यशायाह 5:1-30
5 मैं अपने अज़ीज़ के लिए एक गीत गाऊँगा,यह गीत उसके और उसके अंगूरों के बाग के बारे में है।+
मेरे अज़ीज़ का बाग फलती-फूलती पहाड़ियों की ढलान पर था।
2 उसने ज़मीन की खुदाई की,उसमें से कंकड़-पत्थर निकाले,बढ़िया लाल अंगूरों की कलम लगायी,बाग के बीचों-बीच एक मीनार बनायीऔर अंगूर रौंदने का हौद भी खोदा।+
फिर बढ़िया अंगूर लगने का इंतज़ार करने लगा,मगर बेलों पर जंगली अंगूर उग आए।+
3 इसलिए उसने कहा, “हे यरूशलेम के रहनेवालो! हे यहूदा के लोगो!अब तुम्हीं मेरे और मेरे अंगूरों के बाग के बीच फैसला करो।+
4 मैंने अपने बाग के लिए क्या-कुछ नहीं किया।+
फिर ऐसा क्यों हुआ कि जब मैंने अच्छे अंगूरों की उम्मीद की,तो मुझे जंगली अंगूर मिले?
5 अब मैं तुम्हें बताता हूँकि मैं अपने अंगूरों के बाग के साथ क्या करूँगा:
मैं इसका काँटेदार बाड़ा निकाल दूँगाऔर बाग को जला दिया जाएगा।+
मैं पत्थरों की दीवार ढा दूँगाऔर बाग को रौंद दिया जाएगा।
6 मैं इसे बंजर बना दूँगा,+इसकी कभी छँटाई नहीं की जाएगी,न ही इसमें कुदाल चलाया जाएगा,पूरा बाग कँटीली झाड़ियों और जंगली पौधों से भर जाएगा।+
मैं बादलों को हुक्म दूँगा कि इस पर न बरसें।+
7 मैं सेनाओं का परमेश्वर यहोवा हूँ और इसराएल मेरे अंगूरों का बाग है।+
यहूदा के आदमी इसकी बेल हैं जिनसे मुझे खास लगाव था।
मैंने उनसे न्याय की उम्मीद की थी,+मगर चारों तरफ अन्याय का बोलबाला है,मैंने सोचा था वे नेकी से चलेंगे,मगर जहाँ देखो वहाँ दुख-भरी पुकार सुनायी दे रही है।”+
8 धिक्कार है उन पर,जो घर से घर मिलाते जाते हैं+और अपने खेत ऐसे बढ़ाते जाते हैं+ कि कोई ज़मीन नहीं बचती,पूरे इलाके पर अकेले मालिक बन बैठते हैं।
9 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा की यह शपथ मेरे कानों में गूँज उठी,बहुत-से घर सुनसान और उजाड़ हो जाएँगे,इन आलीशान घरों की हालत देखकर,लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएँगे।+
10 दस एकड़* के बाग से सिर्फ बत-भर* अंगूर मिलेंगे,होमेर-भर* बीज से सिर्फ एक एपा* अनाज मिलेगा।+
11 धिक्कार है उन पर जो सुबह-सुबह उठकर शराब पीते हैं+और शाम को देर तक दाख-मदिरा पीते रहते हैं, जब तक कि धुत्त न हो जाएँ।
12 उनकी दावतों में सुरमंडल, तारोंवाला बाजा,डफली और बाँसुरी बजायी जाती है, दाख-मदिरा पी जाती है,लेकिन वे यहोवा के कामों पर गौर नहीं करते,उसके हाथ के कामों पर कोई ध्यान नहीं देते।
13 मेरे लोगों ने मुझे नहीं जाना,+इसलिए उन्हें बंदी बनाकर ले जाया जाएगा।उनके इज़्ज़तदार आदमी भूख से बेहाल हो जाएँगे+और उनके सब लोग प्यास के मारे तड़पेंगे।
14 कब्र ने जगह बनायी है,वह मुँह फाड़े खड़ी है+ कि कब यरूशलेम के बड़े-बड़े लोगों,*हुल्लड़ मचानेवालों और मौज-मस्ती करनेवालों को निगल जाए।
15 तब इंसान को झुकना पड़ेगा,इंसान को बेइज़्ज़त किया जाएगा,घमंड से चढ़ी उसकी आँखें नीची की जाएँगी।
