मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 14:1-72

  • याजक, यीशु को मार डालने की साज़िश करते हैं (1, 2)

  • यीशु पर खुशबूदार तेल उँडेला गया (3-9)

  • यहूदा, यीशु को धोखा देता है (10, 11)

  • आखिरी फसह (12-21)

  • प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत (22-26)

  • भविष्यवाणी कि पतरस इनकार कर देगा (27-31)

  • यीशु गतसमनी में प्रार्थना करता है (32-42)

  • यीशु की गिरफ्तारी (43-52)

  • महासभा के सामने मुकदमा (53-65)

  • पतरस, यीशु को जानने से इनकार कर देता है (66-72)

14  दो दिन बाद फसह+ और बिन-खमीर की रोटी का त्योहार था।+ और प्रधान याजक और शास्त्री मौका ढूँढ़ रहे थे कि कैसे यीशु को छल से पकड़ें* और मार डालें।+  पर वे कह रहे थे, “त्योहार के वक्‍त नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोग हंगामा मचा दें।”  जब वह बैतनियाह में शमौन के घर खाना खाने बैठा हुआ था* जो पहले कोढ़ी था, तब एक औरत खुशबूदार तेल की बोतल* लेकर आयी। उसमें असली जटामाँसी का खुशबूदार तेल था, जो बहुत कीमती था। उस औरत ने बोतल तोड़कर खोली और वह यीशु के सिर पर तेल उँडेलने लगी।+  यह देखकर कुछ लोग भड़क उठे और आपस में कहने लगे, “यह खुशबूदार तेल क्यों बरबाद कर दिया गया?  इसे 300 दीनार* से भी ज़्यादा दाम में बेचकर पैसा गरीबों को दिया जा सकता था!” वे उस औरत पर बहुत नाराज़ हुए।*  मगर यीशु ने कहा, “तुम क्यों इसे परेशान कर रहे हो? छोड़ दो इसे। इसने मेरी खातिर एक बढ़िया काम किया है।+  गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे+ और तुम जब चाहो उनके साथ भलाई कर सकते हो, मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।+  वह जो कर सकती थी उसने किया। उसने मेरे शरीर पर खुशबूदार तेल मलकर मेरे दफनाए जाने की तैयारी की है।+  मैं तुमसे सच कहता हूँ, सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा,+ वहाँ इस औरत की याद में इसके काम की चर्चा की जाएगी।”+ 10  यहूदा इस्करियोती जो बारहों में से एक था, निकलकर प्रधान याजकों के पास गया ताकि यीशु को उनके हाथों पकड़वा दे।+ 11  जब उन्होंने उसकी बात सुनी तो वे बहुत खुश हुए और उसे चाँदी के सिक्के देने का वादा किया।+ तब से यहूदा यीशु को पकड़वाने का मौका ढूँढ़ने लगा। 12  बिन-खमीर की रोटी के त्योहार के पहले दिन,+ जब यहूदी अपने दस्तूर के मुताबिक फसह का जानवर बलि करते थे,+ उसके चेलों ने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करें?”+ 13  तब उसने अपने दो चेलों को यह कहकर भेजा, “शहर में जाओ और तुम्हें एक आदमी पानी का घड़ा उठाए हुए मिलेगा। उसके पीछे-पीछे जाना।+ 14  वह जिस घर में जाए उस घर के मालिक से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “मेहमानों का वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने चेलों के साथ फसह का खाना खाऊँ?”’ 15  फिर वह तुम्हें ऊपर का एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो सजा हुआ होगा। वहाँ हमारे लिए तैयारी करना।” 16  तब वे चेले निकले और शहर के अंदर गए और जैसा उसने बताया था ठीक वैसा ही पाया। और उन्होंने फसह की तैयारी की। 17  शाम होने पर वह बारहों के साथ आया।+ 18  और जब वे खाना खा रहे थे,* तब यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक जो मेरे साथ खा रहा है, मेरे साथ विश्‍वासघात करके मुझे पकड़वा देगा।”+ 19  वे दुखी होने लगे और एक-एक करके उससे कहने लगे, “वह मैं तो नहीं हूँ न?” 20  उसने कहा, “वह तुम बारहों में से एक है जो मेरे साथ कटोरे में निवाला डुबोकर खा रहा है।+ 21  इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर उस आदमी का बहुत बुरा होगा जो इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात करके उसे पकड़वा देगा!+ उस आदमी के लिए अच्छा तो यह होता कि वह पैदा ही न हुआ होता।”