मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 6:1-56

  • यीशु अपने नगर में ठुकराया गया (1-6)

  • 12 चेलों को प्रचार की हिदायतें (7-13)

  • यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले की मौत (14-29)

  • यीशु ने 5,000 को खिलाया (30-44)

  • यीशु पानी पर चलता है (45-52)

  • गन्‍नेसरत में बीमारों को ठीक करता है (53-56)

6  फिर यीशु वहाँ से निकला और अपने इलाके में आया जहाँ वह पला-बढ़ा था+ और उसके चेले भी उसके साथ आए।  जब सब्त का दिन आया, तो वह सभा-घर में सिखाने लगा। उसकी बात सुननेवाले ज़्यादातर लोग हैरान थे। उन्होंने कहा, “इस आदमी ने ये बातें कहाँ से सीखीं?+ भला यह बुद्धि इसे कहाँ से मिली और यह ऐसे शक्‍तिशाली काम कैसे कर पा रहा है?+  यह तो वही बढ़ई है न,+ जो मरियम का बेटा+ और याकूब, यूसुफ, यहूदा और शमौन का भाई है!+ और इसकी बहनें यहाँ हमारे बीच ही रहती हैं न!” इसलिए उन्होंने उस पर यकीन नहीं किया।  मगर यीशु ने उनसे कहा, “एक भविष्यवक्‍ता का हर कहीं आदर किया जाता है, सिर्फ उसके अपने इलाके, घर और रिश्‍तेदारों के बीच नहीं किया जाता।”+  इसलिए उसने चंद बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें ठीक करने के सिवा वहाँ और कोई शक्‍तिशाली काम नहीं किया।  दरअसल उनके विश्‍वास की कमी देखकर उसे ताज्जुब हुआ। इसके बाद वह आस-पास के गाँवों में जाकर सिखाने लगा।+  फिर यीशु ने उन बारहों को बुलाया और वह उन्हें दो-दो की जोड़ी में भेजने लगा।+ उसने उन्हें दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार भी दिया।+  उसने ये हिदायतें भी दीं कि वे सफर के लिए एक लाठी को छोड़ और कुछ न लें, न रोटी, न खाने की पोटली, न अपने कमरबंद में पैसे,*+  न ही दो जोड़ी कपड़े लें* बल्कि जूतियाँ कस लें। 10  यीशु ने उनसे यह भी कहा, “जब भी तुम किसी घर में जाओ, तो वहाँ तब तक ठहरो जब तक तुम उस इलाके में रहो।+ 11  अगर किसी इलाके में लोग तुम्हें स्वीकार नहीं करें या तुम्हारी नहीं सुनें, तो वहाँ से बाहर निकलते वक्‍त अपने पैरों की धूल झाड़ देना ताकि उन्हें गवाही मिले।”+ 12  तब वे निकल पड़े और प्रचार करने लगे कि लोग पश्‍चाताप करें।+ 13  उन्होंने कई दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला+ और कई बीमारों पर तेल मलकर उन्हें ठीक किया। 14  यह बात राजा हेरोदेस के कानों में पड़ी क्योंकि यीशु का नाम मशहूर हो गया था। लोग कहते थे, “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला, जो मर गया था, ज़िंदा कर दिया गया है और इसीलिए वह ऐसे शक्‍तिशाली काम कर रहा है!”+ 15  मगर दूसरे कहते थे, “यह एलियाह है।” कुछ और लोग कहते थे, “यह तो पुराने ज़माने के भविष्यवक्‍ताओं जैसा कोई भविष्यवक्‍ता है।”+ 16  मगर जब हेरोदेस ने यह बात सुनी, तो उसने कहा, “जिस यूहन्‍ना का सिर मैंने कटवाया था, वह फिर से ज़िंदा हो गया है।” 17  हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास से शादी कर ली थी। हेरोदियास की वजह से हेरोदेस ने यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर लिया था और उसे ज़ंजीरों में बाँधकर जेल में डलवा दिया था।