रोमियों के नाम चिट्ठी 8:1-39

  • पवित्र शक्‍ति के ज़रिए जीवन और आज़ादी (1-11)

  • पवित्र शक्‍ति के ज़रिए गोद लिए जाते हैं (12-17)

  • सृष्टि परमेश्‍वर के बच्चे होने की आज़ादी के इंतज़ार में (18-25)

  • ‘पवित्र शक्‍ति हमारे लिए बिनती करती है’ (26, 27)

  • परमेश्‍वर ने पहले से तय किया (28-30)

  • परमेश्‍वर के प्यार की मदद से जीत (31-39)

8  इसलिए जो मसीह यीशु के साथ एकता में हैं, उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाता।  क्योंकि पवित्र शक्‍ति के कानून ने, जो मसीह यीशु में जीवन देता है, तुम्हें पाप और मौत के कानून से आज़ाद कर दिया है।+  पापी इंसानों की वजह से कानून कमज़ोर पड़ गया,+ इसलिए कानून जो काम नहीं कर पाया+ वह परमेश्‍वर ने किया। परमेश्‍वर ने अपने बेटे को इंसान के रूप+ में* भेजा+ ताकि वह पाप को मिटाए और इस तरह उसने शरीर में पाप को दोषी ठहराया  ताकि हम, जो शरीर के मुताबिक नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलते हैं,+ कानून की उचित माँगें पूरी कर सकें।+  जो शरीर के मुताबिक जीते हैं वे शरीर की बातों पर ध्यान लगाते हैं,+ मगर जो पवित्र शक्‍ति के मुताबिक जीते हैं, वे पवित्र शक्‍ति की बातों पर ध्यान लगाते हैं।+  इसलिए कि शरीर की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब मौत है,+ मगर पवित्र शक्‍ति की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब जीवन और शांति है।+  इसलिए कि शरीर की बातों पर ध्यान लगाना, परमेश्‍वर से दुश्‍मनी रखना है+ क्योंकि शरीर न तो परमेश्‍वर के कानून के अधीन है, न हो सकता है।  इसलिए जो शरीर के मुताबिक चलते हैं, वे परमेश्‍वर को खुश नहीं कर सकते।  लेकिन अगर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति सचमुच तुममें वास करती है तो तुम शरीर के मुताबिक नहीं, बल्कि पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलते हो।+ लेकिन अगर किसी में मसीह का स्वभाव नहीं है, तो वह मसीह का नहीं है। 10  लेकिन अगर मसीह तुम्हारे साथ एकता में है,+ तो चाहे तुम्हारा शरीर पाप की वजह से मुरदा है, फिर भी पवित्र शक्‍ति नेकी की वजह से तुम्हें जीवन देती है। 11  जिस परमेश्‍वर ने यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया, उसकी पवित्र शक्‍ति अगर तुममें वास करती है, तो वह परमेश्‍वर जिसने मसीह यीशु को ज़िंदा किया,+ तुम्हारे नश्‍वर शरीर को भी अपनी उस पवित्र शक्‍ति से ज़िंदा करेगा+ जो तुममें रहती है। 12  इसलिए भाइयो, हम शरीर के मुताबिक जीने और उसके काम करने के लिए मजबूर नहीं हैं।+ 13  अगर तुम शरीर के मुताबिक जीते हो तो तुम्हारा मरना तय है, लेकिन अगर तुम पवित्र शक्‍ति से शरीर के कामों को मार देते हो,+ तो तुम ज़िंदा रहोगे।+ 14  इसलिए कि जितने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, वे सचमुच परमेश्‍वर के बेटे हैं।+ 15  परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति न तो हमें गुलाम बनाती है, न ही हमारे अंदर डर पैदा करती है, बल्कि इसके ज़रिए हम बेटों के नाते गोद लिए जाते हैं और यही पवित्र शक्‍ति हमें “अब्बा,* हे पिता!” पुकारने के लिए उभारती है।+ 16  परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है+ कि हम परमेश्‍वर के बच्चे हैं।+ 17  तो अगर हम उसके बच्चे हैं, तो वारिस भी हैं। हाँ, परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं,+ बशर्ते हम उसके साथ दुख झेलें+ ताकि हम उसके साथ महिमा भी पाएँ।+ 18  मैं समझता हूँ कि आज के दौर में हम जो दुख झेल रहे हैं वे उस महिमा के आगे कुछ भी नहीं जो हमारे मामले में प्रकट होनेवाली है।+ 19  सृष्टि, परमेश्‍वर के बेटों के ज़ाहिर होने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रही है।