+ 22  जब वे खाना खा रहे थे, तो यीशु ने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उसे तोड़ा और उन्हें देकर कहा, “यह लो, यह मेरे शरीर की निशानी है।”+ 23  फिर उसने एक प्याला लिया और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उन्हें दिया और उन सबने उसमें से पीया।+ 24  फिर यीशु ने उनसे कहा, “यह मेरे खून की निशानी है,+ जो करार+ को पक्का करता है और जो बहुतों की खातिर बहाया जाएगा।+ 25  मैं तुमसे सच कहता हूँ, मैं दाख-मदिरा* उस दिन तक हरगिज़ नहीं पीऊँगा, जिस दिन मैं परमेश्‍वर के राज में नयी दाख-मदिरा न पीऊँ।” 26  आखिर में उन्होंने परमेश्‍वर की तारीफ में गीत* गाए और फिर जैतून पहाड़ की तरफ निकल गए।+ 27  यीशु ने उनसे कहा, “तुम सबका विश्‍वास डगमगा जाएगा* क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा+ और भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’+ 28  लेकिन जब मुझे ज़िंदा कर दिया जाएगा, तो मैं तुमसे पहले गलील जाऊँगा।”+ 29  मगर पतरस ने उससे कहा, “चाहे इन सबका विश्‍वास क्यों न डगमगा जाए, मगर मेरा विश्‍वास नहीं डगमगाएगा।”+ 30  तब यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, आज ही, हाँ, इसी रात मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ 31  मगर पतरस बार-बार कहने लगा, “अगर मुझे तेरे साथ मरना पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार नहीं करूँगा।” बाकी चेले भी यही कहने लगे।+ 32  फिर वे गतसमनी नाम की जगह आए और उसने अपने चेलों से कहा, “मैं वहाँ प्रार्थना करने जा रहा हूँ, तुम यहीं बैठे रहना।”+ 33  फिर उसने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना को अपने साथ लिया।+ वह मन-ही-मन बेचैन हो उठा* और दुख से बेहाल होने लगा। 34  उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत दुखी है,+ यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत हो रही है। यहीं ठहरो और जागते रहो।”+ 35  फिर वह थोड़ा आगे गया और ज़मीन पर गिरकर प्रार्थना करने लगा कि अगर हो सके तो यह वक्‍त टल जाए। 36  उसने कहा, “हे अब्बा, हे पिता,+ तेरे लिए सबकुछ मुमकिन है। यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर फिर भी जो मैं चाहता हूँ वह नहीं, बल्कि वही हो जो तू चाहता है।”+ 37  जब वह चेलों के पास वापस आया, तो उसने देखा कि वे सो रहे हैं। उसने पतरस से कहा, “शमौन, तू सो रहा है? क्या तुझमें इतनी भी ताकत नहीं कि थोड़ी देर मेरे साथ जाग सके?+ 38  जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।+ दिल तो बेशक तैयार* है, मगर शरीर कमज़ोर है।”+ 39  वह दोबारा गया और उसने फिर से वही प्रार्थना की।+ 40  वह फिर चेलों के पास आया और उसने उन्हें सोता हुआ पाया क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। वे नहीं जानते थे कि उसे क्या जवाब दें। 41  फिर वह तीसरी बार उनके पास आया और उसने कहा, “तुम ऐसे वक्‍त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! बहुत हुआ! देखो, वह घड़ी आ गयी है!+ अब इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात करके उसे पापियों के हाथ सौंप दिया जाएगा। 42  उठो, आओ चलें। देखो, मुझसे गद्दारी करनेवाला पास आ गया है।”+ 43  वह बोल ही रहा था कि तभी यहूदा आ गया, जो उन बारहों में से एक था। उसके साथ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए लोगों की भीड़ थी जिसे प्रधान याजकों, शास्त्रियों और मुखियाओं ने भेजा था।+ 44  उसके साथ विश्‍वासघात करनेवाले ने यह कहकर उन्हें पहले से एक निशानी दी थी, “जिसे मैं चूमूँगा, वही है। उसे गिरफ्तार कर लेना और सावधानी से ले जाना।” 45  वह सीधे यीशु की तरफ आया और पास आकर उसने कहा, “रब्बी!” और उसे प्यार से चूमा। 46  तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और हिरासत में ले लिया। 47  मगर वहाँ जो खड़े थे उनमें से एक ने अपनी तलवार खींचकर महायाजक के दास पर वार किया और उसका कान उड़ा दिया।+ 48  यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ?