यूहन्‍ना के मुताबिक खुशखबरी 5:1-47

  • बेतहसदा में बीमार आदमी ठीक किया गया (1-18)

  • यीशु को उसके पिता ने अधिकार दिया है (19-24)

  • जो मर गए हैं, वे यीशु की आवाज़ सुनेंगे (25-30)

  • यीशु के बारे में गवाही (31-47)

5  इसके बाद यहूदियों का एक त्योहार आया+ और यीशु यरूशलेम गया।  यरूशलेम में भेड़ फाटक+ के पास एक कुंड है जो इब्रानी भाषा में बेतहसदा कहलाता है। उस कुंड के चारों तरफ खंभोंवाला बरामदा है।  इस बरामदे में बड़ी तादाद में बीमार, अंधे, लँगड़े और अपंग लोग पड़े थे। 4 *  वहाँ एक आदमी था जो 38 साल से बीमार था।  यीशु ने इस आदमी को वहाँ पड़ा देखा और यह जानकर कि वह एक लंबे समय से बीमार है उससे पूछा, “क्या तू ठीक होना चाहता है?”+  उस बीमार आदमी ने जवाब दिया, “साहब, मेरे साथ कोई नहीं जो मुझे उस वक्‍त कुंड में उतारे जब पानी हिलाया जाता है। इससे पहले कि मैं पहुँचूँ कोई दूसरा पानी में उतर जाता है।”  यीशु ने उससे कहा, “उठ, अपना बिस्तर उठा और चल-फिर।”+  वह आदमी उसी वक्‍त ठीक हो गया और उसने अपना बिस्तर उठाया और चलने-फिरने लगा। वह सब्त का दिन था। 10  इसलिए यहूदी उस आदमी से जो ठीक हो गया था कहने लगे, “आज सब्त है और आज के दिन तेरे लिए बिस्तर उठाना कानून के हिसाब से सही नहीं।”+ 11  मगर उसने कहा, “जिसने मुझे ठीक किया है उसी ने मुझसे कहा, ‘अपना बिस्तर उठा और चल-फिर।’” 12  उन्होंने पूछा, “किसने तुझसे कहा कि इसे उठा और चल-फिर?” 13  मगर वह आदमी नहीं जानता था कि उसे ठीक करनेवाला कौन है, क्योंकि यीशु चुपचाप भीड़ में जा मिला था। 14  इसके बाद, जब यीशु ने मंदिर में उस आदमी को देखा तो उससे कहा, “देख, अब तू ठीक हो चुका है। इसलिए आगे पाप मत करना, कहीं ऐसा न हो कि तेरे साथ इससे भी बुरा हो।” 15  तब उस आदमी ने जाकर यहूदियों को बताया कि वह यीशु था जिसने उसे ठीक किया था। 16  इस वजह से यहूदी लोग यीशु को सताने लगे क्योंकि वह सब्त के दिन यह सब कर रहा था। 17  मगर यीशु ने उनसे कहा, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।”+ 18  इस वजह से यहूदी उसे मार डालने के और भी मौके ढूँढ़ने लगे, क्योंकि उनके हिसाब से वह न सिर्फ सब्त का कानून तोड़ रहा था, बल्कि परमेश्‍वर को अपना पिता+ कहकर खुद को परमेश्‍वर के बराबर ठहरा रहा था।+ 19  इसलिए यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, बेटा अपनी पहल पर कुछ भी नहीं कर सकता, मगर सिर्फ वही करता है जो पिता को करते हुए देखता है।+ इसलिए कि पिता जो कुछ करता है, बेटा भी उसी तरीके से वे काम करता है। 20  पिता को बेटे से बहुत लगाव है+ और वह खुद जो करता है वह सब बेटे को भी दिखाता है और वह इनसे भी बड़े-बड़े काम उसे दिखाएगा ताकि तुम ताज्जुब करो।+ 21  जैसे पिता मरे हुओं को ज़िंदा करता है और उन्हें जीवन देता है,+ ठीक वैसे ही बेटा भी जिन्हें चाहता है उन्हें जीवन देता है।+ 22  पिता खुद किसी का न्याय नहीं करता, बल्कि उसने न्याय करने की सारी ज़िम्मेदारी बेटे को सौंप दी है+ 23  ताकि सब उसके बेटे का आदर करें जैसे वे पिता का आदर करते हैं। जो बेटे का आदर नहीं करता, वह पिता का आदर नहीं करता जिसने उसे भेजा है।+ 24  मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जो मेरे वचन सुनता है और मेरे भेजनेवाले पर यकीन करता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाता है+ और उसे सज़ा नहीं सुनायी जाती बल्कि वह मौत को पार करके ज़िंदगी पाता है।