+ 20  इसलिए कि सृष्टि व्यर्थता के अधीन की गयी,+ मगर अपनी मरज़ी से नहीं बल्कि इसे अधीन करनेवाले ने आशा के आधार पर इसे अधीन किया। 21  इस आशा के आधार पर कि सृष्टि भी भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होकर परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएगी।+ 22  हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक एक-साथ कराहती और दर्द से तड़प रही है। 23  यही नहीं, हम भी जिन्हें पहला फल यानी पवित्र शक्‍ति मिली है, अपने दिलों में कराहते हैं।+ इस दौरान हम बड़ी बेचैनी से इंतज़ार कर रहे हैं कि परमेश्‍वर हमें अपने बेटों के नाते गोद ले+ और फिरौती के ज़रिए हमें अपने शरीर से छुटकारा दिलाए। 24  जब हमें छुड़ाया गया तब हमें यह आशा मिली। मगर जिस चीज़ की आशा की जाती है, जब वह एक बार दिख जाती है तो वह आशा नहीं रहती, क्योंकि इंसान जिसे देख लेता है क्या फिर उसकी आशा रखता है? 25  लेकिन अगर हम उसकी आशा रखते हैं+ जिसे हमने देखा नहीं,+ तो हम धीरज धरते हुए बेसब्री से उसका इंतज़ार करते हैं।+ 26  इसके अलावा, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति भी हमारी कमज़ोरी में हमारी मदद करती है।+ क्योंकि समस्या यह है कि जब हमें प्रार्थना करनी होती है, तब हमें समझ नहीं आता कि हम प्रार्थना में क्या कहें। मगर पवित्र शक्‍ति खुद हमारी दबी हुई* आहों के साथ हमारे लिए बिनती करती है। 27  और दिलों को जाँचनेवाला जानता है+ कि पवित्र शक्‍ति क्या कहना चाहती है, क्योंकि यह परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक पवित्र जनों की खातिर गिड़गिड़ाकर बिनती करती है। 28  हम जानते हैं कि परमेश्‍वर अपने सब कामों में इस तरह तालमेल बिठाता है कि जो उससे प्यार करते हैं और उसके मकसद के मुताबिक बुलाए गए हैं, उनका भला हो।+ 29  क्योंकि जिन पर उसने सबसे पहले ध्यान दिया, उनके लिए पहले से यह भी तय किया कि वे ऐसे ढाले जाएँ कि बिलकुल उसके बेटे जैसे हों+ और उसका बेटा बहुत-से भाइयों में+ पहलौठा+ ठहरे। 30  यही नहीं, जिन्हें उसने पहले से ठहराया+ ये वे हैं जिन्हें उसने बुलाया है।+ और जिन्हें उसने बुलाया ये वे हैं, जिन्हें उसने नेक ठहराया है।+ और जिन्हें उसने नेक ठहराया ये वे हैं जिन्हें उसने महिमा भी दी।+ 31  तो फिर इन बातों के बारे में हम क्या कहें? अगर परमेश्‍वर हमारी तरफ है, तो कौन हमारे खिलाफ होगा?+ 32  जब उसने हमारे लिए अपना बेटा तक दे दिया और उसे मौत के हवाले कर दिया,+ तो वह और उसका बेटा हम पर कृपा करके हमें बाकी सारी चीज़ें भी क्यों नहीं देंगे? 33  परमेश्‍वर के चुने हुओं पर कौन इलज़ाम लगा सकता है?+ उन्हें नेक ठहरानेवाला तो परमेश्‍वर है।+ 34  कौन उन्हें सज़ा के लायक ठहरा सकता है? कोई नहीं। क्योंकि मसीह यीशु ने अपनी जान दी, यही नहीं, उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया, वह परमेश्‍वर के दाएँ हाथ बैठा है+ और वही हमारी खातिर बिनती भी करता है।+ 35  कौन हमें मसीह के प्यार से अलग कर सकता है?+ क्या संकट या दुख या ज़ुल्म या भूख या नंगापन या खतरा या तलवार?+ 36  ठीक जैसा लिखा है, “तेरी खातिर हम दिन-भर मौत का सामना करते हैं, हमारी हालत उन भेड़ों जैसी है जिन्हें हलाल किया जाएगा।”+ 37  इसके बजाय, जिसने हमसे प्यार किया, हम उसकी मदद से इन सारी मुसीबतों में शानदार जीत हासिल करते हैं।+ 38  क्योंकि मुझे यकीन है कि न तो मौत, न ज़िंदगी, न स्वर्गदूत, न सरकारें, न आज की चीज़ें, न आनेवाली चीज़ें, न कोई ताकत,+ 39  न ऊँचाई, न गहराई, न ही कोई और सृष्टि हमें परमेश्‍वर के उस प्यार से अलग कर सकेगी जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है।

कई फुटनोट

शा., “पापी शरीर की समानता में।”
यह इब्रानी या अरामी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है, “हे पिता!”
या “जो कही नहीं गयी।”