मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 7:1-37

  • इंसानी परंपराओं का परदाफाश (1-13)

  • दिल से निकलनेवाली बातें ही दूषित करती हैं (14-23)

  • सीरिया के फीनीके की रहनेवाली औरत का विश्‍वास (24-30)

  • बहरा आदमी ठीक किया गया (31-37)

7  अब फरीसी और कुछ शास्त्री जो यरूशलेम से वहाँ आए थे, उसके पास जमा हुए।+  उन्होंने देखा कि उसके कुछ चेले दूषित हाथों से यानी बिना हाथ धोए* खाना खाते हैं।  (दरअसल फरीसी और सारे यहूदी अपने पुरखों की ठहरायी परंपराओं को सख्ती से मानते हैं। इसलिए वे तब तक खाना नहीं खाते जब तक कि कोहनी तक हाथ न धो लें।  और बाज़ार से लौटने पर वे तब तक नहीं खाते जब तक कि वे पानी से खुद को शुद्ध न कर लें। ऐसी कई और परंपराएँ उन्हें मिली हैं जिन्हें वे सख्ती से मानते हैं। जैसे प्यालों, सुराहियों और ताँबे के बरतनों को पानी में डुबकी दिलाना।)+  इन फरीसियों और शास्त्रियों ने यीशु से पूछा, “क्यों तेरे चेले हमारे पुरखों की परंपराएँ नहीं मानते और दूषित हाथों से खाना खाते हैं?”+  यीशु ने उनसे कहा, “यशायाह ने तुम कपटियों के बारे में बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी, जैसा लिखा है, ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है।+  ये बेकार ही मेरी उपासना करते हैं क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्‍वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।’+  तुम परमेश्‍वर की आज्ञाओं को छोड़ देते हो और इंसानों की परंपराओं को पकड़े रहते हो।”+  फिर उसने कहा, “तुम अपनी परंपरा को बनाए रखने के लिए कितनी चतुराई से परमेश्‍वर की आज्ञा टाल देते हो।+ 10  मिसाल के लिए, मूसा ने कहा था, ‘अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना,’+ और ‘जो कोई अपने पिता या अपनी माँ को बुरा-भला कहता है* वह मार डाला जाए।’+ 11  मगर तुम कहते हो, ‘अगर एक आदमी अपने पिता या अपनी माँ से कहता है, “मेरे पास जो कुछ है जिससे तुझे फायदा हो सकता था वह कुरबान है (यानी परमेश्‍वर के लिए रखी गयी भेंट है),” तो यह गलत नहीं।’ 12  ऐसा करके तुम उसे अपने पिता या अपनी माँ के लिए कुछ भी नहीं करने देते।+ 13  इस तरह तुम अपनी परंपराएँ सिखाकर परमेश्‍वर के वचन को रद्द कर देते हो।+ तुम ऐसे बहुत-से काम करते हो।”+ 14  फिर उसने भीड़ को दोबारा अपने पास बुलाया और उनसे कहा, “तुम सब मेरी बात ध्यान से सुनो और इसके मायने समझो।+ 15  ऐसी कोई चीज़ नहीं जो बाहर से इंसान के अंदर जाकर उसे दूषित कर सके। मगर जो चीज़ें इंसान के अंदर से निकलती हैं, वे ही उसे दूषित करती हैं।”+ 16 * 17  जब वह भीड़ से दूर एक घर में गया, तो उसके चेले उस मिसाल के बारे में उससे सवाल पूछने लगे।+ 18  तब उसने चेलों से कहा, “क्या तुम भी उनकी तरह समझ नहीं रखते? क्या तुम नहीं जानते कि बाहर की कोई भी चीज़ जो इंसान के अंदर जाती है, उसे दूषित नहीं कर सकती? 19  क्योंकि वह उसके दिल में नहीं बल्कि उसके पेट में जाती है और फिर मल-कुंड में निकल जाती है?” इस तरह उसने खाने की सभी चीज़ों को शुद्ध ठहराया। 20  इसके बाद उसने कहा, “इंसान के अंदर से जो निकलता है, वही उसे दूषित करता है।+ 21  क्योंकि इंसानों के अंदर से, उनके दिलों से+ ही बुरे विचार निकलते हैं। इनकी वजह से नाजायज़ यौन-संबंध,* चोरी, कत्ल, 22  व्यभिचार,* लालच, दुष्ट काम, धोखाधड़ी, निर्लज्ज काम,* ईर्ष्या,* निंदा, घमंड और मूर्खता की जाती है। 23  ये सारी बुराइयाँ इंसान के अंदर से निकलती हैं और उसे दूषित करती हैं।” 24  वहाँ से उठकर यीशु सोर और सीदोन के इलाके में गया।+ वहाँ वह एक घर में गया और नहीं चाहता था कि कोई उसके बारे में जाने। फिर भी, वह लोगों की नज़र से छिप न सका। 25  वहाँ एक औरत थी, जिसकी छोटी बच्ची में दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। जैसे ही यीशु वहाँ आया, उसके आने की खबर सुनकर वह औरत उसके पास आयी और उसके पैरों पर गिर पड़ी।+ 26  वह औरत यूनानी थी और सीरिया प्रांत के फीनीके इलाके की रहनेवाली थी। वह उससे बिनती करती रही कि मेरी बेटी में से दुष्ट स्वर्गदूत निकाल दे। 27  मगर यीशु ने उससे कहा, “पहले बच्चों को जी-भरके खा लेने दो क्योंकि बच्चों की रोटी लेकर पिल्लों के आगे फेंकना सही नहीं।”+ 28  मगर औरत ने कहा, “सही कहा साहब, मगर फिर भी पिल्ले बच्चों की मेज़ से गिरे टुकड़े तो खाते ही हैं।” 29  यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तूने जो यह बात कही है, इसलिए जा, दुष्ट स्वर्गदूत तेरी बेटी में से निकल चुका है।”+ 30  तब वह औरत अपने घर चली गयी और उसने देखा कि उसकी बच्ची बिस्तर पर लेटी है और दुष्ट स्वर्गदूत उसमें से निकल चुका था।+ 31  जब यीशु सोर के इलाके से निकला, तो वह सीदोन और दिकापुलिस* के इलाके से होता हुआ वापस गलील झील पहुँचा।+ 32  यहाँ लोग उसके पास एक बहरे आदमी को लाए जो ठीक से बोल भी नहीं पाता था।+ उन्होंने यीशु से बिनती की कि वह अपना हाथ उस पर रखे। 33  यीशु उस आदमी को भीड़ से दूर अलग ले गया और उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डालीं और थूकने के बाद उसकी जीभ को छुआ।+ 34  फिर उसने आकाश की तरफ देखा और गहरी आह भरकर उससे कहा, “एफ्फतह,” जिसका मतलब है “खुल जा।” 35  तब उस आदमी की सुनने की शक्‍ति लौट आयी+ और उसकी ज़बान खुल गयी और वह साफ-साफ बोलने लगा। 36  फिर यीशु ने उन्हें सख्ती से कहा कि यह सब किसी को न बताएँ।+ मगर जितना वह मना करता, उतना ही वे उसकी खबर फैलाते गए।+ 37  वाकई, लोग हैरान थे+ और कह रहे थे, “उसने कमाल कर दिया! वह तो बहरों और गूँगों को भी ठीक कर देता है।”+

कई फुटनोट

यानी रस्म के मुताबिक शुद्ध न होकर।
या “गाली देता है।”
अति. क3 देखें।
यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
या “शर्मनाक बरताव।” शब्दावली देखें।
शा., “ईर्ष्या से भरी आँख।”
या “दस शहरों का इलाका।”