+ 18  क्योंकि यूहन्‍ना हेरोदेस से कहा करता था, “तूने अपने भाई की पत्नी को अपना बनाकर कानून तोड़ा है।”+ 19  इसलिए हेरोदियास, यूहन्‍ना से नफरत करने लगी थी। वह उसे मार डालना चाहती थी, मगर ऐसा नहीं कर पा रही थी। 20  क्योंकि हेरोदेस जानता था कि यूहन्‍ना नेक और पवित्र इंसान है।+ इसलिए वह उससे डरता था और उसे बचाने की कोशिश करता था। वह यूहन्‍ना की बातें सुनने के बाद बड़ी उलझन में पड़ जाता था कि क्या करे। फिर भी वह खुशी से उसकी सुनता था। 21  मगर एक दिन वह मौका आया जिसकी हेरोदियास को तलाश थी। उस दिन हेरोदेस का जन्मदिन था और उसने शाम की बड़ी दावत रखी+ जिसमें उसने बड़े-बड़े अधिकारियों और सेनापतियों और गलील के जाने-माने लोगों को बुलाया।+ 22  तब हेरोदियास की बेटी वहाँ आयी और उसने नाचकर हेरोदेस और दावत में मौजूद* बाकी लोगों का दिल खुश किया। राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे माँग, मैं तुझे दे दूँगा।” 23  राजा ने कसम खायी, “तू जो चाहे माँग ले, मैं अपना आधा राज तक तुझे दे दूँगा।” 24  तब लड़की ने बाहर जाकर अपनी माँ से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” उसकी माँ ने कहा, “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” 25  उसी वक्‍त वह लड़की तेज़ी से अंदर राजा के पास गयी और उसने कहा, “मैं चाहती हूँ कि तू अभी, इसी वक्‍त मुझे एक थाल में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।”+ 26  यह सुनकर राजा बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने जो कसमें खायी थीं और जो मेहमान वहाँ थे,* उनकी वजह से उसने लड़की की गुज़ारिश नहीं ठुकरायी। 27  राजा ने फौरन एक अंगरक्षक को भेजा और उसे यूहन्‍ना का सिर लाने का हुक्म दिया। उस आदमी ने जाकर जेल में यूहन्‍ना का सिर काट दिया 28  और उसे एक थाल में रखकर लड़की को दे दिया और लड़की ने उसे ले जाकर अपनी माँ को दिया। 29  जब यूहन्‍ना के चेलों को इसकी खबर मिली, तो वे आकर उसकी लाश ले गए और उसे एक कब्र* में रख दिया। 30  यीशु के प्रेषित उसके पास इकट्ठा हुए और उन्होंने लोगों के बीच जो-जो काम किए थे और उन्हें जो-जो सिखाया था, वह सब उसे बताया।+ 31  तब यीशु ने उनसे कहा, “आओ, तुम सब अलग किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो,”+ क्योंकि वहाँ बहुत लोग आ-जा रहे थे और उन्हें खाने तक की फुरसत नहीं मिली थी। 32  इसलिए वे एक नाव पर चढ़कर किसी एकांत जगह के लिए निकल पड़े।+ 33  मगर लोगों ने उन्हें जाते देख लिया और बहुतों को इस बात का पता चल गया। तब सब शहरों से लोग दौड़कर उनसे पहले ही उस जगह जा पहुँचे। 34  जब यीशु नाव से उतरा तो उसने लोगों की एक भीड़ देखी और उन्हें देखकर वह तड़प उठा,+ क्योंकि वे ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो।+ और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।+ 35  अब काफी वक्‍त बीत चुका था और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह जगह सुनसान है और बहुत देर हो चुकी है।