मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 18:1-35

  • राज में कौन सबसे बड़ा (1-6)

  • विश्‍वास की राह में बाधाएँ डालना (7-11)

  • खोयी हुई भेड़ की मिसाल (12-14)

  • भाई को पा लेना (15-20)

  • माफ न करनेवाले दास की मिसाल (21-35)

18  उस वक्‍त चेलों ने यीशु के पास आकर उससे पूछा, “स्वर्ग के राज में कौन सबसे बड़ा होगा?”+  तब यीशु ने एक छोटे बच्चे को अपने पास बुलाकर उनके बीच खड़ा किया  और कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक कि तुम खुद को बदलकर* वैसे न बनो जैसे छोटे बच्चे होते हैं,+ तब तक तुम स्वर्ग के राज में हरगिज़ दाखिल न हो सकोगे।+  इसलिए जो कोई इस छोटे बच्चे की तरह खुद को नम्र करेगा, वही स्वर्ग के राज में सबसे बड़ा होगा।+  जो कोई मेरे नाम से ऐसे एक भी बच्चे को स्वीकार करता है, वह मुझे स्वीकार करता है।  मगर जो कोई मुझ पर विश्‍वास करनेवाले इन छोटों में से किसी को ठोकर खिलाता है,* उसके लिए यही अच्छा है कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा घुमाता है और उसे गहरे समुंदर में डुबा दिया जाए।+  इस दुनिया का बहुत बुरा हाल होगा, क्योंकि यह विश्‍वास की राह में बाधाएँ* डालती है! बेशक, राह में बाधाएँ ज़रूर आएँगी, मगर उस इंसान के साथ बहुत बुरा होगा जो विश्‍वास की राह में बाधा बनता है!  इसलिए अगर तेरा हाथ या पैर तुझसे पाप करवाता है* तो उसे काटकर दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू एक हाथ या पैर के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि तू दोनों हाथों या पैरों समेत हमेशा जलनेवाली आग से नाश किया जाए।+  अगर तेरी आँख तुझसे पाप करवाती है तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे। अच्छा यही होगा कि तू एक आँख के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि तू दोनों आँखों समेत गेहन्‍ना* की आग में फेंक दिया जाए।+ 10  ध्यान रहे कि तुम इन छोटों में से किसी को भी तुच्छ न समझो। मैं तुमसे कहता हूँ कि इनके स्वर्गदूत हमेशा स्वर्ग में मेरे पिता के सामने मौजूद रहते हैं।+ 11 * 12  तुम क्या सोचते हो? अगर किसी आदमी की 100 भेड़ें हों और उनमें से एक भटक जाए,+ तो क्या वह बाकी 99 को पहाड़ों पर छोड़कर उस एक भटकी हुई भेड़ को ढूँढ़ने नहीं जाएगा?+ 13  और अगर वह उसे मिल जाती है, तो मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपनी 99 भेड़ों से ज़्यादा, जो भटकी नहीं थीं, इस एक भेड़ के लिए खुशियाँ मनाएगा। 14  इसी तरह मेरा* पिता जो स्वर्ग में है, नहीं चाहता कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।+ 15  अगर तेरा भाई कोई पाप करता है, तो जा और उससे अकेले में बात कर और उसकी गलती उसे बता।*+ अगर वह तेरी सुने, तो तूने अपने भाई को पा लिया है।+ 16  लेकिन अगर वह तेरी नहीं सुनता, तो अपने साथ एक या दो लोगों को ले जाकर उससे बात कर ताकि हर मामले की सच्चाई दो या तीन गवाहों के बयान* से साबित हो।+ 17  अगर वह उनकी नहीं सुनता, तो मंडली को बता। और अगर वह मंडली की भी नहीं सुनता, तो वह तेरे लिए गैर-यहूदी+ या कर-वसूलनेवाले जैसा ठहरे।