मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 5:1-43

  • यीशु दुष्ट स्वर्गदूतों को सूअरों में भेजता है (1-20)

  • याइर की बेटी; एक औरत यीशु का कपड़ा छूती है (21-43)

5  फिर वे झील के उस पार गिरासेनियों के इलाके में पहुँचे।+  जैसे ही यीशु नाव से उतरा, एक आदमी जो एक दुष्ट स्वर्गदूत के वश में था, कब्रों* के बीच से निकलकर उसके पास आया।  यह आदमी कब्रों के बीच भटकता फिरता था। कोई भी उसे बाँधकर रखने में कामयाब नहीं हो सका था, यहाँ तक कि ज़ंजीरों से भी नहीं।  उसे कई बार बेड़ियों और ज़ंजीरों से बाँधा गया था, मगर वह ज़ंजीरें तोड़ डालता और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर देता था। किसी में इतनी ताकत नहीं थी कि उसे काबू में कर सके।  वह रात-दिन कब्रों और पहाड़ों के बीच चिल्लाता रहता और पत्थरों से खुद को घायल करता रहता।  लेकिन जैसे ही उसने दूर से यीशु को देखा, वह भागकर उसके पास गया और उसे झुककर प्रणाम किया।+  फिर उसने ज़ोर से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परम-प्रधान परमेश्‍वर के बेटे, मेरा तुझसे क्या लेना-देना? मैं परमेश्‍वर की शपथ धराकर तुझसे कहता हूँ, मुझे मत तड़पा।”+  उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि यीशु उससे कह रहा था, “हे दुष्ट स्वर्गदूत, इस आदमी में से बाहर निकल जा।”+  मगर यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा, “मेरा नाम पलटन है क्योंकि हम बहुत सारे हैं।” 10  और उसने बार-बार यीशु से बिनती की कि वह उन्हें उस इलाके से बाहर न भेजे।+ 11  उस पहाड़ पर सूअरों+ का एक बड़ा झुंड चर रहा था।+ 12  इसलिए दुष्ट स्वर्गदूतों ने उससे बिनती की, “हमें उन सूअरों में भेज दे ताकि हम उनमें समा जाएँ।” 13  उसने उन्हें जाने की इजाज़त दी। तब दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी में से बाहर निकल गए और उन सूअरों में समा गए और करीब 2,000 सूअरों का वह पूरा झुंड तेज़ी से दौड़ा और पहाड़ की कगार से नीचे झील में जा गिरा और सारे सूअर डूबकर मर गए। 14  मगर उन्हें चरानेवाले वहाँ से भाग गए और उन्होंने शहर और देहात में जाकर इसकी खबर दी। और लोग देखने आए कि वहाँ क्या हुआ था।+ 15  वे यीशु के पास आए और उन्होंने देखा कि वह आदमी जो दुष्ट स्वर्गदूत के कब्ज़े में था, वहाँ बैठा हुआ है। यह वही आदमी था जिसमें पहले पलटन समायी हुई थी। अब वह कपड़े पहने है और उसकी दिमागी हालत ठीक हो गयी है। और लोग बहुत डर गए। 16  जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, उन्होंने लोगों को बताया कि जो आदमी दुष्ट स्वर्गदूतों के कब्ज़े में था उसके साथ यह सब कैसे हुआ और सूअरों का क्या हाल हुआ। 17  इसलिए वे यीशु से बिनती करने लगे कि वह उनके इलाके से चला जाए।+ 18  जब यीशु नाव पर चढ़ रहा था, तो वह आदमी जिसमें पहले दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, उससे बिनती करने लगा कि वह उसे अपने साथ आने दे।+ 19  मगर यीशु ने उसे नहीं आने दिया बल्कि उससे कहा, “अपने घर चला जा और अपने रिश्‍तेदारों को बता कि यहोवा* ने तेरे लिए क्या-क्या किया और तुझ पर कितनी दया की है।” 20  तब वह आदमी वहाँ से चला गया और दिकापुलिस* में उन सारे कामों का ऐलान करने लगा जो यीशु ने उसके लिए किए थे और सब लोग ताज्जुब करने लगे। 