मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 26:1-75
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याजक, यीशु को मार डालने की साज़िश करते हैं (1-5)
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यीशु के सिर पर तेल उँडेला गया (6-13)
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आखिरी फसह और यीशु के साथ विश्वासघात (14-25)
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प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत (26-30)
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यीशु ने बताया, पतरस उसका इनकार करेगा (31-35)
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यीशु गतसमनी में प्रार्थना करता है (36-46)
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यीशु की गिरफ्तारी (47-56)
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महासभा के सामने मुकदमा (57-68)
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पतरस, यीशु को जानने से इनकार करता है (69-75)
26 जब यीशु ये सारी बातें बता चुका, तो उसने अपने चेलों से कहा,
2 “तुम जानते हो कि अब से दो दिन बाद फसह का त्योहार है+ और इंसान के बेटे को काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया जाएगा।”+
3 तब प्रधान याजक और लोगों के मुखिया, कैफा नाम के महायाजक के आँगन में इकट्ठा हुए।+
4 उन्होंने मिलकर साज़िश की+ कि कैसे यीशु को छल से पकड़ें* और मार डालें।
5 मगर वे कह रहे थे, “त्योहार के वक्त नहीं ताकि लोग हंगामा न मचा दें।”
6 यीशु बैतनियाह में शमौन के घर में था, जो पहले एक कोढ़ी था।+
7 जब वह खाना खा रहा था,* तो एक औरत उसके पास खुशबूदार तेल की बोतल लेकर आयी जो बहुत महँगा था। वह उसके सिर पर तेल उँडेलने लगी।
8 यह देखकर चेले भड़क उठे और कहने लगे, “यह औरत क्यों तेल बरबाद कर रही है?
9 इसे ऊँचे दामों में बेचकर पैसा गरीबों को दिया जा सकता था।”
10 यीशु ने यह जानकर कि वे आपस में क्या बात कर रहे हैं कहा, “तुम इस औरत को क्यों परेशान कर रहे हो? इसने तो मेरी खातिर एक बढ़िया काम किया है।
11 गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे,+ मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।+
12 इसने मेरे शरीर पर खुशबूदार तेल मलकर मेरे दफनाए जाने की तैयारी की है।+
13 मैं तुमसे सच कहता हूँ, सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ इस औरत की याद में इसके काम की चर्चा की जाएगी।”+
14 फिर उन बारहों में से एक, जो यहूदा इस्करियोती कहलाता था,+ प्रधान याजकों के पास गया+
15 और उसने उनसे कहा, “अगर मैं उसे तुम्हारे हाथों पकड़वा दूँ, तो तुम मुझे क्या दोगे?”+ उन्होंने कहा कि वे उसे चाँदी के 30 सिक्के देंगे।+
16 तब से यहूदा, यीशु को पकड़वाने के लिए सही मौका ढूँढ़ने लगा।
17 बिन-खमीर की रोटी के त्योहार+ के पहले दिन, चेले यीशु के पास आए और उससे पूछने लगे, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करें?”+
18 उसने कहा, “शहर में फलाँ-फलाँ आदमी के पास जाओ और उससे कहो, ‘गुरु कहता है, “मेरे लिए तय किया गया वक्त पास आ गया है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे घर में फसह का त्योहार मनाऊँगा।”’”
19 तब चेलों ने ठीक वैसा ही किया जैसा यीशु ने उनसे कहा था और फसह की तैयारी की।
20 जब शाम हुई+ तो वह अपने 12 चेलों के साथ खाना खाने बैठा।*+
21 जब वे खा रहे थे, तो उसने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक मेरे साथ विश्वासघात करके मुझे पकड़वा देगा।”+
22 यह सुनकर वे बहुत दुखी हुए और एक-एक करके उससे पूछने लगे, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ न?”