16 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा सज़ा देकर* खुद को ऊँचा करेगा,सच्चा और पवित्र परमेश्वर+ अपनी नेकी+ के कारण पवित्र ठहरेगा।
17 मेम्ने वीरान जगहों पर ऐसे चरेंगे मानो उनका अपना मैदान हो।जो जगह मोटे-ताज़े जानवरों का पेट भरती थीं, अब परदेसियों का पेट भरेंगी।
18 धिक्कार है उन पर,जो अपने दोष को कपट की डोरी सेऔर अपने पाप को बैल-गाड़ी के रस्से से खींचते हैं
19 और जो कहते हैं, “परमेश्वर ज़रा फुर्ती करे,फटाफट अपना काम करे कि हम उसका काम देखें।
इसराएल का पवित्र परमेश्वर अपना मकसद* जल्दी पूरा करे ताकि हम इसे जान सकें।”+
20 धिक्कार है उन पर,जो अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा कहते हैं,+जो अंधकार को रौशनी और रौशनी को अंधकार बताते हैं,जो कड़वे को मीठा और मीठे को कड़वा कहते हैं।
21 धिक्कार है उन पर,जो अपनी ही नज़र में बुद्धिमान हैंऔर जो समझते हैं कि उनमें बहुत सूझ-बूझ है।+
22 धिक्कार है उन पर,जो छककर दाख-मदिरा पीते हैं,जो शराब में मसाला मिलाने में उस्ताद हैं,+
23 जो घूस खाकर दुष्ट को बरी कर देते हैं+और जो नेक जन को इंसाफ नहीं दिलाते।+
24 इसलिए जैसे आग में घास-फूस भस्म हो जाती है,लपटों से सूखी घास झुलस जाती है,वैसे ही वे भी खत्म हो जाएँगे,उनकी जड़ें सड़ जाएँगी,उनके फूल धूल की तरह उड़ जाएँगे,क्योंकि उन्होंने सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का कानून* ठुकराया हैऔर इसराएल के पवित्र परमेश्वर की बातों का अनादर किया है।+
25 इस वजह से यहोवा का क्रोध अपने लोगों पर भड़क उठा है,वह अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें मारेगा।+
तब पहाड़ काँप उठेंगे,उनकी लाशें कूड़े की तरह गलियों में पड़ी रहेंगी,+फिर भी उसका क्रोध शांत नहीं होगा,उन्हें मारने के लिए वह अपना हाथ बढ़ाए रखेगा।
26 उसने झंडा खड़ा करके दूर के एक राष्ट्र को बुलाया है,+सीटी बजाकर पृथ्वी के छोर से उन लोगों को बुलाया है।+देखो, वे तेज़ी से आ रहे हैं!+
27 न तो वे थके-माँदे हैं, न उनके कदम लड़खड़ा रहे हैं,न कोई ऊँघ रहा है न कोई सो रहा है,किसी का भी कमरबंद ढीला नहीं है,
न ही उनकी जूतियों के फीते टूटे हैं।
28 उनके तीर पैने हैंऔर उनके कमान तने हुए हैं।
उनके घोड़ों के खुर चकमक पत्थर जैसे सख्त हैंऔर उनके रथ के पहियों में तूफान की तेज़ी है।+
29 वे शेर की तरह गरजते हैं,जवान शेर की तरह दहाड़ते हैं।+
वे गुर्राते हुए अपने शिकार पर झपट पड़ेंगे और उसे उठा ले जाएँगे,कोई उसे उनके हाथ से नहीं छुड़ा सकेगा।
30 उस दिन वे अपने शिकार पर समुंदर के गरजन की तरह गरजेंगे।+
जो कोई उस देश को देखेगा,उसे अंधकार और संकट दिखायी देगा।
घने बादलों के छाने से सूरज भी बुझ जाएगा।+
कई फुटनोट
^ शा., “दस बित्ता।”
^ शा., “की शान।”
^ या “न्याय करके।”
^ या “फैसला; इरादा।”
^ या “शिक्षा।”