+ 18  मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कुछ तुम धरती पर बाँधोगे, वह पहले ही स्वर्ग में बँधा होगा और जो कुछ तुम धरती पर खोलोगे, वह पहले ही स्वर्ग में खुला होगा। 19  मैं फिर तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुममें से दो लोग धरती पर किसी ज़रूरी बात के लिए एक मन होकर बिनती करें, तो स्वर्ग में रहनेवाला मेरा पिता उनके लिए उसे पूरा कर देगा।+ 20  इसलिए कि जहाँ दो या तीन जन मेरे नाम से इकट्ठा होते हैं,+ वहाँ मैं उनके बीच मौजूद रहता हूँ।” 21  इसके बाद पतरस ने आकर यीशु से पूछा, “प्रभु, अगर मेरा भाई मेरे खिलाफ पाप करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे माफ करूँ? सात बार?” 22  यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझसे कहता हूँ कि सात बार नहीं बल्कि 77 बार।+ 23  इसीलिए स्वर्ग के राज की तुलना एक ऐसे राजा से की जा सकती है, जो अपने दासों से कहता है कि वे अपना-अपना कर्ज़ चुकाएँ। 24  जब उसने हिसाब लेना शुरू किया, तो उसके सामने एक ऐसे दास को लाया गया जिस पर छ: करोड़ दीनार* का कर्ज़ था। 25  मगर उसके पास कर्ज़ चुकाने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उसके मालिक ने हुक्म दिया कि उस दास को, उसके बीवी-बच्चों को और जो कुछ उसका है, सब बेचकर कर्ज़ चुकाया जाए।+ 26  तब वह दास उसके सामने गिरकर* गिड़गिड़ाने लगा, ‘मुझे थोड़ी और मोहलत दे और मैं तेरी पाई-पाई चुका दूँगा।’ 27  यह देखकर मालिक का दिल तड़प उठा और उसने उस दास को छोड़ दिया और उसका सारा कर्ज़ माफ कर दिया।+ 28  लेकिन वही दास बाहर निकला और उसने अपने एक संगी दास को ढूँढ़ा, जिसने उससे 100 दीनार* उधार लिए थे। वह उसे पकड़कर उसका गला दबाने लगा और कहने लगा, ‘तूने जो उधार लिया है वह वापस कर।’ 29  तब उसका संगी दास उसके पैर पड़ने लगा और बिनती करने लगा, ‘मुझे थोड़ी और मोहलत दे और मैं तेरा उधार चुका दूँगा।’ 30  मगर उसने उसकी एक न सुनी और जाकर उसे तब तक के लिए जेल में डलवा दिया, जब तक कि वह अपना उधार न चुका दे। 31  जब उसके संगी दासों ने यह सब देखा, तो वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने जाकर अपने मालिक को सारी बात बता दी। 32  तब मालिक ने उस पहले दास को बुलवाया और उससे कहा, ‘अरे दुष्ट, जब तू मेरे सामने गिड़गिड़ाया था, तब मैंने तेरा सारा कर्ज़ माफ कर दिया था। 33  तो क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया नहीं करनी थी, जैसे मैंने तुझ पर दया की थी?’+ 34  मालिक का गुस्सा भड़क उठा और उसने उस दास को तब तक के लिए जेलरों के हवाले कर दिया, जब तक कि वह उसकी पाई-पाई न चुका दे। 35  अगर तुममें से हरेक अपने भाई को दिल से माफ नहीं करेगा, तो स्वर्ग में रहनेवाला मेरा पिता भी तुम्हारे साथ इसी तरह पेश आएगा।”+

कई फुटनोट

शा., “तुम न पलटो।”
यानी कुछ ऐसा करता है कि दूसरा आदमी विश्‍वास करना छोड़ देता है।
या “ठोकर के पत्थर।”
या “तुझे ठोकर खिलाता है।”
शब्दावली देखें।
अति. क3 देखें।
या शायद, “तुम्हारा।”
शा., “उसे सुधार।”
शा., “मुँह।”
या “चाँदी के 10,000 तोड़े।” अति. ख14 देखें।
या “दंडवत करके।”
अति. ख14 देखें।