मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 6:1-34

  • पहाड़ी उपदेश (1-34)

    • नेकी का ढोंग मत करो (1-4)

    • कैसे प्रार्थना करें (5-15)

      • आदर्श प्रार्थना (9-13)

    • उपवास (16-18)

    • पृथ्वी और स्वर्ग में धन (19-24)

    • चिंता करना छोड़ दो (25-34)

      • राज को पहली जगह देते रहो (33)

6  खबरदार रहो कि तुम लोगों को दिखाने के लिए उनके सामने नेक काम न करो,+ नहीं तो तुम अपने पिता से जो स्वर्ग में है, कोई फल नहीं पाओगे।  इसलिए जब तू दान* दे, तो अपने आगे-आगे तुरही न बजवा, जैसे कपटी सभा-घरों और गलियों में बजवाते हैं ताकि लोग उनकी वाह-वाही करें। मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके हैं।  मगर जब तू दान दे, तो तेरे बाएँ हाथ को भी मालूम न पड़े कि तेरा दायाँ हाथ क्या दे रहा है,  जिससे तेरा दान गुप्त रहे। तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है,* तुझे इसका फल देगा।+  जब तुम प्रार्थना करो, तो कपटियों की तरह मत करो+ क्योंकि उन्हें सभा-घरों और सड़कों के चौराहे पर खड़े होकर प्रार्थना करना अच्छा लगता है ताकि लोग उन्हें देख सकें।+ मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके हैं।  लेकिन जब तू प्रार्थना करे, तो अकेले अपने घर के कमरे में जा और दरवाज़ा बंद कर और अपने पिता से जिसे कोई नहीं देख सकता,* प्रार्थना कर।+ तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है,* तुझे इसका फल देगा।  प्रार्थना करते वक्‍त, दुनिया के लोगों की तरह एक ही बात बार-बार मत दोहराओ क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके बहुत ज़्यादा बोलने से परमेश्‍वर उनकी सुनेगा।  इसलिए तुम उनके जैसे मत बनो क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम्हें किन चीज़ों की ज़रूरत है।+  इसलिए, तुम इस तरह प्रार्थना करना:+ ‘हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम+ पवित्र किया जाए।*+ 10  तेरा राज+ आए। तेरी मरज़ी+ जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे धरती पर भी पूरी हो।+ 11  आज के दिन की रोटी हमें दे।+ 12  जैसे हमने अपने खिलाफ पाप करनेवालों* को माफ किया है, वैसे ही तू भी हमारे पाप* माफ कर।+ 13  जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे,+ मगर हमें शैतान* से बचा।’*+ 14  अगर तुम दूसरों के अपराध माफ करोगे, तो स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता भी तुम्हें माफ करेगा।+ 15  लेकिन अगर तुम दूसरों के अपराध माफ नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध माफ नहीं करेगा।+ 16  जब तुम उपवास करते हो,+ तो पाखंडियों की तरह मुँह लटकाए रहना बंद करो, क्योंकि वे अपना चेहरा गंदा कर लेते हैं* ताकि लोग उन्हें देखकर जानें कि वे उपवास कर रहे हैं।+ मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके हैं। 17  लेकिन जब तू उपवास करे, तो अपने सिर पर तेल लगा और मुँह धो 18  ताकि लोग नहीं बल्कि तेरा पिता, जिसे कोई नहीं देख सकता, जाने कि तू उपवास कर रहा है। तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है,* तुझे इसका फल देगा। 19  अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो,+ जहाँ कीड़ा और ज़ंग उसे खा जाते हैं और चोर सेंध लगाकर चुरा लेते हैं। 20  इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो,+ जहाँ न तो कीड़ा, न ही ज़ंग उसे खाते हैं+ और न चोर सेंध लगाकर चुराते हैं। 21  क्योंकि जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा मन होगा। 22  आँख, शरीर का दीपक है।+ इसलिए अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है,* तो तेरा सारा शरीर रौशन रहेगा। 23  लेकिन अगर तेरी आँखों में ईर्ष्या भरी है,*+ तो तेरा सारा शरीर अंधकार से भर जाएगा। अगर शरीर को रौशन करनेवाली तेरी आँख ही अँधेरे में हो, तो तू कितने गहरे अंधकार में होगा! 24  कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार+ या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्‍वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।+ 25  इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, अपने जीवन के लिए चिंता करना छोड़ दो+ कि तुम क्या खाओगे या क्या पीओगे, न ही अपने शरीर के लिए चिंता करो कि तुम क्या पहनोगे।+ क्या जीवन भोजन से और शरीर कपड़े से अनमोल नहीं?+ 26  आकाश में उड़नेवाले पंछियों को ध्यान से देखो।+ वे न तो बीज बोते, न कटाई करते, न ही गोदामों में भरकर रखते हैं, फिर भी स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता उन्हें खिलाता है। क्या तुम्हारा मोल उनसे बढ़कर नहीं? 27  तुममें ऐसा कौन है जो चिंता करके एक पल के लिए भी* अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके?+ 28  तुम यह चिंता क्यों करते हो कि तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े कहाँ से आएँगे? मैदान में उगनेवाले सोसन* के फूलों से सबक सीखो, वे कैसे बढ़ते हैं; वे न तो कड़ी मज़दूरी करते हैं न ही सूत कातते हैं। 29  मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलैमान+ भी जब अपने पूरे वैभव में था, तो इनमें से किसी एक की तरह भी सज-धज न सका। 30  इसलिए अगर परमेश्‍वर मैदान में उगनेवाले इन पौधों को, जो आज हैं और कल आग* में झोंक दिए जाएँगे, ऐसे शानदार कपड़े पहनाता है, तो अरे कम विश्‍वास रखनेवालो! क्या वह तुम्हें नहीं पहनाएगा? 31  इसलिए कभी-भी चिंता+ करके यह मत कहना कि हम क्या खाएँगे? या हम क्या पीएँगे? या हम क्या पहनेंगे?+ 32  क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं। मगर स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है। 33  इसलिए परमेश्‍वर के राज और उसके नेक* स्तरों को पहली जगह देते रहो* और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।+ 34  इसलिए अगले दिन की चिंता कभी न करना+ क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की परेशानियाँ काफी हैं।

कई फुटनोट

शा., “दया के दान।” शब्दावली देखें।
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “पवित्र माना जाए; समझा जाए।”
शा., “अपने कर्ज़दारों।”
शा., “हमारे कर्ज़।”
शा., “उस दुष्ट।”
या “छुड़ा।”
या “गंदा रहने देते हैं।”
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “साफ-साफ देखती है।” शा., “सादी है।”
शा., “आँख बुरी; दुष्ट है।”
शा., “एक हाथ भी।” अति. ख14 देखें।
या “लिली।”
या “तंदूर।”
शब्दावली देखें।
या “की खोज में लगे रहो।”