यूहन्‍ना के मुताबिक खुशखबरी 6:1-71

  • यीशु 5,000 को खिलाता है (1-15)

  • यीशु पानी पर चलता है (16-21)

  • यीशु “जीवन देनेवाली रोटी” (22-59)

  • यीशु की बात सुनकर कइयों का विश्‍वास डगमगा गया (60-71)

6  इसके बाद, यीशु गलील झील यानी तिबिरियास झील के उस पार चला गया।+  मगर एक बड़ी भीड़ उसके पीछे-पीछे गयी,+ क्योंकि उन्होंने देखा था कि वह कैसे चमत्कार करके बीमारों को ठीक कर रहा था।+  फिर यीशु अपने चेलों के साथ एक पहाड़ पर चढ़ा और वहाँ बैठ गया।  यहूदियों का फसह का त्योहार पास था।+  जब यीशु ने नज़र उठाकर देखा कि एक बड़ी भीड़ उसकी तरफ चली आ रही है, तो उसने फिलिप्पुस से कहा, “हम इनके खाने के लिए रोटियाँ कहाँ से खरीदें?”+  मगर वह उसे परखने के लिए यह बात कह रहा था क्योंकि वह जानता था कि वह खुद क्या करने जा रहा है।  फिलिप्पुस ने उसे जवाब दिया, “दो सौ दीनार* की रोटियाँ भी इन सबके लिए पूरी नहीं पड़ेंगी कि हरेक को थोड़ा-थोड़ा भी मिल सके।”  तब यीशु के एक चेले, अन्द्रियास ने जो शमौन पतरस का भाई था, उससे कहा,  “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ हैं। मगर इतनी बड़ी भीड़ के लिए इससे क्या होगा?”+ 10  यीशु ने कहा, “लोगों को खाने के लिए बिठा दो।” उस जगह बहुत घास थी, इसलिए लोग वहाँ आराम से बैठ गए। इनमें आदमियों की गिनती करीब 5,000 थी।+ 11  तब यीशु ने वे रोटियाँ लीं और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद लोगों में बाँट दीं। फिर उसने छोटी मछलियाँ भी बाँट दीं, जिसे जितनी चाहिए थी उतनी दे दी। 12  जब उन्होंने भरपेट खा लिया, तो उसने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े इकट्ठा कर लो ताकि कुछ भी बेकार न हो।” 13  इसलिए जौ की पाँच रोटियों में से जब सब लोग खा चुके, तो बचे हुए टुकड़े इकट्ठे किए गए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं। 14  जब लोगों ने उसका चमत्कार देखा तो वे कहने लगे, “यह ज़रूर वही भविष्यवक्‍ता है जिसे दुनिया में आना था।”+ 15  फिर यीशु जान गया कि वे उसे पकड़कर राजा बनाने आ रहे हैं,+ इसलिए वह अकेले पहाड़ पर चला गया।+ 16  जब शाम हुई तो उसके चेले झील के किनारे गए।+ 17  वे एक नाव पर चढ़कर झील के उस पार कफरनहूम के लिए रवाना हो गए। अँधेरा हो गया था और यीशु अब तक उनके पास नहीं पहुँचा था।+ 18  और आँधी की वजह से झील में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं।+ 19  लेकिन जब चेले करीब पाँच-छ: किलोमीटर* तक नाव खे चुके थे, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते हुए नाव की तरफ आते देखा और वे डर के मारे थरथराने लगे। 20  मगर यीशु ने उनसे कहा, “डरो मत, मैं ही हूँ!”+ 21  तब वे उसे नाव में चढ़ाने के लिए तैयार हो गए और जल्द ही नाव उस जगह किनारे जा लगी जहाँ वे जा रहे थे।+ 22  अगले दिन भीड़ ने, जो झील के उस पार रह गयी थी, देखा कि जो छोटी नाव किनारे पर थी वह नहीं है। भीड़ को पता चला कि उस नाव में चेले बैठकर चले गए, मगर यीशु उनके साथ नहीं गया। 23  फिर तिबिरियास से कुछ नाव उस जगह के पास आयीं, जहाँ उन्होंने वे रोटियाँ खायी थीं जो प्रभु ने प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद उन्हें दी थीं। 24  जब भीड़ ने देखा कि यहाँ न तो यीशु है, न ही उसके चेले, तो वे उन नावों में चढ़ गए और यीशु को ढूँढ़ने कफरनहूम चल दिए। 25  झील के इस पार जब उन्होंने उसे देखा तो पूछा, “गुरु,+ तू यहाँ कब आया?” 