मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 9:1-38

  • यीशु, लकवे के मारे हुए को ठीक करता है (1-8)

  • मत्ती को बुलाता है (9-13)

  • उपवास के बारे में सवाल (14-17)

  • याइर की बेटी; एक औरत यीशु का कपड़ा छूती है (18-26)

  • यीशु दो अंधों को और गूँगे आदमी को ठीक करता है (27-34)

  • फसल बहुत पर मज़दूर थोड़े (35-38)

9  तब यीशु नाव पर चढ़कर उस पार चला गया और अपने शहर गया।+  और देखो! कुछ लोग लकवे के मारे हुए एक आदमी को खाट पर लिटाकर ला रहे थे। जब यीशु ने उनका विश्‍वास देखा, तो उसने लकवे के मारे आदमी से कहा, “हिम्मत रख बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।”+  तब कुछ शास्त्री मन में कहने लगे, “यह आदमी परमेश्‍वर की निंदा कर रहा है।”  यह जानते हुए कि वे क्या सोच रहे हैं, यीशु ने कहा, “तुम क्यों अपने मन में बुरी बातें सोच रहे हो?+  क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना, ‘उठ और चल-फिर’?+  मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है . . .।” फिर उसने लकवे के मारे हुए से कहा, “खड़ा हो! अपनी खाट उठा और घर जा।”+  तब वह आदमी खड़ा हो गया और अपने घर चला गया।  यह देखकर लोगों पर डर छा गया और वे परमेश्‍वर की महिमा करने लगे, जिसने एक इंसान को ऐसा करने का अधिकार दिया था।  फिर जब यीशु वहाँ से आगे जा रहा था, तो उसकी नज़र मत्ती नाम के एक आदमी पर पड़ी, जो कर-वसूली के दफ्तर में बैठा था। यीशु ने उससे कहा, “आ, मेरा चेला बन जा।” तब मत्ती उठकर उसके पीछे चल दिया।+ 10  बाद में जब यीशु एक घर में खाना खा रहा था,* तो देखो! बहुत-से कर-वसूलनेवाले और उनके जैसे दूसरे पापी आए और वे भी यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे।*+ 11  मगर यह देखकर फरीसी उसके चेलों से कहने लगे, “तुम्हारा गुरु कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?”+ 12  उनकी बात सुनकर यीशु ने कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है।+ 13  इसलिए जाओ और इस बात का मतलब सीखो, ‘मैं बलिदान नहीं चाहता बल्कि यह चाहता हूँ कि तुम दूसरों पर दया करो।’+ क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।” 14  फिर यूहन्‍ना के चेले यीशु के पास आए और पूछने लगे, “हम लोग और फरीसी तो उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास क्यों नहीं रखते?”+ 15  यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दूल्हा+ अपने दोस्तों के साथ होता है, क्या उसके दोस्त मातम मनाते हैं? नहीं। मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा,+ तब वे उपवास करेंगे। 16  कोई भी पुराने कपड़े के छेद पर नए कपड़े का टुकड़ा नहीं लगाता। अगर वह लगाए तो नया टुकड़ा सिकुड़कर पुराने कपड़े को फाड़ देगा और छेद और भी बड़ा हो जाएगा।+ 17  न ही लोग नयी दाख-मदिरा पुरानी मशकों में भरते हैं। अगर वे भरें, तो मशकें फट जाएँगी और मदिरा बह जाएगी और मशकें नष्ट हो जाएँगी। मगर लोग नयी मदिरा नयी मशकों में भरते हैं और दोनों सही-सलामत रहती हैं।” 18  जब वह उन्हें ये बातें बता रहा था, तब देखो! एक अधिकारी उसके पास आया और उसने झुककर उसे प्रणाम* किया और कहा, “अब तक मेरी बच्ची मर चुकी होगी। फिर भी तू चल और उस पर अपना हाथ रख, तब वह फिर से ज़िंदा हो जाएगी।”+ 19  तब यीशु उठा और उसके पीछे गया और चेले भी उसके साथ गए। 20  और देखो! एक औरत जो 12 साल से खून बहने की बीमारी से पीड़ित थी,+ वह यीशु के पीछे आयी और उसने उसके कपड़े की झालर छू ली,+ 21  क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी, “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँ, तो अच्छी हो जाऊँगी।” 22  यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा, “बेटी, हिम्मत रख, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है।”+ उसी घड़ी वह औरत ठीक हो गयी।+ 23  जब वह उस अधिकारी के घर पहुँचा, तो उसकी नज़र बाँसुरी बजानेवालों और शोरगुल करती भीड़ पर पड़ी।+ 24  यीशु ने उनसे कहा, “तुम लोग यहाँ से जाओ, क्योंकि बच्ची मरी नहीं बल्कि सो रही है।”+ यह सुनकर वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। 25  जैसे ही भीड़ को बाहर कर दिया गया, यीशु अंदर गया और उसने बच्ची का हाथ पकड़ा+ और वह उठ बैठी।+ 26  इस बात की चर्चा उस पूरे इलाके में फैल गयी। 27  जब यीशु वहाँ से आगे जा रहा था, तो दो अंधे आदमी+ उसके पीछे-पीछे यह पुकारते हुए आने लगे, “हे दाविद के वंशज, हम पर दया कर।” 28  जब वह घर के अंदर गया, तो वे अंधे आदमी उसके पास आए। तब यीशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हें विश्‍वास है कि मैं यह कर सकता हूँ?”+ उन्होंने जवाब दिया, “हाँ, प्रभु।” 29  तब उसने उनकी आँखों को छूकर+ कहा, “जैसा तुमने विश्‍वास किया है, तुम्हारे लिए वैसा ही हो।” 30  और वे अपनी आँखों से देखने लगे। फिर यीशु ने उन्हें चेतावनी दी, “देखो, इस बारे में किसी को मत बताना।”+ 31  मगर बाहर जाने के बाद उन्होंने पूरे इलाके में उसके बारे में बता दिया। 32  फिर जब वे बाहर जा रहे थे तो देखो! लोग उसके पास एक गूँगे आदमी को ले आए, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था।+ 33  जब दुष्ट स्वर्गदूत निकाल दिया गया, तो वह आदमी बोलने लगा।+ यह देखकर भीड़ हैरान रह गयी और कहने लगी, “इसराएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।”+ 34  मगर फरीसी कहने लगे, “यह तो दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा की मदद से दुष्ट स्वर्गदूत निकालता है।”+ 35  यीशु सब शहरों और गाँवों का दौरा करने निकला और वह उनके सभा-घरों में सिखाता और राज की खुशखबरी का प्रचार करता गया। वह हर तरह की बीमारी और शरीर की कमज़ोरी दूर करता रहा।+ 36  जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा,+ क्योंकि वे ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।+ 37  तब उसने अपने चेलों से कहा, “बेशक, कटाई के लिए फसल बहुत है मगर मज़दूर थोड़े हैं।+ 38  इसलिए खेत के मालिक से बिनती करो कि वह कटाई के लिए और मज़दूर भेजे।”+

कई फुटनोट

या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
या “दंडवत।”