मीका 7:1-20

  • इसराएल की बुरी हालत (1-6)

    • अपने ही घराने के लोग दुश्‍मन होंगे (6)

  • ‘मैं परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार करूँगा’ (7)

  • परमेश्‍वर के लोग सही साबित हुए (8-13)

  • मीका की प्रार्थना; परमेश्‍वर की तारीफ की (14-20)

    • यहोवा का जवाब (15-17)

    • ‘यहोवा जैसा परमेश्‍वर कौन है?’ (18)

7  हाय! मैं उस आदमी जैसा हूँ,जिसे गरमियों के फल इकट्ठा होने के बाद,अंगूरों की कटाई और उनके बीनने के बाद,खाने को अंगूर का एक गुच्छा तक नहीं मिलता,न अंजीर का पहला फल मिलता है, जिसके लिए मैं तरसता हूँ।   वफादार इंसान धरती से मिट गया,आदमियों में कोई भी सीधा-सच्चा नहीं रहा।+ सब-के-सब खून करने के लिए घात लगाते हैं।+ हरेक अपने ही भाई का शिकार करने के लिए बड़ा जाल बिछाता है।   बुरे काम करने में वे उस्ताद हैं,+हाकिम माँग-पर-माँग करता है,न्यायी, न्याय करने की कीमत माँगता है,+रुतबेदार आदमी खुलकर अपनी इच्छा बताता है,+ये सब मिलकर जाल बुनते हैं।   उनमें जो सबसे अच्छा है, वह काँटों की तरह चुभता हैऔर जो सबसे सीधा है, वह कँटीले बाड़े से भी नुकीला है। वह दिन आ रहा है जिसके बारे में तुम्हारे पहरेदारों ने बताया था,जिस दिन तुमसे हिसाब लिया जाएगा,+इसलिए तुम पर आतंक छा गया है।+   तू न अपने साथी पर,न ही अपने जिगरी दोस्त पर भरोसा करना।+ यहाँ तक कि अपनी बीवी से भी सँभलकर बोलना,   क्योंकि बेटा अपने पिता को तुच्छ समझेगा,बेटी अपनी माँ के खिलाफ हो जाएगी+और बहू अपनी सास के।+एक आदमी के दुश्‍मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।+   लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, मैं यहोवा की राह देखूँगा,+अपने उद्धारकर्ता, अपने परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार करूँगा।*+ मेरा परमेश्‍वर मेरी सुनेगा।+   हे मेरी दुश्‍मन, मेरे हाल पर खुश मत हो। भले ही मैं गिर गया हूँ, पर मैं खड़ा होऊँगा,भले ही मैं अंधकार में पड़ा हूँ, मगर यहोवा मेरी रौशनी होगा।   मैंने यहोवा के खिलाफ पाप किया है,मैं उसका क्रोध तब तक सहता रहूँगा,+जब तक कि वह मेरा मुकदमा नहीं लड़ता और मुझे न्याय नहीं दिलाता। वह मुझे निकालकर उजाले में लाएगाऔर मैं उसकी नेकी देखूँगा। 10  मेरी दुश्‍मन जो मुझसे कहती थी,“तेरा परमेश्‍वर यहोवा कहाँ है?”+ वह भी यह देखेगी और बहुत शर्मिंदा होगी। उसे सड़क की मिट्टी की तरह रौंदा जाएगाऔर मैं अपनी आँखों से यह होते देखूँगा। 11  उस दिन तेरी पत्थरों की दीवार बनायी जाएगी,उस दिन तेरी सरहदें बढ़ायी जाएँगी।* 12  उस दिन दूर-दूर से लोग तेरे पास आएँगे,अश्‍शूर से और मिस्र के शहरों से आएँगे।मिस्र से लेकर महानदी* तक,एक समुंदर से लेकर दूसरे समुंदर तकऔर एक पहाड़ से लेकर दूसरे पहाड़ तक के सब लोग आएँगे।+ 13  देश अपने निवासियों की वजह से,उनके कामों की वजह से उजाड़ दिया जाएगा। 14  लाठी लेकर अपने लोगों की चरवाही कर,हाँ, उस झुंड की जो तेरी जागीर है,+जो जंगल में फलों के बाग के बीच अकेला रहता था। उन्हें पहले की तरह बाशान और गिलाद में चरने दे।+ 15  “मैं तुम लोगों को अद्‌भुत काम दिखाऊँगा,जैसे मैंने तुम्हें मिस्र से छुड़ाते वक्‍त दिखाए थे।+ 16  देश-देश के लोग भी यह देखेंगेऔर शक्‍तिशाली होने पर भी वे शर्मिंदा होंगे।+ वे अपने मुँह पर हाथ रखेंगे, उनके कान बहरे हो जाएँगे, 17  वे साँप की तरह धूल चाटेंगे,+रेंगनेवाले जंतुओं की तरह अपने मज़बूत गढ़ से काँपते हुए निकलेंगे। वे खौफ खाते हुए हमारे परमेश्‍वर यहोवा के पास आएँगेऔर उसके* सामने थर-थर काँपेंगे।”+ 18  तेरे जैसा परमेश्‍वर कौन है,जो अपनी जागीर के बचे हुए लोगों के गुनाह माफ करता है और उनके अपराध याद नहीं रखता?+ तेरा गुस्सा हमेशा तक नहीं बना रहता,क्योंकि अटल प्यार से तुझे खुशी मिलती है।+ 19  तू हम पर फिर से दया करेगा,+ हमारे गुनाहों को रौंद देगा, तू हमारे सब पापों को समुंदर की गहराइयों में फेंक देगा।+ 20  जैसे तू याकूब के साथ सच्चाई से पेश आया,जैसे तूने अब्राहम के लिए अपने अटल प्यार का सबूत दिया,वैसे ही तू हमारे साथ पेश आएगा,क्योंकि तूने बहुत पहले हमारे पुरखों से इसकी शपथ खायी थी।+

कई फुटनोट

या “मैं सब्र रखूँगा और इंतज़ार करूँगा।”
या शायद, “फरमान दूर किया जाएगा।”
यानी फरात नदी।
शा., “तेरे।”