+ 25  मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, वह वक्‍त आ रहा है और अब भी है जब मरे हुए, परमेश्‍वर के बेटे की आवाज़ सुनेंगे और जिन्होंने उसकी बात मानी है वे जीएँगे। 26  ठीक जैसे पिता के पास जीवन देने की शक्‍ति है,*+ वैसे ही उसने अपने बेटे को भी जीवन देने की शक्‍ति दी है।+ 27  और उसने उसे न्याय करने का अधिकार दिया है+ क्योंकि वह इंसान का बेटा+ है। 28  इस बात पर हैरान मत हो क्योंकि वह वक्‍त आ रहा है जब वे सभी, जो स्मारक कब्रों में हैं उसकी आवाज़ सुनेंगे+ 29  और ज़िंदा हो जाएँगे। जिन्होंने अच्छे काम किए थे, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा ताकि वे जीवन पाएँ और जो बुरे कामों में लगे हुए थे, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा ताकि उनका न्याय किया जाए।+ 30  मैं अपनी पहल पर एक भी काम नहीं कर सकता। मगर ठीक जैसा पिता से सुनता हूँ वैसा ही न्याय करता हूँ।+ मैं जो न्याय करता हूँ वह सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी नहीं बल्कि उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता हूँ जिसने मुझे भेजा है।+ 31  अगर मैं अकेले ही अपने बारे में गवाही दूँ, तो मेरी गवाही सच नहीं है।+ 32  एक और है जो मेरे बारे में गवाही देता है और मैं जानता हूँ कि वह मेरे बारे में जो गवाही देता है, वह सच्ची है।+ 33  तुमने यूहन्‍ना के पास आदमी भेजे और उसने सच्चाई के बारे में गवाही दी।+ 34  ऐसा नहीं कि मुझे इंसानों की गवाही की ज़रूरत है, मगर मैं ये बातें इसलिए कह रहा हूँ ताकि तुम उद्धार पा सको। 35  वह आदमी एक जलता और जगमगाता दीपक था और तुम थोड़े वक्‍त के लिए उसकी रौशनी में बड़ी खुशी मनाने के लिए तैयार थे।+ 36  मगर मेरे पास वह गवाही है जो यूहन्‍ना की गवाही से भी बढ़कर है। जो काम मेरे पिता ने मुझे पूरे करने के लिए सौंपे हैं और जिन्हें मैं कर रहा हूँ, वही मेरे बारे में गवाही देते हैं कि मुझे पिता ने भेजा है।+ 37  और पिता ने भी, जिसने मुझे भेजा है, खुद मेरे बारे में गवाही दी है।+ तुमने न तो कभी उसकी आवाज़ सुनी, न ही कभी उसका रूप देखा+ 38  और उसका वचन तुम्हारे दिलों में कायम नहीं रहता, क्योंकि तुम उसका यकीन नहीं करते जिसे पिता ने भेजा है। 39  तुम शास्त्र में खोजबीन करते हो+ क्योंकि तुम सोचते हो कि उसके ज़रिए तुम्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। यही* मेरे बारे में गवाही देता है।+ 40  फिर भी तुम मेरे पास नहीं आना चाहते+ कि तुम ज़िंदगी पा सको। 41  मैं इंसानों से अपनी बड़ाई नहीं चाहता। 42  मगर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम्हारे अंदर परमेश्‍वर के लिए प्यार नहीं है। 43  मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ, मगर तुम मुझे स्वीकार नहीं करते। अगर कोई और अपने ही नाम से आता, तो तुम उसे स्वीकार कर लेते। 44  तुम मेरा यकीन कर भी कैसे सकते हो, क्योंकि तुम इंसानों की बड़ाई करते हो और उनसे अपनी बड़ाई करवाते हो और वह बड़ाई नहीं पाना चाहते जो एकमात्र परमेश्‍वर से मिलती है?+ 45  यह मत सोचो कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा। क्योंकि तुम पर दोष लगानेवाला एक है, यानी मूसा+ जिस पर तुमने आशा रखी है। 46  दरअसल, अगर तुमने मूसा का यकीन किया होता तो मेरा भी यकीन करते क्योंकि उसने मेरे बारे में लिखा था।+ 47  जब तुम उसकी किताबों का यकीन नहीं करते, तो भला मेरी बातों का यकीन कैसे करोगे?”

कई फुटनोट

अति. क3 देखें।
या “उसमें जीवन का वरदान है।”
यानी शास्त्र।