यशायाह 51:1-23

  • सिय्योन फिर से अदन के बाग जैसी (1-8)

  • सिय्योन के बनानेवाले से मिला दिलासा (9-16)

  • यहोवा के क्रोध का प्याला (17-23)

51  हे नेकी का पीछा करनेवालो,हे यहोवा को ढूँढ़नेवालो, मेरी सुनो! उस चट्टान की ओर देखो, जिससे तुम काटे गए हो,उस खदान की ओर देखो, जिससे तुम निकाले गए हो।   अपने पिता अब्राहम की ओर देखो,सारा+ की ओर देखो, जिसने तुम्हें जन्म दिया।* जब मैंने उसे बुलाया तो वह अकेला था,+फिर मैंने उसे आशीष दी और उसे एक से अनेक बना दिया।+   यहोवा सिय्योन को दिलासा देगा,+उसके सभी खंडहरों को दोबारा बसाएगा।*+ वह उसके वीराने को अदन जैसा+और उसके बंजर इलाके को यहोवा के बाग जैसा बना देगा।+ सिय्योन नगरी मगन होगी, उसमें खुशियाँ मनायी जाएँगी,धन्यवाद दिया जाएगा और सुरीले गीत गाए जाएँगे।+   हे मेरे लोगो, मुझ पर ध्यान दो,हे मेरे राष्ट्र, मेरी बात पर कान लगा,+ क्योंकि मैं एक कानून निकालूँगा+और अपना न्याय कायम करूँगा, जो देश-देश के लोगों के लिए रौशनी ठहरेगा।+   मेरी नेकी पास आ रही है,+मेरी तरफ से तुम्हें उद्धार मिलनेवाला है।+ मैं अपनी ताकत के दम पर देश-देश के लोगों का न्याय करूँगा,+द्वीप मुझ पर आस लगाएँगे+ और मेरी ताकत* देखने का इंतज़ार करेंगे।   आकाश की ओर अपनी आँखें उठाओ,नीचे पृथ्वी की ओर देखो। आकाश धुएँ के समान गायब हो जाएगा,पृथ्वी पुराने कपड़े के समान तार-तार हो जाएगीऔर उसके निवासी मच्छरों की तरह मर जाएँगे। लेकिन जो उद्धार मैं दिलाऊँगा वह हमेशा रहेगा+और मेरी नेकी का अंत कभी न होगा।+   हे लोगो, तुम जो मेरी नेकी से वाकिफ हो,जिनके दिलों में मेरा कानून* बसा है,+ मेरी सुनो! नश्‍वर इंसान के तानों से मत डरो,न उनकी अपमान-भरी बातों से खौफ खाओ।   क्योंकि कीड़ा उन्हें कपड़े की तरह खा जाएगा,कपड़-कीड़ा उन्हें ऊन की तरह चट कर जाएगा।+ लेकिन मेरी नेकी हमेशा कायम रहेगीऔर जो उद्धार मैं देता हूँ वह पीढ़ी-पीढ़ी तक बना रहेगा।”+   जाग! जाग यहोवा के बाज़ू,उठकर अपनी ताकत दिखा,+जैसे तूने बहुत पहले, बीते ज़माने में दिखायी थी। क्या वह तू नहीं जिसने राहाब*+ के टुकड़े-टुकड़े किए थे,उस बड़े समुद्री जीव को भेदा था?+ 10  क्या तूने ही सागर को, गहरे सागर को नहीं सुखाया था?+ समुंदर की गहराइयों में रास्ता नहीं निकाला था कि छुड़ाए हुए लोग उसे पार कर सकें?+ 11  यहोवा जिन्हें छुड़ाएगा वे जयजयकार करते हुए सिय्योन लौटेंगे,+कभी न मिटनेवाली खुशी उनके सिर का ताज होगी।+ वे इतने मगन होंगे, इतनी खुशियाँ मनाएँगेकि दुख और मातम उनके सामने से भाग खड़े होंगे।+ 12  “तुझे दिलासा देनेवाला मैं ही हूँ,+तो फिर तू नश्‍वर इंसान से क्यों डरती है, जो एक दिन मर जाएगा?+ इंसान से क्यों खौफ खाती है, जो हरी घास की तरह मुरझा जाएगा? 13  तू यहोवा को, अपने बनानेवाले+ को क्यों भूल गयी,जिसने आकाश को ताना+ और पृथ्वी की नींव डाली? तू अत्याचार करनेवाले के क्रोध से दिन-भर डरी-सहमी क्यों रहती है,मानो वह तेरा नाश करने के लिए तैयार खड़ा है? बता, कहाँ रहा अत्याचार करनेवाले का क्रोध? 14  जो ज़ंजीरों से झुक गए हैं वे जल्द ही आज़ाद किए जाएँगे,+वे मरेंगे नहीं, न कब्र में जाएँगे,उन्हें रोटी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा। 15  मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ,मैं समुंदर को झकझोरता हूँ, लहरों को उछालता हूँ।+सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा, यही मेरा नाम है।+ 16  मैं अपना संदेश तेरे मुँह में डालूँगा,अपने हाथ की छाया में तुझे छिपा लूँगा,+ताकि आकाश को स्थिर करूँ और पृथ्वी की नींव डालूँ,+ताकि सिय्योन से कहूँ, ‘तू मेरी प्रजा है।’+ 17  जाग यरूशलेम जाग! उठ खड़ी हो!+ तूने यहोवा के हाथ से उसके क्रोध का प्याला पी लिया है,वह जाम पी लिया है जो लड़खड़ा देता है,हाँ, तू पूरा-का-पूरा प्याला पी चुकी है।+ 18  जितने बेटे उसने पैदा किए, उनमें से किसी ने उसे राह नहीं दिखायी,जितने बेटों को उसने पाला-पोसा, उनमें से किसी ने उसका हाथ नहीं पकड़ा। 19  तुझ पर दो विपत्तियाँ आ पड़ी हैं: नाश और बरबादी, भुखमरी और तलवार!+ कौन तुझसे हमदर्दी जताएगा? कौन तुझे दिलासा देगा?+ 20  तेरे बेटे बेहोश पड़े हैं,+हर गली के नुक्कड़ पर ऐसे पड़े हैं,जैसे जंगली भेड़ जाल में फँसी हो। यहोवा का क्रोध पूरी तरह उन पर आ पड़ा है,उन्हें परमेश्‍वर से ज़बरदस्त फटकार मिली है।” 21  इसलिए हे दुखियारी, सुन! तू जो नशे में धुत्त है, पर दाख-मदिरा के नशे में नहीं, 22  तेरा प्रभु और परमेश्‍वर यहोवा, जो अपने लोगों की वकालत करता है, कहता है, “देख! मैं तेरे हाथ से वह प्याला ले लूँगा, जिसे पीकर तू लड़खड़ा रही थी।+ मेरे क्रोध का वह प्याला, मेरा जाम तू फिर कभी न पीएगी।+ 23  मैं उसे तेरे सतानेवालों के हाथ में दे दूँगा,+जिन्होंने तुझसे कहा, ‘लेट जा कि हम तुझ पर पैर रखकर जाएँ!’ इसलिए तूने अपनी पीठ को ज़मीन बना दियाकि वे सड़क समझकर उस पर चलें।”

कई फुटनोट

या “तुम्हें प्रसव-पीड़ा के साथ पैदा किया।”
शा., “दिलासा देगा।”
शा., “बाज़ू।”
या “शिक्षा।”
शब्दावली देखें।