मीका 6:1-16

  • इसराएल के साथ परमेश्‍वर का मुकदमा (1-5)

  • यहोवा क्या चाहता है? (6-8)

    • न्याय, वफादारी, मर्यादा (8)

  • इसराएल का अपराध और सज़ा (9-16)

6  हे लोगो, मेहरबानी करके सुनो कि यहोवा क्या कहता है। पहाड़ों के सामने अपनी सफाई पेश करने के लिए तैयार हो जाओ,पहाड़ियाँ भी तुम्हारी बातें सुनेंगी।+   हे पहाड़ो! हे पृथ्वी की मज़बूत नींवो! यहोवा का आरोप सुनो,+क्योंकि यहोवा ने अपने लोगों पर मुकदमा किया है। वह इसराएल के साथ अपना मुकदमा लड़ता है+ और उनसे पूछता है,   “हे मेरे लोगो, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? ऐसा क्या किया है जो तुम उकता गए हो?+ बोलो, मेरे खिलाफ गवाही दो।   मैंने तुम्हें मिस्र से बाहर निकाला,+गुलामी के घर से तुम्हें आज़ाद किया।+मूसा, हारून और मिरयम को तुम्हारे आगे-आगे भेजा।+   हे मेरे लोगो, ज़रा याद करो कि मोआब के राजा बालाक ने क्या साज़िश रची थी+और बओर के बेटे बिलाम ने उसे क्या जवाब दिया।+शित्तीम से लेकर गिलगाल+ तक जो हुआ उसे याद करो+ताकि तुम यहोवा के नेक कामों को जान सको।”   मैं क्या लेकर यहोवा के सामने जाऊँ? क्या लेकर उस परमेश्‍वर को दंडवत करूँ जो ऊँचे पर विराजमान है? क्या मैं उसके सामने होम-बलियाँ ले जाऊँ? एक-एक साल के बछड़े अर्पित करूँ?+   क्या यहोवा हज़ारों मेढ़ों से,तेल की लाखों नदियों से खुश होगा?+ अपने अपराधों के लिए क्या मैं अपने पहलौठे की बलि दे दूँ? अपने पापों के लिए अपने बच्चे को* चढ़ा दूँ?+   हे इंसान, उसने तुझे बता दिया है कि अच्छा क्या है। यहोवा इसे छोड़ तुझसे और क्या चाहता हैकि तू न्याय करे,+ वफादारी से लिपटा रहे*+और मर्यादा में रहकर अपने परमेश्‍वर के साथ चले।+   यहोवा की आवाज़ इस शहर को पुकारती है,जिनमें बुद्धि* है वे तेरे नाम का डर मानेंगे। उस छड़ी पर ध्यान दो और जिसने उसे ठहराया है उस पर भी ध्यान दो।+ 10  क्या दुष्ट के घर में अब भी दुष्टता का खज़ाना है?क्या अब भी उसके पास एपा* का झूठा* और घिनौना माप पाया जाता है? 11  अगर मेरा तराज़ू खोटा हो और मेरी थैली में बेईमानी के बाट-पत्थर हों,तो क्या मैं बेदाग* ठहर सकता हूँ?+ 12  यहाँ के अमीर आदमी अंधेर मचाते हैं,लोग झूठ बोलते हैं,+उनके मुँह से छल की बातें निकलती हैं।+ 13  “इसलिए मैं तुझे मारूँगा, तुझे घायल करूँगा,+तेरे पापों की वजह से तुझे उजाड़ दूँगा। 14  तू खाएगा मगर तेरी भूख नहीं मिटेगी,तेरा पेट खाली ही रहेगा।+ तू अपनी चीज़ें सुरक्षित जगह ले जाने की कोशिश करेगा,मगर कामयाब नहीं होगाऔर अगर हो भी गया, तो मैं उन्हें तेरे दुश्‍मनों के हवाले कर दूँगा। 15  तू बीज बोएगा मगर फसल नहीं काट पाएगा, तू जैतून रौंदेगा मगर उसका तेल नहीं ले पाएगा,तू नयी दाख-मदिरा बनाएगा मगर उसे पी नहीं पाएगा।+ 16  तुम लोग ओम्री के नियमों पर चलते हो और अहाब के घराने जैसे काम करते हो,+तुम उनके नक्शे-कदम पर चलते हो, इसलिए मैं तुम्हारा वह हाल करूँगा कि देखनेवाले डर जाएँगे,लोग सीटियाँ बजा-बजाकर यहाँ के निवासियों का मज़ाक उड़ाएँगे+और तुम्हें उनके ताने सुनने पड़ेंगे।”+

कई फुटनोट

शा., “शरीर का फल।”
या “कृपा करे और प्यार में वफा निभाए।” शा., “अटल प्यार से प्यार करे।”
या “ऐसी बुद्धि जो फायदा पहुँचाती है।”
अति. ख14 देखें।
या “अधूरा।”
या “निर्दोष।”