26  यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ रहे हो कि तुमने चमत्कार देखे थे, बल्कि इसलिए कि तुमने जी-भरकर रोटियाँ खायी थीं।+ 27  उस खाने के लिए काम मत करो जो नष्ट हो जाता है, बल्कि उस खाने के लिए काम करो जो नष्ट नहीं होता और हमेशा की ज़िंदगी देता है,+ वही खाना जो तुम्हें इंसान का बेटा देगा। क्योंकि पिता यानी परमेश्‍वर ने खुद उसी बेटे पर अपनी मंज़ूरी की मुहर लगायी है।”+ 28  तब उन्होंने उससे पूछा, “परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लिए हमें कौन-सा काम करना होगा?” 29  यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लिए तुम उस पर विश्‍वास करो जिसे उसने भेजा है।”+ 30  तब उन्होंने कहा, “फिर तू हमें क्या चमत्कार दिखानेवाला है+ कि हम उसे देखकर तेरा यकीन करें? तू कौन-सा काम करने जा रहा है? 31  हमारे पुरखों ने तो वीराने में मन्‍ना खाया था,+ ठीक जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी।’”+ 32  यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें स्वर्ग से रोटी नहीं दी थी, मगर मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी देता है। 33  इसलिए कि जो स्वर्ग से नीचे आया है वही परमेश्‍वर की रोटी है और दुनिया को जीवन देती है।” 34  तब लोगों ने कहा, “प्रभु, हमें यह रोटी हमेशा दिया कर।” 35  यीशु ने उनसे कहा, “मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ। जो मेरे पास आता है वह फिर कभी भूखा नहीं होगा और जो मुझ पर विश्‍वास करता है वह फिर कभी प्यासा नहीं होगा।+ 36  मगर जैसा मैंने तुमसे कहा था, तुम मुझे देखकर भी मेरा यकीन नहीं करते।+ 37  वे सभी जिन्हें पिता ने मुझे दिया है, मेरे पास आएँगे और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं खुद से कभी दूर नहीं करूँगा।+ 38  क्योंकि मैं अपनी मरज़ी नहीं, बल्कि अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करने+ के लिए स्वर्ग से नीचे आया हूँ।+ 39  मुझे भेजनेवाले की यही मरज़ी है कि उसने जितनों को मुझे दिया है, उनमें से मैं एक को भी न खोऊँ, बल्कि आखिरी दिन उन्हें ज़िंदा करूँ।+ 40  मेरे पिता की मरज़ी यह है कि जो कोई बेटे को स्वीकार करता है और उस पर विश्‍वास करता है, उसे हमेशा की ज़िंदगी मिले+ और मैं उसे आखिरी दिन ज़िंदा करूँगा।”+ 41  तब यहूदी कुड़कुड़ाने लगे क्योंकि उसने कहा था, “मैं वह रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे उतरी है।”+ 42  वे कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का बेटा यीशु नहीं जिसके माता-पिता को हम जानते हैं?+ तो फिर यह कैसे कह सकता है कि ‘मैं स्वर्ग से नीचे आया हूँ’?” 43  यीशु ने उनसे कहा, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। 44  कोई भी इंसान मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता जिसने मुझे भेजा है, उसे मेरे पास खींच न लाए।+ और मैं उसे आखिरी दिन ज़िंदा करूँगा।+ 45  भविष्यवक्‍ताओं ने लिखा है, ‘वे सब यहोवा* के सिखाए हुए होंगे।’+ हर कोई जिसने पिता से सुना है और सीखा है, वह मेरे पास आता है। 46  किसी इंसान ने पिता को कभी नहीं देखा+ सिवा उसके जो परमेश्‍वर की तरफ से है। उसी ने पिता को देखा है।+ 47  मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जो कोई यकीन करता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाएगा।+ 48  मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ।+ 49  तुम्हारे पुरखों ने वीराने में मन्‍ना खाया था, फिर भी वे मर गए।