21  जब यीशु नाव से इस पार लौटा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास जमा हो गयी।+ वह झील के किनारे था। 22  वहाँ सभा-घर का एक अधिकारी आया जिसका नाम याइर था। जैसे ही उसने यीशु को देखा वह उसके पैरों पर गिर पड़ा।+ 23  वह बार-बार उससे मिन्‍नत करने लगा, “मेरी बच्ची की हालत बहुत खराब है।* मेहरबानी करके मेरे साथ चल और उस पर अपने हाथ रख+ ताकि वह अच्छी हो जाए और जीती रहे।” 24  तब यीशु उसके साथ चल दिया। एक बड़ी भीड़ उसके पीछे थी और लोग उस पर गिरे जा रहे थे। 25  वहाँ एक ऐसी औरत थी जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी।+ 26  उसने कई वैद्यों से इलाज करवा-करवाकर बहुत दुख उठाया था और उसके पास जो कुछ था, वह सब खर्च करने के बाद भी वह ठीक नहीं हुई, उलटा उसकी हालत और ज़्यादा बिगड़ गयी थी। 27  जब उसने यीशु के बारे में चर्चा सुनी, तो वह भीड़ में उसके पीछे से आयी और उसके कपड़े को छुआ+ 28  क्योंकि वह कहती थी, “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँ, तो अच्छी हो जाऊँगी।”+ 29  उसी घड़ी उसका खून बहना बंद हो गया और उसने महसूस किया कि उसके शरीर की वह दर्दनाक बीमारी ठीक हो गयी है। 30  उसी घड़ी यीशु ने जान लिया कि उसके अंदर से शक्‍ति निकली है+ और उसने भीड़ में पीछे मुड़कर कहा, “मेरे कपड़ों को किसने छुआ?”+ 31  मगर चेलों ने कहा, “तू देख रहा है कि भीड़ तुझे कैसे दबाए जा रही है, फिर भी तू कह रहा है, ‘मुझे किसने छुआ?’” 32  लेकिन यीशु चारों तरफ देखने लगा कि किसने ऐसा किया है। 33  तब वह औरत, यह जानते हुए कि वह ठीक हो गयी है, डरती-काँपती हुई आयी और उसके आगे गिर पड़ी और उसे सबकुछ सच-सच बता दिया। 34  यीशु ने उससे कहा, “बेटी, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है। जा, अब और चिंता मत करना।+ यह दर्दनाक बीमारी तुझे फिर कभी न हो।”+ 35  जब वह बोल ही रहा था, तो सभा-घर के अधिकारी के घर से कुछ आदमी आए और कहने लगे, “तेरी बेटी मर गयी! अब गुरु को और क्यों परेशान करें?”+ 36  मगर जब उनकी बातें यीशु के कानों में पड़ीं, तो उसने सभा-घर के अधिकारी से कहा, “डर मत, बस विश्‍वास रख।”+ 37  फिर उसने पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना के सिवा किसी और को अपने साथ नहीं आने दिया।+ 38  जब वे सभा-घर के अधिकारी के घर पहुँचे, तो उसने देखा कि वहाँ काफी होहल्ला मचा है। लोग ज़ोर-ज़ोर से रो रहे हैं, मातम मना रहे हैं।+ 39  यीशु ने अंदर जाने के बाद उनसे कहा, “तुम क्यों रो रहे हो और होहल्ला मचा रहे हो? बच्ची मरी नहीं बल्कि सो रही है।”+ 40  यह सुनकर वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। मगर यीशु ने उन सबको बाहर भेज दिया और लड़की के माँ-बाप और अपने साथियों को लेकर वह अंदर गया जहाँ लड़की थी। 41  फिर यीशु ने बच्ची का हाथ पकड़कर कहा, “तलीता कूमी,” जिसका मतलब है, “बच्ची, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ!”+ 42  उसी वक्‍त वह लड़की उठकर चलने-फिरने लगी। (वह 12 साल की थी।) यह देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 43  मगर यीशु ने बार-बार उन्हें सख्ती से कहा* कि वे इस बारे में किसी को न बताएँ+ और फिर कहा कि लड़की को कुछ खाने के लिए दिया जाए।

कई फुटनोट

या “स्मारक कब्रों।”
अति. क5 देखें।
या “दस शहरों का इलाका।”
या “मरने पर है।”
या “कड़ा आदेश दिया।”