23 उसने कहा, “जो मेरे साथ कटोरे में हाथ डालता है, वही मेरे साथ विश्वासघात करेगा।+
24 यह सच है कि इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर उस आदमी का बहुत बुरा होगा+ जो इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पकड़वा देगा!+ उस आदमी के लिए अच्छा तो यह होता कि वह पैदा ही न हुआ होता।”+
25 तब यहूदा ने, जो उसके साथ गद्दारी करनेवाला था, उससे कहा, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूँ न?” यीशु ने उससे कहा, “तूने खुद कह दिया है।”
26 जब वे खाना खा रहे थे, तो यीशु ने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उसे तोड़ा+ और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ। यह मेरे शरीर की निशानी है।”+
27 फिर उसने एक प्याला लिया और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उन्हें दिया और कहा, “तुम सब इसमें से पीओ+
28 क्योंकि यह मेरे खून की निशानी है,+ जो करार को पक्का करता है+ और जो बहुतों के पापों की माफी के लिए बहाया जाएगा।+
29 मगर मैं तुमसे कहता हूँ, अब से मैं यह दाख-मदिरा उस दिन तक हरगिज़ नहीं पीऊँगा, जिस दिन मैं अपने पिता के राज में तुम्हारे साथ नयी दाख-मदिरा न पीऊँ।”+
30 आखिर में उन्होंने परमेश्वर की तारीफ में गीत* गाए और फिर जैतून पहाड़ की तरफ निकल गए।+
31 इसके बाद यीशु ने उनसे कहा, “आज की रात मेरे साथ जो होगा उसकी वजह से तुम सबका विश्वास डगमगा जाएगा* क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और झुंड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’+
32 लेकिन जब मुझे ज़िंदा कर दिया जाएगा, तो मैं तुमसे पहले गलील जाऊँगा।”+
33 मगर पतरस ने उससे कहा, “तेरे साथ जो होगा उसकी वजह से चाहे बाकी सबका विश्वास डगमगा जाए, मगर मेरा विश्वास कभी नहीं डगमगाएगा।”+
34 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+
35 पतरस ने उससे कहा, “चाहे मुझे तेरे साथ मरना पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार नहीं करूँगा।”+ बाकी सभी चेलों ने भी यही कहा।
36 तब यीशु अपने चेलों के साथ गतसमनी+ नाम की जगह आया और उसने चेलों से कहा, “मैं वहाँ प्रार्थना करने जा रहा हूँ, तुम यहीं बैठे रहना।”+
37 और उसने पतरस और जब्दी के दोनों बेटों को अपने साथ लिया। उसका जी बहुत बेचैन हो उठा और वह दुख से बेहाल होने लगा।+
38 तब उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत दुखी है, यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत हो रही है। तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”+
39 फिर वह थोड़ा आगे गया और मुँह के बल गिरकर यह प्रार्थना करने लगा,+ “मेरे पिता, अगर हो सके तो यह प्याला+ मेरे सामने से हटा दे। फिर भी मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”+
40 जब वह अपने चेलों के पास वापस आया, तो उसने देखा कि वे सो रहे हैं। उसने पतरस से कहा, “क्या तुम लोग मेरे साथ थोड़ी देर के लिए भी नहीं जाग सके?+
41 जागते रहो+ और प्रार्थना करते रहो+ ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।+ दिल तो बेशक तैयार* है, मगर शरीर कमज़ोर है।”+
42 फिर वह दूसरी बार गया और यह कहकर प्रार्थना करने लगा, “मेरे पिता, अगर मुझे यह प्याला पीना ही है और इसे हटाया नहीं जा सकता, तो तेरी मरज़ी पूरी हो।”+
43 वह फिर चेलों के पास आया और उसने उन्हें सोता हुआ पाया क्योंकि उनकी आँखें नींद से बोझिल थीं।
44 तब वह उन्हें वहीं छोड़कर एक बार फिर गया और तीसरी बार भी उसने वही प्रार्थना की।
45 इसके बाद वह फिर अपने चेलों के पास आया और उसने कहा, “तुम ऐसे वक्त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! देखो, वह घड़ी आ गयी है कि इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पापियों के हाथ सौंप दिया जाए।
46 उठो, आओ चलें। देखो, मुझसे गद्दारी करनेवाला पास आ गया है।”
47 वह बोल ही रहा था कि तभी यहूदा आ गया, जो उन बारहों में से एक था। उसके साथ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए लोगों की एक बड़ी भीड़ थी जिसे प्रधान याजकों और लोगों के मुखियाओं ने भेजा था।+
48 उसके साथ विश्वासघात करनेवाले ने उन्हें यह कहकर एक निशानी दी थी, “जिसे मैं चूमूँगा, वही है। उसे गिरफ्तार कर लेना।”
49 यहूदा ने सीधे यीशु के पास जाकर उससे कहा, “नमस्कार, रब्बी!” और उसे प्यार से चूमा।
50 मगर यीशु ने उससे कहा, “तू यहाँ किस इरादे से आया है?”+ तब उन्होंने आगे बढ़कर यीशु को पकड़ लिया और हिरासत में ले लिया।
51 मगर तभी जो यीशु के साथ थे उनमें से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींची और महायाजक के दास पर वार करके उसका कान उड़ा दिया।+
52 तब यीशु ने उससे कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले,+ इसलिए कि जो तलवार उठाते हैं वे तलवार से ही नाश किए जाएँगे।+
53 क्या तुझे नहीं लगता कि मैं अपने पिता से यह बिनती कर सकता हूँ कि वह इसी पल स्वर्गदूतों की 12 से भी ज़्यादा पलटनें मेरे पास भेज दे?+
54 ऐसे में शास्त्र में लिखी यह बात कैसे पूरी होगी कि यह सबकुछ होना ज़रूरी है?”
