रोमियों के नाम चिट्ठी 1:1-32

  • नमस्कार (1-7)

  • पौलुस ने रोम जाना चाहा (8-15)

  • नेक जन अपने विश्‍वास से ज़िंदा रहेगा (16, 17)

  • भक्‍तिहीनों के पास कोई बहाना नहीं (18-32)

    • परमेश्‍वर के गुण सृष्टि में दिखते हैं (20)

1  मैं पौलुस, जो यीशु मसीह का एक दास हूँ, तुम्हें यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। मुझे प्रेषित होने का बुलावा मिला है और परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनाने के लिए ठहराया गया है।+  इस खुशखबरी का वादा परमेश्‍वर ने पहले से अपने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए पवित्र शास्त्र में किया था।  यह खुशखबरी उसके बेटे के बारे में है। वह दाविद के वंश*+ से इंसान के रूप में आया।  मगर जब उसे पवित्र शक्‍ति की ताकत से मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया,+ तो वह परमेश्‍वर का बेटा+ ठहरा। वही हमारा प्रभु यीशु मसीह है।  उसी के ज़रिए हमने महा-कृपा और प्रेषित होने की ज़िम्मेदारी पायी+ ताकि सब राष्ट्र विश्‍वास करें+ और उसकी आज्ञा मानें जिससे उसके नाम की महिमा हो।  तुम भी इन राष्ट्रों में से हो, जिन्हें यीशु मसीह का होने के लिए बुलाया गया है।  मैं पौलुस यह चिट्ठी रोम में रहनेवाले तुम सबको लिख रहा हूँ, जो परमेश्‍वर के प्यारे हो और पवित्र जन होने के लिए बुलाए गए हो: हमारे पिता यानी परमेश्‍वर की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से तुम्हें महा-कृपा और शांति मिले।  सबसे पहले मैं यीशु मसीह के ज़रिए तुम सबके बारे में अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ, क्योंकि तुम्हारे विश्‍वास की चर्चा सारी दुनिया में हो रही है।  परमेश्‍वर, जिसकी पवित्र सेवा मैं उसके बेटे की खुशखबरी सुनाते हुए जी-जान से करता हूँ, वही मेरा गवाह है कि कैसे मैं हमेशा अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें याद करता हूँ+ 10  और बिनती करता हूँ कि अगर उसकी इच्छा हो, तो कम-से-कम अब किसी तरह मैं तुम्हारे पास आ सकूँ। 11  क्योंकि मैं तुमसे मिलने के लिए तरस रहा हूँ ताकि तुम्हें परमेश्‍वर की तरफ से कोई आशीष* दूँ जिससे तुम मज़बूत हो सको। 12  या यूँ कहूँ कि मैं और तुम अपने-अपने विश्‍वास के ज़रिए एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।+ 13  मगर भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि मैंने तुम्हारे पास आने की कई बार कोशिश की ताकि जैसे मैंने बाकी गैर-यहूदी राष्ट्रों में अच्छे नतीजे पाए हैं, वैसे ही तुम्हारे बीच भी पाऊँ। मगर अब तक मुझे रोका गया है। 14  मैं यूनानियों और गैर-यूनानियों, बुद्धिमानों और मूर्खों, दोनों का कर्ज़दार हूँ। 15  इसलिए तुम जो वहाँ रोम में हो, मैं तुम्हें भी खुशखबरी सुनाने के लिए बेताब हूँ।+ 16  मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती।+ दरअसल यह विश्‍वास करनेवाले हर किसी के उद्धार के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है,+ पहले यहूदियों के लिए,+ फिर यूनानियों के लिए।