+ 36  इसलिए इन्हें विदा कर ताकि वे आस-पास के देहातों और गाँवों में जाकर खाने के लिए कुछ खरीद लें।”+ 37  मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” यह सुनकर चेलों ने कहा, “क्या हम 200 दीनार* की रोटियाँ खरीदें और इन्हें खाने को दें?”+ 38  यीशु ने उनसे कहा, “जाओ देखो, तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं।” पता लगाकर उन्होंने कहा, “पाँच। और दो मछलियाँ भी हैं।”+ 39  फिर यीशु ने सब लोगों से कहा कि वे अलग-अलग टोलियाँ बनाकर हरी घास पर आराम से बैठ जाएँ।+ 40  वे सौ-सौ और पचास-पचास की टोलियों में बैठ गए। 41  यीशु ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया।+ फिर वह रोटियाँ तोड़कर चेलों को देने लगा ताकि वे उन्हें लोगों में बाँटें। उसने वे दो मछलियाँ भी सबके लिए बाँट दीं। 42  तब सब लोगों ने जी-भरकर खाया 43  और उन्होंने बची हुई रोटियों के टुकड़े उठाए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं। इनके अलावा मछलियाँ भी थीं।+ 44  और रोटियाँ खानेवालों में आदमियों की गिनती 5,000 थी। 45  फिर यीशु ने बिना देर किए अपने चेलों से कहा कि वे नाव पर चढ़ जाएँ और उस पार बैतसैदा चले जाएँ, जबकि वह खुद भीड़ को विदा करने लगा।+ 46  मगर उनको अलविदा कहने के बाद, वह प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गया।+ 47  अब शाम ढल चुकी थी और नाव झील के बीच थी, मगर वह अकेला पहाड़ पर था।+ 48  उसने देखा कि तेज़ आँधी चल रही है और उसके चेलों को नाव खेने में बड़ी मुश्‍किल हो रही है क्योंकि हवा का रुख उनके खिलाफ था। तब रात के करीब चौथे पहर* वह झील पर चलते हुए उनकी तरफ आया। मगर ऐसा लग रहा था जैसे वह उनसे आगे जाना चाहता है।* 49  जैसे ही चेलों ने देखा कि वह पानी पर चल रहा है, उन्होंने सोचा, “यह ज़रूर हमारा वहम है!” और वे ज़ोर से चिल्ला उठे। 50  क्योंकि वह उन सबको नज़र आ रहा था और वे घबरा गए। मगर उसने फौरन उनसे बात की और कहा, “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।”+ 51  फिर यीशु भी उनके पास नाव पर चढ़ गया और आँधी थम गयी। वे मन-ही-मन बहुत हैरान थे 52  क्योंकि रोटियों का चमत्कार देखने के बाद भी वे उसके मायने नहीं समझ सके थे। उनके मन अभी-भी समझने में मंद थे। 53  जब वे इस पार किनारे पहुँचे, तो गन्‍नेसरत आए और वहीं पास में नाव का लंगर डाला।+ 54  मगर जैसे ही वे नाव से उतरे, लोगों ने यीशु को पहचान लिया। 55  और वे उस पूरे इलाके में यहाँ-वहाँ दौड़े गए और बीमारों को खाट पर डालकर लाते गए और उन्हें जहाँ-जहाँ यीशु के होने की खबर मिली वे उन्हें वहाँ ले गए। 56  यीशु जिस किसी गाँव, शहर या देहात में जाता, लोग वहाँ के बाज़ारों में अपने बीमारों को रख देते और उससे बिनती करते कि वह उन्हें अपने कपड़े की झालर को ही छू लेने दे।+ और जितनों ने उसकी झालर छुई, वे सभी ठीक हो गए।

कई फुटनोट

शा., “ताँबा।”
शा., “दो-दो कपड़े न पहनें।”
या “मेज़ से टेक लगाए।”
या “जो मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
या “स्मारक कब्र।”
अति. ख14 देखें।
यानी सुबह करीब 3 बजे से करीब 6 बजे तक।
या “आगे निकलनेवाला है।”