55 तब यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ? मैं हर दिन मंदिर में बैठकर सिखाया करता था,+ फिर भी तुमने मुझे हिरासत में नहीं लिया।+
56 मगर यह सब इसलिए हुआ है ताकि भविष्यवक्ताओं ने जो लिखा है वह पूरा हो।”+ तब सारे चेले उसे छोड़कर भाग गए।+
57 जिन लोगों ने यीशु को गिरफ्तार किया वे उसे महायाजक कैफा के पास ले गए,+ जहाँ शास्त्री और मुखिया इकट्ठा थे।+
58 मगर पतरस कुछ दूरी पर रहकर यीशु के पीछे-पीछे गया और महायाजक के आँगन तक आ गया। अंदर जाने के बाद वह घर के सेवकों के साथ बैठ गया कि देखे आगे क्या होगा।+
59 प्रधान याजक और पूरी महासभा यीशु को मार डालने के लिए उसके खिलाफ झूठी गवाही ढूँढ़ रही थी।+
60 बहुत-से झूठे गवाह आए मगर एक भी ऐसी गवाही नहीं मिली, जिससे यीशु को दोषी ठहराया जाए।+ बाद में दो गवाह आए
61 और उन्होंने कहा, “इस आदमी ने कहा था, ‘मैं परमेश्वर के मंदिर को ढा सकता हूँ और तीन दिन के अंदर इसे खड़ा कर सकता हूँ।’”+
62 यह सुनकर महायाजक उठ गया और उसने यीशु से कहा, “क्या तू जवाब में कुछ नहीं कहेगा? क्या तू सुन नहीं रहा कि ये तुझ पर क्या-क्या इलज़ाम लगा रहे हैं?”+
63 मगर तब भी यीशु चुप रहा।+ महायाजक ने फिर उससे कहा, “मैं तुझे जीवित परमेश्वर की शपथ दिलाता हूँ, हमें बता, क्या तू परमेश्वर का बेटा मसीह है?”+
64 यीशु ने उससे कहा, “तूने खुद कह दिया है। फिर भी मैं तुम लोगों से कहता हूँ, अब से तुम इंसान के बेटे+ को शक्तिशाली परमेश्वर के दाएँ हाथ बैठा+ और आकाश के बादलों पर आता देखोगे।”+
65 तब महायाजक ने यह कहते हुए अपना चोगा फाड़ा, “इसने परमेश्वर की निंदा की है! अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है? देखो! तुम लोगों ने ये निंदा की बातें सुनी हैं।
66 तुम्हारी क्या राय है?” उन्होंने कहा, “यह मौत की सज़ा के लायक है।”+
67 इसके बाद, उन्होंने यीशु के मुँह पर थूका+ और उसे घूँसे मारे।+ दूसरों ने यह कहते हुए उसके मुँह पर थप्पड़ मारे,+
68 “अरे मसीह, भविष्यवाणी कर, हममें से किसने तुझे मारा?”
69 पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था। तब एक दासी उसके पास आकर कहने लगी, “तू भी उस यीशु गलीली के साथ था!”+
70 मगर उसने सबके सामने इनकार करते हुए कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।”
71 जब वह बाहर निकलकर आँगन के द्वार की तरफ गया, तो एक और लड़की ने उसे देखकर वहाँ मौजूद लोगों से कहा, “यह आदमी यीशु नासरी के साथ था।”+
72 एक बार फिर वह शपथ खाकर इनकार करने लगा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता!”
73 थोड़ी देर बाद आस-पास खड़े लोग पतरस के पास आकर उससे कहने लगे, “बेशक तू भी उनमें से एक है, तेरी बोली* तेरा राज़ खोल रही है।”
74 तब वह खुद को कोसने लगा और कसम खाकर कहने लगा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता!” उसी घड़ी एक मुर्गे ने बाँग दी।
75 तब पतरस को यीशु की वह बात याद आयी, “मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ और वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।
कई फुटनोट
^ या “गिरफ्तार करें।”
^ या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”
^ या “मेज़ से टेक लगाए बैठा।”
^ या “भजन।”
^ शा., “तुम ठोकर खाओगे।”
^ या “उत्सुक।”
^ या “बोलने का लहज़ा।”