मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 5:1-48

  • पहाड़ी उपदेश (1-48)

    • यीशु ने पहाड़ पर सिखाया (1, 2)

    • सुख देनेवाली नौ बातें (3-12)

    • नमक और रौशनी (13-16)

    • यीशु कानून पूरा करने आया (17-20)

    • इस बारे में सलाह: गुस्सा (21-26), व्यभिचार (27-30), तलाक (31, 32), कसम खाना (33-37), बदला लेना (38-42), दुश्‍मनों से प्यार (43-48)

5  जब यीशु ने भीड़ को देखा, तो वह पहाड़ पर गया और वहाँ बैठ गया और उसके चेले उसके पास आए।  तब वह उन्हें ये बातें सिखाने लगा:  “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है*+ क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।  सुखी हैं वे जो मातम मनाते हैं क्योंकि उन्हें दिलासा दिया जाएगा।+  सुखी हैं वे जो कोमल स्वभाव+ के हैं क्योंकि वे धरती के वारिस होंगे।+  सुखी हैं वे जो नेकी के भूखे-प्यासे हैं+ क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।+  सुखी हैं वे जो दयालु+ हैं क्योंकि उन पर दया की जाएगी।  सुखी हैं वे जिनका दिल शुद्ध+ है क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे।  सुखी हैं वे जो शांति कायम करते हैं+ क्योंकि वे परमेश्‍वर के बेटे कहलाएँगे। 10  सुखी हैं वे जो सही काम करने की वजह से ज़ुल्म सहते हैं+ क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है। 11  सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें,+ तुम पर ज़ुल्म ढाएँ+ और तुम्हारे बारे में तरह-तरह की झूठी और बुरी बातें कहें।+ 12  तब तुम मगन होना और खुशियाँ मनाना+ इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है।+ उन्होंने तुमसे पहले के भविष्यवक्‍ताओं पर भी इसी तरह ज़ुल्म ढाए थे।+ 13  तुम पृथ्वी के नमक+ हो। लेकिन अगर नमक अपना स्वाद खो दे, तो क्या उसे दोबारा नमकीन किया जा सकता है? नहीं! फिर वह किसी काम का नहीं रहता। उसे सड़कों पर फेंक दिया जाता है+ और वह लोगों के पैरों तले रौंदा जाता है। 14  तुम दुनिया की रौशनी हो।+ जो शहर पहाड़ पर बसा हो, वह छिप नहीं सकता। 15  लोग दीपक जलाकर उसे टोकरी* से ढककर नहीं रखते, बल्कि दीवट पर रखते हैं। इससे घर के सब लोगों को रौशनी मिलती है।+ 16  उसी तरह तुम्हारी रौशनी लोगों के सामने चमके+ ताकि वे तुम्हारे भले काम+ देखकर स्वर्ग में रहनेवाले तुम्हारे पिता की महिमा करें।+ 17  यह मत सोचो कि मैं कानून या भविष्यवक्‍ताओं के वचनों को रद्द करने आया हूँ। मैं उन्हें रद्द करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ।+ 18  मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जैसे आकाश और पृथ्वी कभी नहीं मिटेंगे, वैसे ही कानून में लिखा छोटे-से-छोटा अक्षर या बिंदु भी बिना पूरा हुए नहीं मिटेगा, उसमें लिखी एक-एक बात पूरी होगी।+ 19  इसलिए अगर कोई इसकी छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को भी तोड़ता है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाता है, तो वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक नहीं होगा।* मगर जो इन्हें मानता है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक होगा।* 20  क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि अगर तुम्हारे नेक काम शास्त्रियों और फरीसियों के नेक कामों से बढ़कर न हों,+ तो तुम स्वर्ग के राज में हरगिज़ दाखिल न होगे।+ 21  तुम सुन चुके हो कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तुम खून न करना।+ जो कोई खून करता है उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा।’+ 22  मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह इंसान जिसके दिल में अपने भाई के खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहती है,+ उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा। और हर वह इंसान जो अपने भाई का अपमान करने के लिए ऐसे शब्द कहता है जिन्हें ज़बान पर भी नहीं लाना चाहिए, उसे सबसे बड़ी अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा। और हर वह इंसान जो अपने भाई से कहता है, ‘अरे चरित्रहीन मूर्ख!’ वह गेहन्‍ना* की आग में जाने के लायक ठहरेगा।+ 23  इसलिए अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो+ और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, 24  तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और फिर आकर अपनी भेंट चढ़ा।