+ 50  मगर जो कोई इस रोटी में से खाता है जो स्वर्ग से उतरी है, वह नहीं मरेगा। 51  मैं वह जीवित रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है। अगर कोई इस रोटी में से खाता है तो वह हमेशा ज़िंदा रहेगा। दरअसल जो रोटी मैं दूँगा, वह मेरा शरीर है जो मैं इंसानों की खातिर दूँगा ताकि वे जीवन पाएँ।”+ 52  तब यहूदी एक-दूसरे से बहस करने लगे, “भला यह आदमी कैसे अपना शरीर हमें खाने के लिए दे सकता है?” 53  तब यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जब तक तुम इंसान के बेटे का माँस न खाओ और उसका खून न पीओ, तुममें जीवन नहीं।+ 54  जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाएगा और मैं आखिरी दिन उसे ज़िंदा करूँगा।+ 55  इसलिए कि मेरा शरीर असली खाना है और मेरा खून पीने की असली चीज़ है। 56  जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है, वह मेरे साथ एकता में बना रहता है और मैं उसके साथ एकता में बना रहता हूँ।+ 57  ठीक जैसे जीवित पिता ने मुझे भेजा है और मैं पिता की वजह से जीवित हूँ, वैसे ही जो मुझमें से खाता है वह भी मेरी वजह से जीवित रहेगा।+ 58  यह वह रोटी है जो स्वर्ग से नीचे उतरी है। यह वैसी नहीं जैसी तुम्हारे पुरखों ने खायी, फिर भी मर गए। जो इस रोटी में से खाता है, वह हमेशा ज़िंदा रहेगा।”+ 59  ये बातें उसने कफरनहूम में उस वक्‍त कही थीं जब वह एक सभा-घर* में सिखा रहा था। 60  जब उसके कई चेलों ने यह बात सुनी तो वे कहने लगे, “यह कैसी घिनौनी बात है, कौन इसे सुनेगा?” 61  मगर यीशु ने मन में यह जानते हुए कि उसके चेले इस बारे में कुड़कुड़ा रहे हैं, उनसे कहा, “क्या इस बात से तुम्हारा विश्‍वास डगमगा रहा है?* 62  तो फिर तब क्या होगा जब तुम इंसान के बेटे को ऊपर जाता देखोगे जहाँ वह पहले था?+ 63  परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से ही जीवन मिलता है,+ शरीर किसी काम का नहीं। जो बातें मैंने तुमसे कही हैं, वे परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मुताबिक हैं और जीवन देती हैं।+ 64  मगर तुममें से कुछ ऐसे हैं जो मेरी बात पर यकीन नहीं करते।” यीशु शुरू से जानता था कि वे कौन हैं जो यकीन नहीं करते और वह कौन है जो उसके साथ विश्‍वासघात करेगा।+ 65  वह उनसे कहने लगा, “इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि कोई भी तब तक मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि पिता उसे इजाज़त न दे।”+ 66  इस वजह से उसके बहुत-से चेलों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया और वापस उन कामों में लग गए जिन्हें वे छोड़ आए थे।+ 67  तब यीशु ने अपने 12 चेलों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” 68  शमौन पतरस ने जवाब दिया, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ?+ हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं।+ 69  हमने यकीन किया है और हम जान गए हैं कि तू परमेश्‍वर का पवित्र जन है।”+ 70  यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम बारहों को चुना था न?+ मगर तुममें से एक बदनाम करनेवाला* है।”+ 71  दरअसल वह शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदा की बात कर रहा था, क्योंकि वही था जो उन बारहों में से एक होते हुए भी उसे पकड़वानेवाला था।+

कई फुटनोट

अति. ख14 देखें।
शा., “करीब 25 या 30 स्तादियौन।” अति. ख14 देखें।
अति. क5 देखें।
या शायद, “जन-सभा।”
शा., “तुम्हें ठोकर लगी है?”
या “इबलीस।”