+ 49  मैं हर दिन तुम्हारे बीच मंदिर में सिखाया करता था,+ फिर भी तुमने मुझे हिरासत में नहीं लिया। मगर यह सब इसलिए हुआ है ताकि शास्त्र के वचन पूरे हों।”+ 50  तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।+ 51  मगर एक नौजवान जो सिर्फ एक बढ़िया मलमल का कपड़ा ओढ़े था, उसके पीछे-पीछे आने लगा। लेकिन जब भीड़ ने उसे पकड़ने की कोशिश की, 52  तो वह अपना मलमल का कपड़ा छोड़कर नंगा* भाग गया। 53  अब वे यीशु को महायाजक के पास ले गए+ और सारे प्रधान याजक, मुखिया और शास्त्री वहाँ इकट्ठा हुए।+ 54  मगर पतरस कुछ दूरी पर रहकर उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन तक आया। वह घर के सेवकों के साथ बैठ गया और आग तापने लगा।+ 55  प्रधान याजक और पूरी महासभा यीशु को मार डालने के लिए उसके खिलाफ झूठी गवाही ढूँढ़ रही थी, मगर उन्हें ऐसी एक भी गवाही नहीं मिली।+ 56  बेशक, बहुत-से लोग उसके खिलाफ झूठी गवाही दे रहे थे,+ मगर उनके बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे। 57  कुछ लोगों ने खड़े होकर उसके खिलाफ यह झूठी गवाही दी, 58  “हमने इसे यह कहते सुना है कि मैं हाथ के बनाए इस मंदिर को ढा दूँगा और तीन दिन के अंदर दूसरा मंदिर खड़ा कर दूँगा जो हाथों से नहीं बना होगा।”+ 59  मगर इस बारे में भी उनके बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे। 60  तब महायाजक उनके बीच खड़ा हुआ और उसने यीशु से पूछा, “क्या तू जवाब में कुछ नहीं कहेगा? क्या तू सुन नहीं रहा कि ये तुझ पर क्या-क्या इलज़ाम लगा रहे हैं?”+ 61  मगर तब भी यीशु चुप रहा और उसने कोई जवाब नहीं दिया।+ एक बार फिर महायाजक उससे सवाल करने लगा और उससे कहा, “क्या तू परम-प्रधान परमेश्‍वर का बेटा, मसीह है?” 62  यीशु ने कहा, “हाँ मैं हूँ। और तुम लोग इंसान के बेटे+ को शक्‍तिशाली परमेश्‍वर के दाएँ हाथ बैठा+ और आकाश के बादलों के साथ आता देखोगे।”+ 63  यह सुनते ही महायाजक ने अपना कपड़ा फाड़ा और कहा, “अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है?+ 64  तुम लोगों ने ये निंदा की बातें सुनी हैं। अब तुम्हारा क्या फैसला है?”* उन सबने कहा कि यह मौत की सज़ा के लायक है।+ 65  कुछ उस पर थूकने लगे+ और उसका मुँह ढाँपकर उसे घूँसे मारने लगे और उससे कहने लगे, “भविष्यवाणी कर, तुझे किसने मारा!” और पहरेदारों ने उसके मुँह पर थप्पड़ मारे और उसे ले गए।+ 66  जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की एक दासी आयी।+ 67  पतरस को आग तापते देख, वह उस पर नज़रें गड़ाकर बोली, “तू भी उस नासरी यीशु के साथ था।” 68  मगर उसने यह कहकर इनकार कर दिया, “न तो मैं उसे जानता हूँ न मुझे यह समझ आ रहा है कि तू क्या कह रही है।” तब वह बाहर फाटक* के पास चला गया। 69  वहाँ उस दासी ने उसे देखा और वहाँ खड़े लोगों से एक बार फिर कहा, “यह भी उनमें से एक है।” 70  पतरस फिर से इनकार करने लगा। थोड़ी देर बाद आस-पास खड़े लोग फिर से पतरस से कहने लगे, “बेशक तू भी उनमें से एक है क्योंकि तू एक गलीली है।” 71  मगर वह खुद को कोसने लगा और कसम खाकर कहने लगा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता जिसकी तुम बात कर रहे हो!” 72  उसी घड़ी एक मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी+ और पतरस को यीशु की यह बात याद आयी, “मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ तब उससे और बरदाश्‍त नहीं हुआ और वह फूट-फूटकर रोने लगा।

कई फुटनोट

या “गिरफ्तार करें।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”
यह बोतल सिलखड़ी पत्थर की थी जो संगमरमर जैसा होता है।
अति. ख14 देखें।
या “उस पर भड़क उठे; उसे डाँटा।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
शा., “अंगूर की बेल की उपज से बनी यह चीज़।”
या “भजन।”
शा., “तुम ठोकर खाओगे।”
या “उसकी सदमे की सी हालत हो गयी।”
या “उत्सुक।”
या “कम कपड़ों में।”
या “तुम क्या सोचते हो?”
या “ओसारे।”