+ 25  अगर कोई तुझ पर मुकदमा दायर करने जा रहा है, तो रास्ते में ही जल्द-से-जल्द उसके साथ सुलह कर ले। कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे न्यायी के हवाले कर दे और न्यायी तुझे पहरेदार के हवाले कर दे और तुझे कैदखाने में डाल दिया जाए।+ 26  मैं तुझसे सच कहता हूँ, जब तक तू एक-एक पाई* न चुका दे, तब तक तू वहाँ से किसी भी हाल में न छूट सकेगा। 27  तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुम व्यभिचार* न करना।’+ 28  मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो किसी औरत को ऐसी नज़र से देखता रहता है+ जिससे उसके मन में उसके लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस औरत के साथ व्यभिचार कर चुका है।+ 29  अगर तेरी दायीं आँख तुझसे पाप करवा रही है,* तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्‍ना* में फेंक दिया जाए।+ 30  और अगर तेरा दायाँ हाथ तुझसे पाप करवा रहा है,* तो उसे काटकर दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्‍ना* में डाल दिया जाए।+ 31  यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है, वह उसे एक तलाकनामा दे।’+ 32  लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो अपनी पत्नी को नाजायज़ यौन-संबंध* के अलावा किसी और वजह से तलाक देता है, वह उसे व्यभिचार करने के खतरे में डालता है। और जो कोई ऐसी तलाकशुदा औरत से शादी करता है, वह व्यभिचार करने का दोषी है।+ 33  तुमने यह भी सुना है कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तुम ऐसी शपथ न खाना जिसे तुम पूरा न करो,+ मगर तुम यहोवा* के सामने अपनी मन्‍नतें पूरी करना।’+ 34  लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, तुम कभी कसम न खाना,+ न स्वर्ग की क्योंकि वह परमेश्‍वर की राजगद्दी है, 35  न ही पृथ्वी की क्योंकि यह उसके पाँवों की चौकी है,+ न यरूशलेम की क्योंकि यह उस महाराजा का नगर है।+ 36  न ही तुम अपने सिर की कसम खाना क्योंकि तुम एक बाल भी सफेद या काला नहीं कर सकते। 37  बस तुम्हारी ‘हाँ’ का मतलब हाँ हो और ‘न’ का मतलब न,+ इसलिए कि इससे बढ़कर जो कुछ कहा जाता है वह शैतान* से होता है।+ 38  तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।’+ 39  लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, जो दुष्ट है उसका मुकाबला मत करो। इसके बजाय, अगर कोई तुम्हारे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारे, तो उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर देना।+ 40  और अगर कोई तुम पर अदालत में मुकदमा करके तुम्हारा कुरता लेना चाहे, तो उसे अपना ओढ़ना भी दे देना।+ 41  और अगर कोई अधिकारी तुमसे कहे कि मेरा बोझ उठाकर एक मील* चल, तो तुम उसके साथ दो मील चले जाना। 42  जो कोई तुमसे माँगता है, उसे देना और जो तुमसे उधार माँगे* उसे देने से इनकार मत करना।+ 43  तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुम अपने पड़ोसी से प्यार करना+ और दुश्‍मन से नफरत।’ 44  लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो+ और जो तुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।+ 45  इस तरह तुम साबित करो कि तुम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बेटे हो+ क्योंकि वह अच्छे और बुरे दोनों पर अपना सूरज चमकाता है और नेक और दुष्ट दोनों पर बारिश बरसाता है।+ 46  क्योंकि अगर तुम उन्हीं से प्यार करो जो तुमसे प्यार करते हैं, तो तुम्हें इसका क्या इनाम मिलेगा?+ क्या कर-वसूलनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? 47  और अगर तुम सिर्फ अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन-सा अनोखा काम करते हो? क्या गैर-यहूदी भी ऐसा ही नहीं करते? 48  इसलिए तुम्हें परिपूर्ण* होना चाहिए ठीक जैसे स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता परिपूर्ण है।+

कई फुटनोट

या “जो पवित्र शक्‍ति की भीख माँगते हैं।”
या “नापने की टोकरी।”
शा., “वह स्वर्ग के राज के संबंध में सबसे ‘छोटा’ कहलाएगा।”
शा., “वह स्वर्ग के राज के संबंध में ‘महान’ कहलाएगा।”
यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। शब्दावली देखें।
शा., “आखिरी कौद्रान।” अति. ख14 देखें।
शब्दावली देखें।
या “तुझे ठोकर खिला रही है।”
शब्दावली देखें।
या “तुझे ठोकर खिला रहा है।”
शब्दावली देखें।
यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
शा., “उस दुष्ट।”
अति. ख14 देखें।
यानी बिना ब्याज के उधार माँगे।
या “पूरा।”