह सब किया जो वे करना चाहते थे।+ इसी तरह, इंसान का बेटा भी उनके हाथों दुख झेलेगा।”+ 13  तब चेले समझ गए कि वह उनसे यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में बात कर रहा है। 14  जब वे भीड़ की तरफ आए,+ तो एक आदमी यीशु के पास आया और उसके सामने घुटने टेककर कहने लगा, 15  “प्रभु, मेरे बेटे पर दया कर क्योंकि इसे मिरगी आती है और इसकी हालत बहुत खराब है। यह कभी आग में गिर जाता है, तो कभी पानी में।+ 16  मैं इसे तेरे चेलों के पास लाया था मगर वे इसे ठीक नहीं कर सके।” 17  तब यीशु ने कहा, “हे अविश्‍वासी और टेढ़े लोगो,*+ मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हारी सहूँ? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” 18  तब यीशु ने उस लड़के में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को फटकारा और वह उसमें से निकल गया। उसी पल लड़का ठीक हो गया।+ 19  इसके बाद चेले अकेले में यीशु के पास आए और उन्होंने कहा, “हम उस दुष्ट स्वर्गदूत को क्यों नहीं निकाल पाए?” 20  उसने कहा, “अपने विश्‍वास की कमी की वजह से। मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्‍वास है, तो तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से हटकर वहाँ चला जा’ और वह चला जाएगा और तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं होगा।”+ 21 * 22  जब यीशु और उसके चेले गलील में एक-साथ थे, तो उसने उनसे कहा, “इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात किया जाएगा और उसे लोगों के हवाले कर दिया जाएगा।+ 23  वे उसे मार डालेंगे और उसे तीसरे दिन ज़िंदा किया जाएगा।”+ यह सुनकर वे बहुत दुखी हो गए। 24  जब वे कफरनहूम पहुँचे, तो पतरस के पास वे लोग आए जो मंदिर का कर* वसूला करते थे। उन्होंने पतरस से कहा, “क्या तुम्हारा गुरु मंदिर का कर नहीं देता?”+ 25  उसने कहा, “हाँ, देता है।” मगर जब वह घर के अंदर गया, तो यीशु ने उसके बोलने से पहले ही उससे पूछा, “शमौन, तू क्या सोचता है? दुनिया के राजा महसूल या कर किससे लेते हैं? अपने बेटों से या परायों से?” 26  जब उसने कहा, “परायों से,” तो यीशु ने उससे कहा, “इसका मतलब है कि बेटों को कर देने की ज़रूरत नहीं है। 27  लेकिन ऐसा न हो कि हमारी वजह से वे ठोकर खाएँ,+ इसलिए तू झील के किनारे जा और मछली पकड़ने के लिए काँटा डाल। जो पहली मछली पकड़ में आए उसे लेना और उसका मुँह खोलना, तुझे उसमें चाँदी का एक सिक्का* मिलेगा। उसे ले जाकर अपने और मेरे लिए कर-वसूलनेवालों को दे देना।”

कई फुटनोट

शा., “टेढ़ी पीढ़ी।”
अति. क3 देखें।
शा., “दो-द्राख्मा का एक सिक्का।” अति. ख14 देखें।
शा., “स्ताटेर सिक्का,” जो चार-द्राख्मा के बराबर माना जाता था। अति. ख14 देखें।