मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 2:1-28

  • यीशु, लकवे के मारे हुए को ठीक करता है (1-12)

  • लेवी को बुलाता है (13-17)

  • उपवास के बारे में सवाल (18-22)

  • यीशु ‘सब्त के दिन का प्रभु’ (23-28)

2  मगर कुछ दिन बाद, यीशु फिर कफरनहूम आया और चारों तरफ खबर फैल गयी कि वह घर पर है।+  वहाँ लोगों की भीड़ लग गयी और घर लोगों से इतना भर गया कि दरवाज़े के पास भी जगह नहीं बची। यीशु उन्हें परमेश्‍वर के वचन सुनाने लगा।+  तब लोग एक लकवे के मारे हुए को वहाँ लाए, जिसे चार आदमी उठाए हुए थे।+  मगर भीड़ की वजह से वे उसे अंदर यीशु के पास नहीं ले जा सके। इसलिए जहाँ यीशु बैठा था, उन्होंने उसके ऊपर घर की छत को खोदा और खोल दिया और लकवे के मारे हुए को उसकी खाट समेत नीचे उतार दिया।  जब यीशु ने उनका विश्‍वास देखा,+ तो उसने लकवे के मारे आदमी से कहा, “बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।”+  वहाँ कुछ शास्त्री बैठे थे जो मन में कहने लगे,+  “यह आदमी क्या कह रहा है! यह तो परमेश्‍वर की निंदा कर रहा है। परमेश्‍वर के सिवा और कौन पापों को माफ कर सकता है?”+  मगर यीशु ने फौरन मन में जान लिया कि वे क्या सोच रहे हैं। इसलिए उसने कहा, “तुम क्यों अपने मन में ये बातें सोच रहे हो?+  इस लकवे के मारे आदमी से क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना, ‘उठ, अपनी खाट उठा और चल-फिर’? 10  मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे+ को धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है . . .।”+ उसने लकवे के मारे हुए से कहा, 11  “मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो! अपनी खाट उठा और घर जा।” 12  तब वह आदमी खड़ा हो गया और फौरन अपनी खाट उठाकर सबके सामने बाहर निकल गया। यह देखकर सभी दंग रह गए और यह कहकर परमेश्‍वर की महिमा करने लगे, “हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा।”+ 13  फिर यीशु वहाँ से निकलकर झील के किनारे गया और लोगों की भीड़ उसके पास आती रही और वह उन्हें सिखाने लगा। 14  फिर चलते-चलते उसकी नज़र हलफई के बेटे लेवी पर पड़ी जो कर-वसूली के दफ्तर में बैठा था। उसने उससे कहा, “आ, मेरा चेला बन जा।” और वह उठकर उसके पीछे चल दिया।+ 15  बाद में वह लेवी के घर खाने पर गया था* और बहुत-से कर-वसूलनेवाले और उनके जैसे दूसरे पापी, यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे थे।* ये लोग बड़ी तादाद में वहाँ जमा थे। उनमें से कई ऐसे थे जो यीशु के पीछे चलते थे।+ 16  मगर जब फरीसी-दल के कुछ शास्त्रियों ने देखा कि वह पापियों और कर-वसूलनेवालों के साथ खाना खा रहा है, तो वे उसके चेलों से कहने लगे, “यह कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ खाता है?” 17  यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।”+ 18  यूहन्‍ना के चेले और फरीसी उपवास किया करते थे। इसलिए वे यीशु के पास आए और उन्होंने पूछा, “क्या बात है कि यूहन्‍ना के चेले और फरीसियों के चेले उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास नहीं रखते?”+ 19  तब यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दूल्हा+ अपने दोस्तों के साथ होता है, क्या उसके दोस्त उपवास रखते हैं? नहीं। जब तक दूल्हा उनके साथ रहता है, वे उपवास नहीं रखते। 20  मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा,+ तब वे उपवास करेंगे। 21  कोई भी पुराने कपड़े के छेद पर नए कपड़े का टुकड़ा नहीं लगाता। अगर वह लगाए तो नया टुकड़ा सिकुड़कर पुराने कपड़े को फाड़ देगा और छेद और भी बड़ा हो जाएगा।+ 22  न ही कोई नयी दाख-मदिरा पुरानी मशकों में भरता है। अगर वह भरे, तो मदिरा मशकों को फाड़ देगी और मदिरा के साथ-साथ मशकें भी नष्ट हो जाएँगी। मगर लोग नयी मदिरा नयी मशकों में भरते हैं।” 23  जब यीशु सब्त के दिन खेतों से होकर जा रहा था तो उसके चेले चलते-चलते अनाज की बालें तोड़ने लगे।+ 24  तब फरीसियों ने उससे कहा, “यह देख! ये सब्त के दिन ऐसा काम क्यों कर रहे हैं जो कानून के खिलाफ है?” 25  मगर यीशु ने कहा, “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे और उनके पास खाने को कुछ नहीं था, तब उसने क्या किया?+ 26  क्या तुमने प्रधान याजक अबियातार+ वाले किस्से में नहीं पढ़ा कि दाविद परमेश्‍वर के भवन में गया और उसने चढ़ावे की रोटियाँ* खायीं और कुछ अपने साथियों को भी दीं जबकि कानून के मुताबिक याजकों के सिवा कोई और ये रोटियाँ नहीं खा सकता था?”+ 27  फिर यीशु ने कहा, “सब्त का दिन इंसान के लिए बना है,+ न कि इंसान सब्त के दिन के लिए। 28  इंसान का बेटा तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।”+

कई फुटनोट

या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
या “नज़राने की रोटी।”