+ 17  क्योंकि विश्‍वास करनेवालों पर इस खुशखबरी के ज़रिए परमेश्‍वर की नेकी ज़ाहिर होती है और इससे उनका विश्‍वास मज़बूत होता है,+ ठीक जैसा लिखा है, “लेकिन जो नेक है, वह अपने विश्‍वास से ज़िंदा रहेगा।”+ 18  जो भक्‍तिहीन और बुरे लोग गलत तरीके अपनाकर सच्चाई को दबा रहे हैं,+ उन सब पर स्वर्ग से परमेश्‍वर का क्रोध+ प्रकट हो रहा है। 19  इसलिए कि परमेश्‍वर के बारे में जो कुछ जाना जा सकता है वह उनके बीच साफ ज़ाहिर है, क्योंकि परमेश्‍वर ने उन पर ज़ाहिर कर दिया है।+ 20  उसके अनदेखे गुण दुनिया की रचना के वक्‍त से साफ दिखायी देते हैं यानी यह कि उसके पास अनंत शक्‍ति है+ और सचमुच वही परमेश्‍वर है।+ ये गुण उसकी बनायी चीज़ों को देखकर अच्छी तरह समझे जा सकते हैं,+ इसलिए उनके पास परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने का कोई बहाना नहीं बचता। 21  क्योंकि वे परमेश्‍वर को जानते तो थे, फिर भी उन्होंने उसकी वैसी बड़ाई न की जैसी करनी चाहिए, न ही उसका धन्यवाद किया, बल्कि खोखली और मूर्खता से भरी बातें सोचने लगे और उनका निर्बुद्धि मन अंधकार से भर गया।+ 22  वे दावा करते थे कि वे बुद्धिमान हैं मगर वे मूर्ख निकले 23  और उन्होंने अनश्‍वर परमेश्‍वर की महिमा करने के बजाय, नश्‍वर इंसान और पक्षियों और चार-पैरोंवाले जीवों और रेंगनेवाले जंतुओं की मूरतों की महिमा की।+ 24  इसलिए परमेश्‍वर ने उनके दिल की बुरी इच्छाओं के मुताबिक उन्हें अशुद्ध काम करने के लिए छोड़ दिया ताकि वे अपने ही शरीर का अनादर करें। 25  उन्होंने परमेश्‍वर की सच्चाई के बदले झूठ पर यकीन किया और सृष्टिकर्ता के बजाय उसकी सृष्टि की भक्‍ति और पूजा की। उस सृष्टिकर्ता की सदा तारीफ हो। आमीन। 26  परमेश्‍वर ने उन लोगों को छोड़ दिया कि वे अपनी नीच वासनाओं को पूरा करें+ क्योंकि उनकी औरतें स्वाभाविक यौन-संबंध छोड़कर अस्वाभाविक यौन-संबंध रखने लगीं।+ 27  उसी तरह आदमियों ने भी औरतों के साथ स्वाभाविक यौन-संबंध रखना छोड़ दिया और आदमी आपस में एक-दूसरे के लिए काम-वासना से जलने लगे। आदमियों ने आदमियों के साथ अश्‍लील काम किए+ और अपनी करतूतों का पूरा-पूरा अंजाम भुगता।*+ 28  उन लोगों को परमेश्‍वर को जानना सही नहीं लगा।* इसलिए परमेश्‍वर ने भी उन्हें उनकी भ्रष्ट दिमागी हालत पर छोड़ दिया कि वे गलत काम करें।+ 29  उनमें हर तरह का पाप,+ दुष्टता, लालच+ और बुराई कूट-कूटकर भरी है और वे ईर्ष्या,+ हत्या,+ झगड़े और छल+ करते हैं और दूसरों का बुरा चाहते हैं।+ वे चुगली लगानेवाले,* 30  पीठ पीछे बदनाम करनेवाले,+ परमेश्‍वर से नफरत करनेवाले, गुस्ताख, घमंडी, शेखी मारनेवाले, बुरी बातें गढ़नेवाले, माता-पिता की बात न माननेवाले,+ 31  समझ न रखनेवाले,+ अपने वादे से मुकरनेवाले, लगाव न रखनेवाले और बेरहम हैं। 32  वे परमेश्‍वर के इस खरे आदेश को अच्छी तरह जानते हैं कि जो लोग ऐसे कामों में लगे रहते हैं वे मौत की सज़ा के लायक हैं।+ फिर भी वे न सिर्फ खुद ऐसे कामों में लगे रहते हैं बल्कि ऐसे काम करनेवालों को सही ठहराते भी हैं।

कई फुटनोट

शा., “बीज।”
या “तोहफा।”
या “बदला पा चुके।”
या “यह मंज़ूर नहीं था कि परमेश्‍वर के बारे में सही ज्ञान लें।”
या “गपशप करनेवाले।”